प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली, 12 जुलाई, 2025: भारत के लिए आज एक गौरवशाली क्षण तब आया जब यूनेस्को (UNESCO) ने ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स ऑफ इंडिया’ (Maratha Military Landscapes of India) को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की घोषणा की। इस सूची में छत्रपति शिवाजी महाराज के 12 ऐतिहासिक किलों को स्थान मिला है, जो महाराष्ट्र और तमिलनाडु में फैले हुए हैं। इन किलों में साल्हेर, शिवनेरी, लोहगढ़, खंडेरी, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और तमिलनाडु का गिंजी किला शामिल हैं। यह भारत की 44वीं विश्व धरोहर संपत्ति बन गई है, जो मराठा साम्राज्य की सैन्य रणनीति, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक महत्व को वैश्विक मंच पर उजागर करती है।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में उत्साह का माहौल पैदा कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने इस उपलब्धि की सराहना की है। इस लेख में हम इन किलों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्व को विस्तार से बताएंगे, साथ ही इस मान्यता के पीछे की प्रक्रिया और इसके प्रभावों पर प्रकाश डालेंगे।
मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स: असाधारण किलेबंदी
मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच मराठा शासकों द्वारा विकसित एक असाधारण किलेबंदी और सैन्य प्रणाली को दर्शाता है। इस प्रणाली की नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी थी, जिन्हें भारतीय इतिहास में उनकी सैन्य रणनीति, दूरदृष्टि और स्वराज्य की स्थापना के लिए जाना जाता है। मराठा साम्राज्य ने सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं, कोंकण तट, दक्कन पठार और पूर्वी घाटों की भौगोलिक विशेषताओं का उपयोग कर एक ऐसी सैन्य संरचना बनाई, जो न केवल रक्षा के लिए बल्कि व्यापार, प्रशासन और सामाजिक संगठन के लिए भी महत्वपूर्ण थी।
ये 12 किले मराठा सैन्य विचारधारा का प्रतीक हैं, जो भौगोलिक विविधता, रणनीतिक दृष्टिकोण और नवाचार को प्रदर्शित करते हैं। इनमें पहाड़ी किले (रायगढ़, राजगढ़, साल्हेर), तटीय किले (विजयदुर्ग, सुवर्णदुर्ग), द्वीपीय किले (सिंधुदुर्ग, खंडेरी) और पहाड़ी-वन किले (प्रतापगढ़) शामिल हैं। ये किले न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे, बल्कि मराठा साम्राज्य की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को भी दर्शाते हैं।

इन किलों को UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का प्रस्ताव जनवरी 2024 में विश्व धरोहर समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद 18 महीने की कठिन प्रक्रिया चली, जिसमें तकनीकी बैठकों, स्थल समीक्षाओं और ICOMOS (इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मोन्यूमेंट्स एंड साइट्स) के मिशन दौरों का आयोजन हुआ। 47वें विश्व धरोहर समिति सत्र (11-13 जुलाई, 2025) में 20 में से 18 सदस्य देशों ने भारत के इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
इस प्रक्रिया में महाराष्ट्र सरकार, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI), और राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार ने व्यक्तिगत रूप से UNESCO के अधिकारियों से मुलाकात कर तकनीकी प्रस्तुतियाँ दीं। यह सामूहिक प्रयास भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में सफल रहा।
जाने कौन से है वो 12 किले
मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स में 12 किलों को शामिल किया गया जिनमें से 11 महाराष्ट्र तथा 1 तमिलनाडु में स्तिथ है, जो मराठा सैन्य रणनीति और स्थापत्य कला के प्रतीक हैं, इनमें शामिल है:
1. साल्हेर किला (नासिक, महाराष्ट्र)
साल्हेर किला सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं में 1567 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और मराठा साम्राज्य की उत्तरी सीमा का एक महत्वपूर्ण रक्षा कवच माना जाता है। इसकी रणनीतिक स्थिति इसे व्यापार मार्गों और उत्तरी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए आदर्श बनाती थी। किले की संरचना में मजबूत दीवारें, जलाशय और प्राकृतिक चट्टानों का उपयोग किया गया है, जो मराठा स्थापत्य की विशेषता को दर्शाता है। साल्हेर को 1672 में मराठाओं ने मुगलों से जीता, जिसने उनकी सैन्य शक्ति को और सुदृढ़ किया।
साल्हेर किला मराठा साम्राज्य के लिए उत्तरी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चौकी था। यह किला कई युद्धों का साक्षी रहा, जिसमें मराठाओं ने मुगल सेना को कई बार परास्त किया। इसकी ऊँची चोटियाँ और दुर्गम रास्ते इसे दुश्मनों के लिए अभेद्य बनाते थे। किले में गणपति मंदिर और प्राचीन जलाशय जैसे तत्व मराठा संस्कृति और धार्मिक विश्वासों को भी प्रदर्शित करते हैं।

2. शिवनेरी किला (पुणे, महाराष्ट्र)
शिवनेरी किला छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मस्थान है, जो इसे मराठा इतिहास में एक विशेष स्थान प्रदान करता है। सह्याद्रि पर्वतों में 1030 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, यह किला प्राकृतिक रक्षा प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण है। किले में शिवाई देवी का मंदिर है, जिनके नाम पर शिवाजी महाराज का नाम रखा गया। इसकी सात परतों वाली दीवारें और जलाशय इसे सैन्य दृष्टिकोण से मजबूत बनाते हैं।
शिवनेरी मराठा साम्राज्य की नींव का प्रतीक है। यहाँ 1630 में शिवाजी महाराज का जन्म हुआ, और उनकी माता जीजाबाई ने इसे एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र बनाया। किला मराठा स्वराज्य की स्थापना के प्रारंभिक चरणों का साक्षी रहा है और इसकी संरचना मराठा स्थापत्य की सादगी और शक्ति को दर्शाती है।

3. लोहगढ़ किला (पुणे, महाराष्ट्र)
लोहगढ़ किला, जिसे ‘लौह का किला’ भी कहा जाता है, सह्याद्रि पर्वतों में 1050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसकी मजबूत रक्षा संरचना और दुर्गम रास्तों ने इसे मराठा साम्राज्य का एक अभेद्य गढ़ बनाया। किले में चार मुख्य द्वार और कई जलाशय हैं, जो इसे लंबे घेराबंदी के दौरान भी आत्मनिर्भर बनाते थे।
लोहगढ़ ने मराठा सेना को कई युद्धों में रणनीतिक लाभ प्रदान किया। यह किला 1648 में शिवाजी महाराज ने जीता और इसे मराठा साम्राज्य की खजाने की सुरक्षा के लिए उपयोग किया गया। इसकी प्राकृतिक और मानव-निर्मित रक्षा प्रणाली ने इसे मुगलों और अन्य शत्रुओं के लिए कठिन लक्ष्य बनाया।

4. खंडेरी किला (रायगढ़, महाराष्ट्र)
खंडेरी किला एक द्वीपीय किला है, जो अरब सागर में कोंकण तट के पास स्थित है। इसे 1660 में शिवाजी महाराज ने मराठा नौसेना की ताकत बढ़ाने और समुद्री व्यापार पर नजर रखने के लिए बनवाया। किले की स्थिति इसे समुद्री हमलों से सुरक्षित बनाती थी, और इसकी तोपें तटीय क्षेत्रों की रक्षा करती थीं।
खंडेरी ने मराठा नौसेना को इंग्रजों और सिद्दियों जैसे समुद्री शक्तियों के खिलाफ मजबूती प्रदान की। यह किला समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा और कोंकण तट पर मराठा प्रभुत्व स्थापित करने में महत्वपूर्ण था। इसकी रणनीतिक स्थिति ने इसे मराठा नौसेना का एक महत्वपूर्ण आधार बनाया।

5. रायगढ़ किला (रायगढ़, महाराष्ट्र)
रायगढ़ किला मराठा साम्राज्य की राजधानी था और 820 मीटर की ऊँचाई पर सह्याद्रि पर्वतों में स्थित है। यह किला अपनी भव्य स्थापत्य कला और 1737 सीढ़ियों या रोपवे के माध्यम से पहुँचने की सुविधा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, जो मराठा इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण था।
रायगढ़ मराठा शासन का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र था। यह किला 1674 में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का साक्षी रहा, जिसने स्वराज्य की स्थापना को औपचारिक रूप दिया। किले में बाजार, मंदिर और महल जैसे ढांचे मराठा साम्राज्य की समृद्धि और वैभव को दर्शाते हैं।

6. राजगढ़ किला (पुणे, महाराष्ट्र)
राजगढ़ किला मराठा साम्राज्य की पहली राजधानी थी और सह्याद्रि पर्वतों के शिखरों पर 1397 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया। इसकी प्राकृतिक रक्षा प्रणाली और रणनीतिक स्थिति ने इसे मराठा शासन के प्रारंभिक चरणों में महत्वपूर्ण बनाया। किले में तोरण दरवाजा और प्राचीन जलाशय इसकी स्थापत्य कला को दर्शाते हैं।
राजगढ़ ने मराठा साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह किला 1646 में शिवाजी महाराज ने जीता और इसे प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में विकसित किया। इसकी दुर्गम स्थिति ने इसे दुश्मनों के लिए अभेद्य बनाया और मराठा स्वराज्य की नींव को मजबूत किया।

7. प्रतापगढ़ किला (सतारा, महाराष्ट्र)
प्रतापगढ़ किला एक पहाड़ी-वन किला है, जो 1080 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसे 1656 में बनाया गया और यह 1659 में अफजल खान के खिलाफ शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध जीत का स्थल है। किले की संरचना में भवानी मंदिर और मजबूत दीवारें शामिल हैं।
प्रतापगढ़ की जीत ने मराठा साम्राज्य की शक्ति को स्थापित किया और शिवाजी महाराज की रणनीतिक प्रतिभा को प्रदर्शित किया। यह किला मराठा स्वराज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने बीजापुर सल्तनत के खिलाफ उनकी स्थिति को मजबूत किया।

8. सुवर्णदुर्ग किला (रत्नागिरी, महाराष्ट्र)
सुवर्णदुर्ग एक द्वीपीय किला है, जो कोंकण तट पर अरब सागर में स्थित है। इसे 1660 में मराठा नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए बनाया गया। किले की दीवारें और जलाशय इसे लंबी घेराबंदी के लिए उपयुक्त बनाते थे।
सुवर्णदुर्ग ने समुद्री सुरक्षा और व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह मराठा नौसेना का एक प्रमुख आधार था, जिसने कोंकण तट पर विदेशी शक्तियों और समुद्री डाकुओं के खिलाफ रक्षा प्रदान की। इसकी रणनीतिक स्थिति ने इसे मराठा साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।

9. पन्हाला किला (कोल्हापुर, महाराष्ट्र)
पन्हाला किला एक पहाड़ी-पठारी किला है, जो 845 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसकी विशाल संरचना और रणनीतिक स्थिति ने इसे मराठा साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाया। किले में सज्जा कोठी और अंबारखाना जैसे ढांचे हैं।
पन्हाला किला 1660 में शिवाजी महाराज के पवनखिंड युद्ध से पहले भागने का स्थल था। यह किला मराठा सैन्य रणनीति का केंद्र रहा और कई युद्धों का साक्षी है। इसकी स्थिति ने इसे दक्कन और कोंकण के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाया।

10. विजयदुर्ग किला (सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र)
विजयदुर्ग किला, जिसे पहले ‘घेरिया’ कहा जाता था, कोंकण तट पर एक तटीय किला है। इसे 1653 में शिवाजी महाराज ने जीता और मराठा नौसेना का आधार बनाया। किले की 40 फीट ऊँची दीवारें और समुद्र में छिपा प्रवेश द्वार इसे अभेद्य बनाते थे।
विजयदुर्ग ने मराठा नौसेना को पुर्तगालियों, इंग्रजों और सिद्दियों के खिलाफ मजबूती दी। यह किला समुद्री व्यापार और रक्षा में महत्वपूर्ण था और मराठा नौसैनिक शक्ति का प्रतीक था। इसकी रणनीतिक स्थिति ने इसे ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ कहा जाने का गौरव दिलाया।

11. सिंधुदुर्ग किला (मालवण, महाराष्ट्र)
सिंधुदुर्ग किला एक द्वीपीय किला है, जिसे 1664-1667 के बीच शिवाजी महाराज ने बनवाया। यह कोंकण तट पर अरब सागर में स्थित है और इसे बनाने में तीन साल लगे। किले की 30 फीट ऊँची दीवारें और 12 बुर्ज इसे एक मजबूत रक्षा कवच प्रदान करते हैं।
सिंधुदुर्ग मराठा नौसेना का प्रमुख केंद्र था और विदेशी शक्तियों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण था। यह किला मराठा स्थापत्य और नौसैनिक रणनीति का उत्कृष्ट उदाहरण है। किले में शिवाजी महाराज का एकमात्र स्मारक भी है, जो इसे सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है।

12. गिंजी किला (विल्लुपुरम, तमिलनाडु)
गिंजी किला, जिसे ‘दक्षिण भारत की ग्रेट वॉल’ कहा जाता है, दक्षिण भारत में मराठा साम्राज्य की तीसरी राजधानी थी। यह 800 मीटर की ऊँचाई पर तीन पहाड़ियों पर फैला है और इसमें कई मंदिर, महल और जलाशय हैं।
गिंजी ने 1677 में शिवाजी महाराज द्वारा जीते जाने के बाद दक्षिण में मराठा प्रभाव को बढ़ाया। यह किला मराठा साम्राज्य की दक्षिणी सीमाओं की रक्षा और प्रशासनिक केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण था। इसकी विशाल संरचना और रणनीतिक स्थिति ने इसे दक्षिण भारत में मराठा शक्ति का प्रतीक बनाया।

सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को दर्शाते हैं मराठा किले
मराठा सैन्य रणनीति छत्रपति शिवाजी महाराज की दूरदर्शी सोच और भौगोलिक परिस्थितियों के कुशल उपयोग का परिणाम थी। सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं, कोंकण तट, दक्कन पठार और पूर्वी घाटों की प्राकृतिक विशेषताओं का उपयोग करते हुए, मराठाओं ने ऐसी किलेबंदी प्रणाली विकसित की जो रक्षा, व्यापार और प्रशासन के लिए आदर्श थी। किलों की रणनीतिक स्थिति का चयन अत्यंत सावधानी से किया गया, जैसे कि साल्हेर और लोहगढ़ जैसे पहाड़ी किले जो व्यापार मार्गों और सीमाओं की रक्षा करते थे, या विजयदुर्ग और सिंधुदुर्ग जैसे तटीय और द्वीपीय किले जो समुद्री शक्तियों पर नियंत्रण रखते थे।
शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध (गनीमी कावा) की रणनीति को अपनाया, जिसमें किलों का उपयोग दुश्मनों पर आकस्मिक हमले करने और सुरक्षित ठिकानों के रूप में किया जाता था। इन किलों ने न केवल सैन्य अभियानों को समर्थन दिया, बल्कि मराठा साम्राज्य की सामाजिक और आर्थिक संरचना को भी मजबूती प्रदान की, जैसे कि रायगढ़ और राजगढ़ में बाजार और प्रशासनिक केंद्रों की स्थापना।

मराठा स्थापत्य कला में प्राकृतिक संसाधनों और नवाचार का समन्वय देखने को मिलता है। किलों की संरचना में चट्टानों को काटकर बनाए गए जलाशय, परतदार दीवारें और मंदिर जैसे ढांचे शामिल थे, जो उनकी कार्यक्षमता और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग में समुद्र में छिपे प्रवेश द्वार और मजबूत बुर्ज विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करते थे, जबकि शिवनेरी और प्रतापगढ़ जैसे किलों में प्राकृतिक चट्टानों और ऊँचाई का उपयोग दुश्मनों के लिए अभेद्य रक्षा प्रणाली बनाता था। किलों में जल संरक्षण के लिए बनाए गए तालाब और कुएँ लंबी घेराबंदी के दौरान आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करते थे।
इसके अलावा, मराठा स्थापत्य में सादगी और कार्यक्षमता पर जोर दिया गया, जो स्थानीय सामग्री और पर्यावरण के साथ सामंजस्य को दर्शाता है। ये किले न केवल सैन्य गढ़ थे, बल्कि मराठा संस्कृति, धर्म और सामाजिक जीवन के केंद्र भी थे, जो उनकी व्यापक उपयोगिता और स्थायी प्रभाव को उजागर करते हैं।
संरक्षण और प्रबंधन
इन 12 किलों में से आठ (शिवनेरी, लोहगढ़, रायगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और गिंजी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन संरक्षित हैं, जबकि शेष चार (साल्हेर, राजगढ़, खंडेरी और प्रतापगढ़) महाराष्ट्र सरकार के पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय द्वारा संरक्षित हैं। इन किलों का संरक्षण राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय नीतियों के तहत किया जाता है, जो उनकी प्रामाणिकता और ऐतिहासिक महत्व को बनाए रखने के लिए समर्पित हैं।
राज्य स्तरीय शीर्ष सलाहकार समिति, जिसकी अध्यक्षता महाराष्ट्र के मुख्य सचिव करते हैं, इन किलों के प्रबंधन और संरक्षण की देखरेख करती है। यह समिति पर्यावरण, पर्यटन, और पुरातत्व विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करती है।
इस सम्मान से हर भारतीय गदगद है – प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शुभ संदेश को साझा करते हुए अपने ट्वीट में कहा, “इस सम्मान से हर भारतीय गदगद है। इन ‘मराठा सैन्य परिदृश्यों’ में 12 भव्य किले शामिल हैं, जिनमें से 11 महाराष्ट्र में और 1 तमिलनाडु में है। जब हम गौरवशाली मराठा साम्राज्य की बात करते हैं, तो हम इसे सुशासन, सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक कल्याण पर ज़ोर से जोड़ते हैं। महान शासक किसी भी अन्याय के आगे न झुकने के अपने साहस से हमें प्रेरित करते हैं। मैं सभी से इन किलों को देखने और मराठा साम्राज्य के समृद्ध इतिहास के बारे में जानने का आह्वान करता हूँ।”
Every Indian is elated with this recognition.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 12, 2025
These ‘Maratha Military Landscapes’ include 12 majestic forts, 11 of which are in Maharashtra and 1 is in Tamil Nadu.
When we speak of the glorious Maratha Empire, we associate it with good governance, military strength, cultural… https://t.co/J7LEiOAZqy
इसके साथ ही उन्होंने 2014 रायगढ़ किले की अपनी यात्रा की तस्वीरीं को साझा करते हुए लिखा की उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन करने का अवसर मिला था। उस यात्रा को वे हमेशा संजो कर रखेंगे।

UNESCO की इस मान्यता ने मराठा सैन्य विरासत को वैश्विक पहचान दिलाई है। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करता है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। इन किलों की प्रामाणिकता, संरक्षण और सामुदायिक महत्व को देखते हुए, ये विश्व धरोहर स्थल के रूप में ‘उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य’ (Outstanding Universal Value) के मापदंडों को पूरा करते हैं।
ये किले केवल पत्थर की संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि मराठा साम्राज्य की साहसिकता, दूरदृष्टि और स्वराज्य की भावना का प्रतीक हैं। शिवाजी महाराज की जन्मभूमि शिवनेरी, अफजल खान के खिलाफ जीत का प्रतीक प्रतापगढ़ और राज्याभिषेक का केंद्र रायगढ़ जैसे किलों से जुड़ी घटनाएँ आज भी मराठा समुदाय और शिवप्रेमियों द्वारा उत्साह के साथ स्मरण की जाती हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज के 12 किलों को UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल करना भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह मराठा साम्राज्य की सैन्य रणनीति, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक विरासत को विश्व मंच पर स्थापित करता है। ये किले न केवल मराठा शासकों की दूरदृष्टि और साहस का प्रतीक हैं, बल्कि भारत की समृद्ध इतिहास और संस्कृति को भी दर्शाते हैं। इस मान्यता से न केवल इन किलों का संरक्षण सुनिश्चित होगा, बल्कि यह वैश्विक पर्यटकों को भारत की इस अनमोल धरोहर की ओर आकर्षित करेगा।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।