प्रमुख बिंदु-
Opinion Column (Teacher’s Day Special): आज शिक्षक दिवस है, एक ऐसा दिन जब हम उन गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जो हमारे समाज और राष्ट्र की नींव गढ़ते हैं। देश का सबसे बड़ा राज्य, उत्तर प्रदेश, लगभग 5.75 लाख शिक्षकों के विशाल कार्यबल पर निर्भर है जो बेसिक शिक्षा विभाग के तहत 1.5 लाख से अधिक स्कूलों में करोड़ों बच्चों का भविष्य संवारते हैं। ये केवल शिक्षक नहीं, बल्कि जमीनी स्तर के सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जो ‘स्कूल चलो अभियान’ जैसे कार्यक्रमों के तहत गांवों में घर-घर जाकर अभिभावकों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
ये शिक्षक सरकार की हर नीति को धरातल पर उतारने वाले अग्रिम पंक्ति के योद्धा हैं। लेकिन इस सम्मान और जिम्मेदारी के पर्दे के पीछे एक ऐसी तस्वीर है जहाँ भविष्य के ये निर्माता अपने स्वयं के भविष्य को लेकर अनिश्चितता, असुरक्षा और असमानता की गहरी चिंताओं से जूझ रहे हैं।
पेंशन का अनसुलझा प्रश्न
शिक्षकों की सबसे बड़ी और ज्वलंत चिंता उनकी सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन है। 1 अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त हुए लाखों शिक्षक पुरानी पेंशन योजना (OPS) से वंचित हैं और उन्हें राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत कवर किया गया है। OPS एक परिभाषित लाभ योजना थी, जिसमें सेवानिवृत्ति पर अंतिम वेतन का 50% निश्चित पेंशन की गारंटी थी। इसके विपरीत, NPS एक बाजार-आधारित, परिभाषित अंशदान योजना है, जिसमें पेंशन की कोई गारंटी नहीं है और यह पूरी तरह से बाजार के जोखिमों के अधीन है।
विभिन्न शिक्षक संगठन वर्षों से OPS की बहाली की मांग कर रहे हैं, लेकिन वर्ष 2025 तक, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संबंध में कोई भी सकारात्मक आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है। यह स्थिति शिक्षकों में भारी असुरक्षा पैदा करती है। उनका तर्क है कि जब विधायक और सांसद कुछ वर्षों के कार्यकाल के बाद आजीवन पेंशन के हकदार हो सकते हैं, तो 30-35 साल देश की सेवा करने वाले शिक्षक अपने बुढ़ापे के लिए बाजार की दया पर क्यों छोड़े जाएं? यह एक वैध प्रश्न है जो उनके भविष्य की वित्तीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं का यथार्थ
राज्य सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य कर्मचारी कैशलेस चिकित्सा योजना शुरू की है। सैद्धांतिक रूप से यह एक अच्छा कदम है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह शिक्षकों के लिए एक बोझ साबित हो रही है। इसमें कई मुख्य चुनौतियाँ हैं जैसे इस योजना का प्रीमियम इतना अधिक है कि इसकी तुलना में निजी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं अक्सर सस्ती पड़ती हैं। इस कारण, अधिकांश शिक्षक इसे लेने से पहले कई बार सोचते हैं, क्योंकि यह उनके सीमित वेतन पर एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालता है।
प्रीमियम देने के बावजूद, सूचीबद्ध अस्पतालों में कैशलेस इलाज पाना एक टेढ़ी खीर है। कई निजी अस्पताल अक्सर कार्ड स्वीकार करने में आनाकानी करते हैं, जिससे शिक्षकों को नकद भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
अपूर्ण राज्य कर्मचारी का दर्जा
कागजों पर बेसिक शिक्षक “राज्य कर्मचारी” हैं, लेकिन व्यवहार में उन्हें मिलने वाली सुविधाएँ और सेवा नियम अन्य विभागों के कर्मचारियों से भिन्न हैं। सचिवालय के एक कर्मचारी और एक शिक्षक के वेतन, प्रमोशन के अवसरों और अन्य भत्तों में भारी असमानता है। शिक्षकों की पदोन्नति प्रक्रिया अत्यंत धीमी है; कई शिक्षक बिना किसी प्रमोशन के उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं जिस पर उन्होंने नियुक्ति पाई थी। यह असमानता न केवल उनके मनोबल को तोड़ती है, बल्कि उनमें एक “दोयम दर्जे के कर्मचारी” होने की भावना भी पैदा करती है, जो किसी भी राज्य के बौद्धिक वर्ग के लिए निराशाजनक है।
गैर-शैक्षिक कार्यों का बोझ
यह एक बड़ा विरोधाभास है कि सरकार एक तरफ राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत विश्वस्तरीय शिक्षा की बात करती है और दूसरी तरफ शिक्षकों को अनगिनत गैर-शैक्षिक कार्यों में उलझाए रखती है। चुनाव ड्यूटी, जनगणना, पशुगणना, सरकारी योजनाओं का प्रचार और कोविड-19 के दौरान जोखिम भरी सर्वेक्षण ड्यूटी, यह सब उनके शिक्षण समय की कीमत पर होता है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों है कि शिक्षकों को केवल तीन विशिष्ट कार्यों (जनगणना, आपदा राहत, चुनाव) में लगाया जाए। यह तर्कसंगत नहीं है कि जिस व्यक्ति का मुख्य कार्य बच्चों की नींव मजबूत करना है, उसे प्रशासनिक मशीनरी के हर छोटे-बड़े काम में लगा दिया जाए। इसका सीधा और विनाशकारी प्रभाव कक्षा में शिक्षण की गुणवत्ता पर पड़ता है।
ट्रांसफर नीति: कुछ राहत, कुछ अनसुलझे सवाल
ऑनलाइन ट्रांसफर नीति ने निश्चित रूप से कई शिक्षकों, विशेष रूप से महिलाओं और गंभीर रूप से बीमार शिक्षकों को राहत दी है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खामी इसकी अनिश्चितता है। हर शिक्षक जो आवेदन करता है, उसका ट्रांसफर हो जाए, यह जरूरी नहीं। सीमित रिक्तियों के कारण हजारों शिक्षक वर्षों तक अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर काम करने को मजबूर रहते हैं। ट्रांसफर कब होंगे, इसका कोई निश्चित वार्षिक कैलेंडर नहीं है। यह पूरी तरह से सरकार के आदेशों और कृपा पर निर्भर करता है। लगभग हर बार ट्रांसफर नीति के नियम बदल जाते हैं, जिससे शिक्षकों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
बुनियादी सुविधाओं की कसौटी
“ऑपरेशन कायाकल्प” से स्कूलों की स्थिति सुधरी है, लेकिन इसका सीधा संबंध शिक्षक के काम से है। जब एक स्कूल में लड़कियों के लिए क्रियाशील शौचालय नहीं होता, तो उन्हें स्कूल में बनाए रखने की जिम्मेदारी शिक्षक की होती है। जब कक्षा में बिजली या पंखा नहीं होता, तो उस उमस भरे माहौल में बच्चों का ध्यान केंद्रित करने की चुनौती शिक्षक की होती है। एक सुरक्षित स्कूल परिसर और स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव शिक्षक के लिए एक समावेशी और प्रभावी शिक्षण वातावरण बनाने में सीधी बाधा डालता है। इस प्रकार, बुनियादी सुविधाओं की कमी केवल एक ढांचागत समस्या नहीं है, बल्कि यह शिक्षक की रोजमर्रा की व्यावसायिक चुनौती है।
शिक्षक दिवस पर अपील
शिक्षक दिवस केवल एक औपचारिक उत्सव का दिन नहीं होना चाहिए। यह दिन हमें उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर देता है जो हमारे शिक्षकों को कमजोर करते हैं। एक शिक्षक जो अपनी पेंशन को लेकर चिंतित है, अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर असुरक्षित है, अपने प्रशासनिक दर्जे में असमानता महसूस करता है और गैर-शैक्षिक कार्यों के बोझ तले दबा है, वह कक्षा में अपना 100% कैसे दे सकता है?
अतः इस शिक्षक दिवस पर, सरकार से हमारी पुरजोर अपील है कि शिक्षकों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक बेहतर पेंशन योजना पर गंभीरता से विचार करें और एक सम्मानजनक सेवानिवृत्ति सुनिश्चित करें। एक अनिवार्य और पूरी तरह से कैशलेस स्वास्थ्य योजना लागू करें जो शिक्षकों और उनके परिवारों को बिना किसी वित्तीय बोझ के गुणवत्तापूर्ण इलाज की गारंटी दे। शिक्षकों को सही मायनों में राज्य कर्मचारी का दर्जा दें, उनकी सेवा नियमावली को सुसंगत बनाएं और समय पर पदोन्नति तथा ट्रांसफर निति सुनिश्चित करें।
यदि हम वास्तव में उत्तर प्रदेश को एक ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले अपने ज्ञान-दाताओं के सम्मान, अधिकार और भविष्य को सुरक्षित करना होगा। क्योंकि एक संतुष्ट और सुरक्षित शिक्षक ही एक प्रेरित और शिक्षित पीढ़ी का निर्माण कर सकता है।
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राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।