प्रमुख बिंदु-
ग्लोबल डेस्क: दुनिया में यात्रा की आजादी का पैमाना माने जाने वाले हेनली पासपोर्ट इंडेक्स ने 2025 (Henley Passport Index 2025) की अपनी ताजा रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बड़े उलटफेर देखने को मिले हैं। पहली बार अमेरिकी पासपोर्ट टॉप-10 से बाहर हो गया है, जो वैश्विक राजनीति और कूटनीति में बदलते समीकरणों की ओर इशारा करता है। सिंगापुर ने सबसे ताकतवर पासपोर्ट का ताज बरकरार रखा है, जबकि भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है। यह इंडेक्स 199 पासपोर्टों और 227 गंतव्यों के आधार पर तैयार किया जाता है, जहां वीजा-फ्री एक्सेस की संख्या से रैंकिंग तय होती है। रिपोर्ट बताती है कि एशियाई देश मजबूत होते जा रहे हैं, जबकि पश्चिमी शक्तियां पिछड़ रही हैं।
अमेरिकी पासपोर्ट की ताकत में कमी
अमेरिकी पासपोर्ट अब 12वें स्थान पर पहुंच गया है, जहां यह मलेशिया के साथ बराबरी कर रहा है। इसके धारकों को 180 देशों में बिना पूर्व वीजा के प्रवेश मिलता है। 20 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब अमेरिका टॉप-10 से बाहर हुआ। 2014 में यह पहले नंबर पर था, लेकिन अब इसका पतन जारी है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका मुख्य कारण अन्य देशों की सख्त वीजा नीतियां हैं। उदाहरण के तौर पर, ब्राजील ने अप्रैल में अमेरिकियों के लिए वीजा-फ्री एंट्री खत्म कर दी, क्योंकि अमेरिका ने बदले में कोई छूट नहीं दी।
चीन ने कई यूरोपीय देशों को वीजा छूट दी, लेकिन अमेरिका को बाहर रखा। पापुआ न्यू गिनी, म्यांमार, सोमालिया और वियतनाम जैसे देशों ने भी नए नियम लागू किए, जिनसे अमेरिकी पासपोर्ट प्रभावित हुआ। हेनली एंड पार्टनर्स के चेयरमैन क्रिश्चियन केलिन का कहना है कि यह सिर्फ रैंकिंग की गिरावट नहीं, बल्कि वैश्विक ताकत के बदलते खेल का संकेत है। जो देश खुली नीतियां अपनाते हैं, वे आगे बढ़ते हैं, जबकि बंद सोच वाले पिछड़ जाते हैं। अमेरिका की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी भी इसके लिए जिम्मेदार मानी जा रही है, जो अन्य देशों को बदला लेने पर मजबूर कर रही है।

सिंगापुर का पासपोर्ट लगातार टॉप पर
सिंगापुर का पासपोर्ट 2025 में भी दुनिया का सबसे ताकतवर बना हुआ है, जो 195 देशों में वीजा-फ्री या वीजा-ऑन-अराइवल एक्सेस देता है। यह लगातार कई सालों से शीर्ष पर कायम है, जो सिंगापुर की मजबूत कूटनीति और खुले व्यापार नीतियों का नतीजा है। छोटा सा देश होने के बावजूद, सिंगापुर ने एशिया, यूरोप और अमेरिका के साथ मजबूत समझौते किए हैं, जिससे उसके नागरिकों को वैश्विक गतिशीलता में बढ़त मिली है। रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर की यह सफलता अन्य एशियाई देशों के लिए प्रेरणा है, जहां खुलापन और आर्थिक स्थिरता पासपोर्ट पावर बढ़ा रही है। दक्षिण कोरिया और जापान जैसे पड़ोसी भी टॉप-3 में हैं, जो एशिया की बढ़ती ताकत को दिखाता है।

भारत पासपोर्ट रैंकिंग में खिसका
भारतीय पासपोर्ट 2025 में 85वें स्थान पर खिसक गया है, जो पिछले साल के 80वें स्थान से पांच पायदान नीचे है। अब भारतीय नागरिक 57 देशों में वीजा-फ्री या वीजा-ऑन-अराइवल के साथ जा सकते हैं, जो पहले 59 था। यह गिरावट वैश्विक यात्रा नीतियों में बदलाव और कुछ देशों की सख्ती से जुड़ी है। हालांकि, पिछले दशक में भारत ने सुधार दिखाया है।
भारत ने फिलीपींस, श्रीलंका, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों के साथ नए समझौते किए, जिनसे वीजा नियम आसान हुए। डिजिटल ई-वीजा सिस्टम और पर्यटन को बढ़ावा देने से भी फायदा मिला। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका, जैसे जी-20 और क्वाड में सक्रियता, भविष्य में रैंकिंग सुधार सकती है। फिर भी, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे बड़े बाजारों में वीजा प्रतिबंध चुनौती बने हुए हैं। अगर भारत अधिक द्विपक्षीय समझौते करता है, तो पासपोर्ट की ताकत बढ़ सकती है।

कमजोर से ताकतवर पासपोर्ट की ओर चीन
चीन का पासपोर्ट इस रिपोर्ट में बड़ा विजेता साबित हुआ है। 2015 में यह 94वें स्थान पर था, लेकिन अब 64वें पर पहुंच गया, जिसमें 37 नए देशों में वीजा-फ्री एक्सेस जुड़ा है। चीनी नागरिक अब 82 देशों में बिना वीजा जा सकते हैं। यह सफलता चीन की खुली नीतियों से आई है। उसने रूस, खाड़ी देशों, दक्षिण अमेरिका और कई यूरोपीय राष्ट्रों के साथ समझौते किए।
दिलचस्प बात यह है कि चीन खुद 76 देशों को अपने यहां वीजा-फ्री एंट्री देता है, जो अमेरिका से 30 ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की यह रणनीति वैश्विक प्रभाव बढ़ाने की है, जो सफल हो रही है। इससे साफ है कि एशियाई अर्थव्यवस्थाएं पासपोर्ट पावर में यूरोप और अमेरिका को चुनौती दे रही हैं।

ब्रिटेन और अन्य देशों में क्या हो रहा बदलाव?
ब्रिटिश पासपोर्ट भी कमजोर हुआ है और अब आठवें स्थान पर है, जहां यह क्रोएशिया, एस्टोनिया जैसे देशों के साथ साझा कर रहा है। 184 देशों में वीजा-फ्री एक्सेस के साथ यह 2015 के पहले स्थान से काफी नीचे आ गया है। ब्रेक्सिट के बाद यूरोपीय संघ के साथ संबंधों में तनाव इसका कारण माना जाता है। वहीं, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने पिछले दशक में 34 पायदानों की छलांग लगाई और अब आठवें पर है। रिपोर्ट के नीचे के छोर पर अफगानिस्तान 106वें स्थान पर है, जहां सिर्फ 24 देशों में एक्सेस है। सीरिया और इराक भी नीचे हैं।
यह रिपोर्ट हमें सोचने पर मजबूर करती है कि वैश्विक यात्रा की आजादी अब सिर्फ आर्थिक ताकत नहीं, बल्कि सॉफ्ट पावर पर निर्भर है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
