Waqf Amendment Act Hearing Update: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को पूरी तरह से रद्द करने से इनकार कर दिया है, लेकिन इसके कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले में 20 से 22 मई तक तीन दिन की सुनवाई के बाद 15 सितंबर को अपना अंतरिम आदेश सुनाया। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, CEO के चयन और वक्फ संपत्तियों के वेरिफिकेशन जैसे मुद्दों पर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए। इस फैसले ने मुस्लिम समुदाय और सरकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण संदेश दिया है।
गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को पूरी तरह से रोकने से इनकार किया, लेकिन उनकी संख्या पर स्पष्ट सीमा तय की। कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 22 में से अधिकतम 4 और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से अधिकतम 3 गैर-मुस्लिम सदस्य ही हो सकते हैं। पहले इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं थी, जिससे विवाद पैदा हो रहा था।
CJI गवई ने कहा कि वक्फ से जुड़े मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए यह जरूरी है कि बोर्ड में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व अधिक हो। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो, बोर्ड में नामित सरकारी सदस्य भी मुस्लिम समुदाय से ही हों। यह फैसला धार्मिक संवेदनाओं और प्रशासनिक संतुलन को बनाए रखने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

CEO की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट
वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया। कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 23 को बरकरार रखते हुए कहा कि जहां तक संभव हो, CEO का चयन मुस्लिम समुदाय से ही किया जाए। CJI गवई ने जोर देकर कहा कि CEO, जो बोर्ड का पदेन सचिव भी होता है, वक्फ की गतिविधियों को समझने और संचालित करने में समुदाय की संवेदनाओं को ध्यान में रख सके।
हालांकि, कोर्ट ने गैर-मुस्लिम को CEO नियुक्त करने पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई, लेकिन इस सुझाव को लागू करने के लिए सरकारों को प्रोत्साहित किया। यह निर्देश बोर्ड के प्रशासन में पारदर्शिता और समुदाय के विश्वास को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
वक्फ बनाने की शर्त पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 3(र) पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि वक्फ संपत्ति बनाने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम 5 साल तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी है। कोर्ट ने इस प्रावधान को तब तक स्थगित कर दिया, जब तक राज्य सरकारें यह तय करने के लिए स्पष्ट नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।
CJI गवई ने कहा कि बिना स्पष्ट नियमों के यह प्रावधान मनमाने ढंग से लागू हो सकता है, जो संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है। इस फैसले से गैर-मुस्लिमों को भी वक्फ संपत्ति बनाने का रास्ता खुल गया है, जिसे मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने राहत के रूप में देखा।

वक्फ संपत्तियों का वेरिफिकेशन: कलेक्टर के अधिकार पर रोक
कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के वेरिफिकेशन से जुड़े प्रावधानों पर सख्त रुख अपनाया। धारा 3C के तहत सरकारी अधिकारियों, जैसे जिला कलेक्टर, को यह तय करने का अधिकार था कि कोई वक्फ संपत्ति सरकारी जमीन पर अतिक्रमण है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगा दी, क्योंकि यह सत्ता के विभाजन (सेपरेशन ऑफ पावर्स) के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। CJI गवई ने कहा कि कार्यपालिका को नागरिकों के संपत्ति अधिकार तय करने की शक्ति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक वक्फ ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट में संपत्ति के मालिकाना हक का अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यह फैसला वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
वक्फ का पंजीकरण की समय-सीमा बढ़ी
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य पंजीकरण के प्रावधान में कोई बदलाव करने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह नियम 1995 और 2013 के वक्फ कानूनों में भी मौजूद था। हालांकि, कोर्ट ने पंजीकरण की समय-सीमा को बढ़ाने का आदेश दिया, ताकि वक्फ बोर्डों को इस प्रक्रिया को पूरा करने में पर्याप्त समय मिल सके। CJI गवई ने कहा कि यह प्रावधान प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा देता है और इसे लागू रखना जरूरी है। इस फैसले से वक्फ संपत्तियों का व्यवस्थित रिकॉर्ड सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।