प्रमुख बिंदु-
Varanasi Vote Fraud Controversy: वाराणसी की मतदाता सूची में ‘रामकमल दास’ नाम के एक व्यक्ति को 48-50 ‘बेटों’ का पिता दिखाए जाने से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने इसे चुनाव आयोग की बड़ी गड़बड़ी बताते हुए ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया और लोकतंत्र पर सवाल उठाए। लेकिन क्या यह वाकई चुनावी धांधली है या धार्मिक परंपरा का मामला? यह विवाद फिर तब उछला, जब राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाएं हैं। आइए जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में उठे इस बवाल की क्या है सच्चाई?
विवाद की शुरुआत और कांग्रेस के आरोप
यह मामला आज दोपहर में उत्तर प्रदेश कोंग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल से पोस्ट हुआ, जिसमें 2023 में वाराणसी नगर निगम चुनाव के दौरान वार्ड नंबर 51 (भेलूपुर) की मतदाता सूची में रामकमल दास को 48 मतदाताओं का पिता दिखाया गया। सभी मतदाताओं का पता एक ही था – हाउस नंबर बी, 24/19, जो राम जानकी मठ है। कांग्रेस ने इसे फर्जी वोटिंग का सबूत बताते हुए चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर हमला बोला।
उत्तर प्रदेश कोंग्रेस ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से पोस्ट करते हुए लिखा, “वाराणसी में चुनाव आयोग का एक और चमत्कार देखिए! मतदाता सूची में एक ही व्यक्ति ‘राजकमल दास’ के नाम पर 50 बेटों का रिकॉर्ड दर्ज है! सबसे छोटा बेटा राघवेन्द्र- उम्र 28 साल, और सबसे बड़ा बेटा बनवारी दास- उम्र 72 साल! क्या चुनाव आयोग इस गड़बड़ी को भी सिर्फ त्रुटि कहकर टाल देगा या मान लेगा कि फर्जीवाड़ा खुल्लमखुल्ला चल रहा है? वोट चोरी की यह घटना बता रही है कि सिर्फ बनारस के लोग ही नहीं, बल्कि पूरा लोकतंत्र ठगा गया है। चुनाव आयोग, इसके लिए शपथ पत्र कब दे रहे हैं?”
क्या है असली सच्चाई?
वाराणसी, जिसे काशी के नाम से जाना जाता है, धार्मिक मठों और आश्रमों का केंद्र है। यहां गुरु-शिष्य परंपरा सदियों पुरानी है, जहां शिष्य अपने गुरु को पिता से बढ़कर मानते हैं। रामकमल दास वेदांती राम जानकी मठ के महंत हैं और उनके शिष्य ब्रह्मचारी हैं, जो अविवाहित रहते हैं। ये शिष्य मतदाता सूची में पिता के कॉलम में गुरु का नाम दर्ज कराते हैं, क्योंकि वे जैविक परिवार से अलग हो चुके होते हैं।
मठ के सचिव रामभारत के मुताबिक, पहले 150 शिष्य रामकमल दास को पिता के रूप में दर्ज कराते थे, लेकिन अब यह संख्या 48 रह गई है। सभी शिष्य मठ में ही रहते हैं और उनकी उम्र एक जैसी हो सकती है क्योंकि वे एक साथ दीक्षा लेते हैं। यह कोई जैविक पिता-पुत्र संबंध नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बंधन है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स जैसे दैनिक भास्कर ने भी इसे धार्मिक प्रथा बताया है। वाराणसी जैसे शहर में यह आम है, जहां संतों की परंपरा चुनावी नियमों से टकराती नहीं, बल्कि सम्मानित होती है। फैक्ट चेक संगठनों जैसे फैक्टली और ओनली फैक्ट ने पुष्टि की कि सभी मतदाता असली हैं और कोई धांधली नहीं है।

क्या कहता है चुनाव आयोग का नियम?
चुनाव आयोग ने इस मामले पर कई बार सफाई दी है। उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 12 मार्च 2025 को एक्स पर पोस्ट कर कहा कि यह सूची नगर निकाय चुनावों की है, न कि विधानसभा या लोकसभा की। ईसीआई की सामान्य मतदाता सूची अलग होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धार्मिक मठों में सन्यासी अपने गुरु का नाम पिता के स्थान पर लिख सकते हैं, अगर यह प्रमाणित हो।

इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स हैंडबुक (2012) में साफ निर्देश है: “धार्मिक संप्रदायों के साधु, संन्यासी, ब्रह्मचारी जो अपने पिता का नाम नहीं देना चाहते, वे गुरु या धार्मिक संस्था का नाम पिता के स्थान पर लिख सकते हैं।” यह नियम संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदान अधिकार की रक्षा करता है, जहां हर 18 वर्ष से ऊपर का नागरिक वोट दे सकता है बिना भेदभाव के। Representation of the People Act, 1950 के सेक्शन 16, 19 और 21 में भी ऐसी सांस्कृतिक विविधता को जगह दी गई है।

प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका और जवाबदेही
वाराणसी मतदाता सूची विवाद पर कांग्रेस के उत्तर प्रदेश इकाई के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से की गई पोस्ट ने पार्टी की प्रदेश नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि यह पोस्ट प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, जो खुद वाराणसी के रहने वाले हैं और स्थानीय राजनीति में दशकों से सक्रिय हैं, का सीधा बयान नहीं है, लेकिन प्रदेश संगठन के मुखिया होने के नाते इस तरह की सार्वजनिक सामग्री की जवाबदेही उनसे स्वतः जुड़ जाती है।
जानकार मानते हैं कि जब कोई आधिकारिक पार्टी मंच से आरोप प्रकाशित होते हैं, तो वह केवल सोशल मीडिया पोस्ट भर नहीं रह जाता, बल्कि संगठन की आधिकारिक स्थिति का हिस्सा बन जाता है। इस लिहाज से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी बनती है कि आरोप लगाने से पहले तथ्यों, स्थानीय प्रथाओं और संबंधित कानूनी प्रावधानों की जांच-पड़ताल सुनिश्चित हो।
ऐसे मामले अंततः न केवल विपक्ष के दावे कमजोर करेंगे बल्कि नेतृत्व की विश्वसनीयता पर भी असर डालेंगे। इसलिए, प्रदेश अध्यक्ष का यह कर्तव्य होता है कि पार्टी के आधिकारिक संचार में तथ्यों की पूरी परख और सटीक संदर्भ शामिल हों, ताकि जन संवाद ठोस आधार पर कायम रह सके।

कांग्रेस का यह हमला 2024 लोकसभा चुनावों के बाद 2025 में फिर से उठा, जब राहुल गांधी ने विदेश में ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह पुरानी खबर को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश है, ताकि ईसीआई पर दबाव बने। यह विवाद दिखाता है कि कैसे सांस्कृतिक प्रथाएं राजनीति की भेंट चढ़ सकती हैं। अंत में, यह कोई चमत्कार या गड़बड़ी नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध धार्मिक विविधता का हिस्सा है। चुनाव आयोग के नियम इसे वैध मानते हैं।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
