US Stock Market की गिरावट पर ट्रंप ने बाइडन को ठहराया जिम्मेदार; विशेषज्ञों ने दोनों की नीतियों को बताया कारक, भारत में निवेश और निर्यात पर पड़ा असर।
प्रमुख बिंदु-
US Stock Market Fall: शेयर बाजार से सियासत तक

अमेरिकी राजनीति में आर्थिक मोर्चे पर जंग तेज हो गई है। US Stock Market के गिरते आंकड़े अब केवल वित्तीय चिंता नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार बन चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालिया गिरावट के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन को दोषी ठहराते हुए कहा है, “यह बाइडन का शेयर बाजार है, ट्रंप का नहीं।” इस बयान ने अमेरिकी राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ बाइडन जिम्मेदार हैं, या ट्रंप की नीतियों ने भी मौजूदा अस्थिरता की नींव रखी?
2020 बनाम 2024: ट्रंप और बाइडन की आर्थिक विरासत

ट्रंप का दावा है कि उनके कार्यकाल में US Stock Market ऐतिहासिक ऊंचाइयों पर पहुंचा था, जबकि बाइडन के नेतृत्व में इसमें गिरावट आई है। वास्तव में, ट्रंप के कार्यकाल के दौरान S&P 500 में लगभग 67% की वृद्धि हुई थी, जबकि बाइडन के पहले दो वर्षों में यह दर लगभग 25% रही। हालांकि 2024 के अंत तक महंगाई और फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण बाजार में अस्थिरता आई।
लेकिन 2025 में ट्रंप की वापसी के बाद उम्मीद थी कि बाजार स्थिर होंगे। इसके विपरीत, ट्रंप के कार्यकाल के पहले 100 दिन अमेरिकी शेयर बाजार के लिए बीते कई दशकों में सबसे खराब साबित हुए। डॉव जोन्स और नैस्डैक जैसे प्रमुख इंडेक्स में भारी गिरावट दर्ज की गई।
US Stock Market में गिरावट के कारण: बाइडन नहीं, टैरिफ जिम्मेदार?

विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा गिरावट का बड़ा कारण ट्रंप द्वारा चीन, मैक्सिको और यूरोपीय यूनियन पर लगाए गए नए टैरिफ हैं। इन नीतियों ने वैश्विक व्यापार पर असर डाला और अमेरिकी आयात महंगे हो गए। नतीजतन, अमेरिकी कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बढ़ा और निवेशकों ने US Stock Market से पैसे निकालने शुरू कर दिए।
वहीं, ट्रंप का तर्क है कि उन्हें बाइडन से “बदहाल आर्थिक विरासत” मिली। उन्होंने कहा, “बाइडन ने हमें गिरती जीडीपी, बढ़ती बेरोजगारी और अस्थिर वित्तीय स्थिति सौंपी।”
2025 की पहली तिमाही: आंकड़े क्या कहते हैं?
2025 की पहली तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर -0.3% रही, जो कि महामारी के बाद पहली बार नकारात्मक रही। इसी दौरान US Stock Market में भी 10% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि अप्रैल के अंत में थोड़ी रिकवरी देखी गई, लेकिन निवेशकों का भरोसा अभी भी डगमगाया हुआ है।
S&P 500 इंडेक्स में वर्ष की शुरुआत से अब तक 12% की गिरावट हो चुकी है। डॉलर मजबूत हो रहा है, जिससे उभरते बाजारों के लिए पूंजी आकर्षित करना कठिन हो रहा है।
भारत पर असर: निवेशकों की सांसें रुकीं

US Stock Market व अमेरिकी बाजारों की अस्थिरता का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। भारत की आईटी, फार्मास्युटिकल और टेक्नोलॉजी कंपनियों को अमेरिकी बाजारों से बड़ा राजस्व मिलता है। जब अमेरिका में मांग घटती है, तो इन कंपनियों की आय प्रभावित होती है।
इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से भारत के लिए तेल और अन्य आयात महंगे हो गए हैं। निवेशक भी सतर्क हो गए हैं, जिससे सेंसेक्स और निफ्टी में उतार-चढ़ाव बढ़ गया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में भी गिरावट दर्ज की गई है।
निर्यात पर दबाव, आयात महंगा
भारत के निर्यातक खासकर वस्त्र, ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को अमेरिका में मांग घटने से झटका लगा है। वहीं, कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक चिप्स और मशीनरी जैसी चीजों के महंगे आयात से घरेलू उद्योगों पर लागत बढ़ गई है।
यदि ट्रंप प्रशासन टैरिफ नीतियों को और आक्रामक बनाता है, तो भारतीय निर्यात पर और अधिक असर पड़ सकता है। इससे देश का व्यापार संतुलन और चालू खाता घाटा प्रभावित हो सकता है।
भविष्य की राह: भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को इस समय वैश्विक अस्थिरता के बीच रणनीतिक रूप से सतर्क रहना होगा। रिजर्व बैंक को मुद्रा स्थिरता बनाए रखने के लिए कदम उठाने होंगे, जबकि सरकार को निर्यातकों के लिए सब्सिडी और लॉजिस्टिक्स समर्थन देना चाहिए।
साथ ही, भारत को अमेरिका के अलावा अन्य बाजारों जैसे यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में अपने व्यापार को विविध बनाना होगा, ताकि अमेरिकी बाजार की अस्थिरता का सीधा प्रभाव न हो।
राजनीतिक बयानबाजी बनाम आर्थिक हकीकत
ट्रंप और बाइडन की बयानबाजी से हटकर देखा जाए, तो US Stock Market पर कई वैश्विक और घरेलू कारणों का प्रभाव है—फेडरल रिजर्व की नीतियाँ, वैश्विक मंदी की आशंका, भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति श्रृंखला की दिक्कतें। सिर्फ एक नेता को दोषी ठहराना आसान है, लेकिन सच्चाई कहीं अधिक जटिल है।
निष्कर्ष: अमेरिका की हलचल, भारत की चुनौती
अमेरिका में चल रही शेयर बाजार की उठापटक न केवल घरेलू राजनीति में विवाद पैदा कर रही है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर भारत जैसे देशों के लिए भी चुनौती पेश कर रही है। यह समय भारत के लिए सतर्कता और रणनीतिक निर्णयों का है, जिससे वह वैश्विक संकट से उबरते हुए आत्मनिर्भर और स्थिर अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सके।
अवि नमन यूनिफाइड भारत के एक विचारशील राजनीतिक पत्रकार और लेखक हैं, जो भारतीय राजनीति, नीति निर्माण और सामाजिक न्याय पर तथ्यपरक विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं। उनकी लेखनी में गहरी समझ और नया दृष्टिकोण झलकता है। मीडियम और अन्य मंचों पर उनके लेख लोकतंत्र, कानून और सामाजिक परिवर्तन को रेखांकित करते हैं। अवि ने पत्रकारिता के बदलते परिवेश सहित चार पुस्तकों की रचना की है और सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता के लिए समर्पित हैं।