प्रमुख बिंदु-
लखनऊ, 26 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेश में शिक्षक भर्ती की उम्मीदों पर एक और बड़ा झटका लगा है। राज्य के नवगठित शिक्षा सेवा चयन आयोग (UPESSC) की अध्यक्ष प्रोफेसर कीर्ति पांडेय (Prof. Kirti Pandey) ने सिर्फ एक साल के कार्यकाल में ही इस्तीफा दे दिया। 2 सितंबर 2024 को नियुक्त हुईं प्रो. पांडेय ने 22 सितंबर 2025 को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देकर इस्तीफा सौंपा, जिसे 26 सितंबर को योगी सरकार ने स्वीकार कर लिया। आयोग के गठन के बाद से ही बेरोजगार युवाओं की निगाहें इसी पर टिकी थीं, लेकिन अब प्रतीत हो रहा है कि नई नियुक्ति में देरी से भर्ती प्रक्रिया और लंबी खिंच सकती है।
इस्तीफे की पूरी कहानी: क्या हुआ और क्यों?
प्रो. कीर्ति पांडेय का इस्तीफा आयोग के लिए बड़ा झटका है। उच्च शिक्षा विभाग के विशेष सचिव गिरिजेश कुमार त्यागी ने बताया कि प्रो. पांडेय ने 22 सितंबर को इस्तीफा दिया था, जो आज मंजूर हो गया। आयोग के प्रावधानों के अनुसार, अब सबसे वरिष्ठ सदस्य को अस्थायी रूप से अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया है। प्रो. पांडेय ने इस्तीफे में सिर्फ ‘व्यक्तिगत कारण’ का जिक्र किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, आयोग के आंतरिक दबाव और प्रशासनिक चुनौतियां भी इसमें भूमिका निभा सकती हैं।
आयोग के गठन के बाद से ही कई पद रिक्त चल रहे थे। कार्यवाहक उपसचिव डॉ. शिवजी मालवीय को भी 22 सितंबर को ही हटा दिया गया। डॉ. मालवीय को 31 मई 2024 को यह जिम्मेदारी मिली थी, लेकिन अब उन्हें नैनी के हेमवती नंदन बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से आगरा के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में अटैच कर दिया गया है। वर्तमान में आयोग में दो उपसचिव के.के. गिरी और विकास सिंह तैनात हैं। डॉ. मालवीय बायोलॉजी के प्रवक्ता रह चुके हैं। इन बदलावों से आयोग का संचालन प्रभावित हुआ है, और नई भर्ती कैलेंडर बनाने की प्रक्रिया रुक सकती है।
कौन हैं प्रो. कीर्ति पांडेय?
गोरखपुर विश्वविद्यालय की प्रमुख समाजशास्त्र प्रोफेसर कीर्ति पांडेय शिक्षा जगत की दिग्गज हस्ती हैं। 1982 में कुशीनगर के बुद्धा पीजी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद, 1984 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 1992 में प्रो. एसपी नागेंद्र के मार्गदर्शन में पीएचडी हासिल की। उनके पास उच्च शिक्षा में 40 साल से ज्यादा का अनुभव है।
करियर की शुरुआत 1985 में समाजशास्त्र विभाग में लेक्चरर के रूप में हुई। 1987 में एसवी डिग्री कॉलेज में एजुकेशन सर्विस कमीशन से नियुक्ति मिली। 1988 से गोरखपुर यूनिवर्सिटी में स्थायी लेक्चरर रहीं, और 2006 में प्रोफेसर बनीं। जून 2023 से वह यूनिवर्सिटी में आर्ट्स फैकल्टी की डीन थीं। उनकी विशेषज्ञता ‘इंडियन सोसाइटी एंड कल्चर’ पर है, और उन्होंने दलितों की सामाजिक स्थिति पर कई किताबें व शोध पत्र लिखे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी प्रो. पांडेय को नियुक्ति के समय युवाओं ने सराहा था, लेकिन छोटे कार्यकाल ने सवाल खड़े कर दिए।

आयोग का सफर: उम्मीदें टूटी, भर्ती क्यों रुकी
उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग का गठन 23 अगस्त 2023 को हुआ था, ताकि बेसिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभागों में शिक्षकों की भर्ती एक छत के नीचे हो सके। पहले ये प्रक्रियाएं अलग-अलग बोर्डों से चलती थीं, जिससे देरी होती थी। आयोग में एक अध्यक्ष और 12 सदस्यों के पद सृजित किए गए, जो 3 साल या 65 साल की उम्र तक काम करते। कोई व्यक्ति दोबारा से ज्यादा पद नहीं संभाल सकता। मुख्यालय प्रयागराज में है, लेकिन शुरू में लखनऊ से ही संचालन चला।
14 मार्च 2024 को 12 सदस्यों की नियुक्ति हुई, और 15 मार्च को उन्होंने कार्यभार संभाला। 18 जुलाई 2024 को सचिव तैनात हुए। प्रो. पांडेय की नियुक्ति के बाद सितंबर 2024 में भर्ती कैलेंडर बनाने की कोशिश हुई, लेकिन विरोध प्रदर्शन और पदों की कमी से रुकी। नवंबर 2024 में आयोग ने पहली भर्ती परीक्षाओं का प्लान बनाया था, जो दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 तक होनी थीं। लेकिन इस्तीफे से यह प्रक्रिया पटरी से उतर गई। अशासकीय महाविद्यालयों में 1017 असिस्टेंट प्रोफेसर पद, और टीजीटी-पीजीटी के 4163 पद लंबित हैं।
भर्ती पर क्या होगा असर?
इस इस्तीफे से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे लाखों बेरोजगार युवा। आयोग गठन के समय दावा था कि सभी स्तरों पर शिक्षक भर्ती जल्द पूरी होगी, लेकिन दो साल बाद भी अधियाचन ही मंगाए गए हैं। प्रयागराज से लखनऊ तक आंदोलन हो चुके हैं। डीएलएड अभ्यर्थियों ने सितंबर 2024 में ही आयोग कार्यालय घेर लिया था। अब नई अध्यक्ष की नियुक्ति में कम से कम 1-2 महीने लग सकते हैं, जिससे 2025 की भर्तियां प्रभावित होंगी।
सूत्र बताते हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रो. अर्चना चहल को नई जिम्मेदारी मिल सकती है। आयोग ने परीक्षा नियंत्रक देवेंद्र प्रताप सिंह को सितंबर 2024 में तैनात किया था, लेकिन उपसचिवों की कमी से काम रुका। युवा संगठनों ने सरकार से मांग की है कि जल्द स्थायी व्यवस्था हो, वरना रिक्त पदों पर अस्थायी भर्ती शुरू की जाए। यह बदलाव शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के मकसद को कमजोर कर रहा है, और बेरोजगारी की समस्या और गंभीर हो सकती है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
