प्रमुख बिंदु-
लखनऊ: भारत निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को एक बड़ा झटका देते हुए उत्तर प्रदेश (UP) के 121 पंजीकृत राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया। ये वे दल हैं, जो 2019 से 2024 तक छह सालों में न तो लोकसभा और न ही विधानसभा चुनाव लड़ सके। आयोग के इस फैसले से इन दलों को चुनाव चिन्ह, आयकर छूट जैसी सुविधाएं हमेशा के लिए अलविदा कहनी पड़ेगी। लखनऊ के 14 दल भी इस सूची में शामिल हैं।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने बताया कि यह कार्रवाई लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29बी और 29सी, आयकर अधिनियम 1961 तथा चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के तहत की गई है। आयोग का कहना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी और फर्जी दलों पर लगाम लगेगी। अगर कोई दल असहमत है, तो 30 दिनों में दिल्ली में अपील कर सकता है।
आयोग की सख्त कार्रवाई का पूरा ब्योरा
यह फैसला आयोग के दूसरे चरण का हिस्सा है। पहले चरण में 9 अगस्त 2025 को 334 दलों को सूची से हटाया गया था, जिसमें यूपी के 115 दल शामिल थे। अब दूसरे चरण में 18 सितंबर को 474 दलों का पंजीकरण रद्द हुआ, जिसमें यूपी से सबसे ज्यादा 121 दल प्रभावित हुए। आयोग ने जून 2025 में ही 345 निष्क्रिय दलों की जांच शुरू की थी। इनमें से कई दलों के पते 51 जिलों में रजिस्टर्ड थे, लेकिन वास्तव में उनके कार्यालय कागजों पर ही साबित हुए।
उदाहरण के तौर पर, लखनऊ में 14 दलों के पते चेक करने पर कोई भौतिक अस्तित्व नहीं मिला। आयोग ने कहा कि ये दल चुनावी गतिविधियों से दूर रहकर केवल लाभ उठा रहे थे, जैसे चंदे पर टैक्स छूट। अब कुल 808 दल (पहले चरण के 334 + दूसरे के 474) सूची से बाहर हो चुके हैं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने जिलेवार सूची जारी कर दी है, जो आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।


किन दलों को नुकसान और क्यों रद्द हुआ पंजीकरण?
ये दल गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल (RUPPs) थे, जो राष्ट्रीय या राज्य स्तर के नहीं थे। आयोग के नियमों के मुताबिक, अगर कोई दल लगातार छह साल चुनाव न लड़े, तो उसका पंजीकरण रद्द हो जाता है। यूपी में ये 121 दल 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2024 के विधानसभा उपचुनाव तक पूरी तरह निष्क्रिय रहे। कई दलों के नाम जैसे शोषित समाज अधिकार पार्टी, संपूर्ण क्रांति दल, राष्ट्रीय जनता जनार्दन पार्टी आदि अब सूची से गायब हैं।
लखनऊ के 14 दलों में कुछ स्थानीय स्तर के थे, जिनके पते शहर के विभिन्न इलाकों में रजिस्टर्ड थे, लेकिन जांच में फर्जी साबित हुए। आयोग ने पाया कि ये दल केवल पंजीकरण का फायदा उठाकर चंदा इकट्ठा कर रहे थे, लेकिन कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं चला रहे थे। इससे चुनावी खर्च की रिपोर्टिंग भी प्रभावित हो रही थी। कुल मिलाकर, यूपी में सबसे ज्यादा दल प्रभावित हुए, उसके बाद महाराष्ट्र (44), तमिलनाडु (42) और दिल्ली (40)। आयोग ने 359 अन्य दलों पर भी कार्रवाई शुरू कर दी है, जो चुनाव तो लड़ते हैं लेकिन तीन सालों से ऑडिटेड खाते जमा नहीं कर रहे।


चुनावी परिदृश्य पर क्या असर पड़ेगा?
यह कदम चुनाव प्रणाली को साफ-सुथरा बनाने की दिशा में बड़ा प्रयास है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे फर्जी दलों का बोलबाला कम होगा और असली राजनीतिक दलों को मजबूती मिलेगी। यूपी जैसे बड़े राज्य में जहां सैकड़ों दल पंजीकृत हैं, यह फैसला आगामी पंचायत और विधानसभा चुनावों को प्रभावित कर सकता है। कई छोटे दल अब सक्रिय होकर चुनाव लड़ने की तैयारी करेंगे, वरना अपील का रास्ता अपनाएंगे। लेकिन अपील में सफलता मिलना मुश्किल है, क्योंकि आयोग के पास स्पष्ट नियम हैं।
इसके अलावा, आयोग ने 23 राज्यों में 359 दलों को नोटिस जारी किए हैं, जिन्होंने 2021-24 के बीच खाते न जमा करने पर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। यूपी में ही 127 ऐसे दल हैं। कुल मिलाकर, यह अभियान देशभर के 2800 से ज्यादा RUPPs पर नजर रखे हुए है, ताकि चुनावी धांधली रुके। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे वोटरों का भरोसा बढ़ेगा और सच्चे लोकतंत्र की मजबूती होगी।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
