प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: राजस्थान के उदयपुर में जून 2022 में हुई टेलर कन्हैया लाल की निर्मम हत्या पर आधारित ‘उदयपुर फाइल्स: कन्हैया लाल टेलर मर्डर’ (Udaipur Files) फिल्म शुरू से ही विवादों के घेरे में रही है, क्योंकि यह एक संवेदनशील और चर्चित आपराधिक मामले को दर्शाती है। फिल्म को 11 जुलाई 2025 को वैश्विक रिलीज के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 जुलाई 2025 को इसके प्रदर्शन पर अंतरिम रोक लगा दी।
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार द्वारा गठित पैनल की रिपोर्ट आने तक फिल्म की रिलीज पर रोक बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित की है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म की समीक्षा के लिए एक पैनल गठित किया है, जिसकी बैठक 16 जुलाई को दोपहर 2:30 बजे हुई। इस लेख में हम इस मामले के विभिन्न पहलुओं, कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कन्हैया लाल हत्याकांड
28 जून 2022 को उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल की दो व्यक्तियों, मोहम्मद रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद, ने धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। हत्यारों ने इस घटना का वीडियो जारी कर दावा किया कि यह हत्या पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ दिए गए विवादित बयान के समर्थन में कन्हैया लाल द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट साझा करने के जवाब में की गई। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश फैलाया और सामाजिक तनाव को बढ़ावा दिया।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ली और आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आरोप दर्ज किए। 9 फरवरी 2023 को NIA की विशेष अदालत ने हत्या, आतंकी गतिविधियों, आपराधिक साजिश और अन्य आरोपों को स्वीकार किया। इस मामले में एक अन्य आरोपी, मोहम्मद जावेद, को 5 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है।
कानूनी लड़ाई में फंसी फिल्म ‘Udaipur Files’
फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज को लेकर कई पक्षों ने आपत्तियां दर्ज की हैं। कन्हैया लाल हत्याकांड के एक आरोपी, मोहम्मद जावेद, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि फिल्म का प्रदर्शन उनकी चल रही सुनवाई की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि फिल्म मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है।
दूसरी ओर, फिल्म के निर्माता, जानी फायरफॉक्स मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, ने दिल्ली हाईकोर्ट के 10 जुलाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के पैनल को निर्देश दिया कि वह सभी पक्षों, विशेष रूप से आरोपी मोहम्मद जावेद की आपत्तियों को सुनने के बाद तुरंत निर्णय ले। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि फिल्म रिलीज के बाद आपत्तिजनक पाई जाती है, तो आरोपियों की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं होगी, जबकि निर्माताओं को मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता है।

कन्हैया लाल की कहानी को सामने लाने का प्रयास
‘उदयपुर फाइल्स’ ने न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी तीखी बहस छेड़ दी है। फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा के विवादित बयान का उल्लेख होने के कारण इसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील माना जा रहा है। कुछ संगठनों का मानना है कि यह फिल्म नफरत को बढ़ावा दे सकती है और सामाजिक तनाव को और गहरा सकती है।
दूसरी ओर, फिल्म के समर्थकों का तर्क है कि यह कन्हैया लाल की कहानी को सामने लाने और आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाने का प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं और कन्हैया लाल के बेटे, यश साहू, को सुरक्षा संबंधी चिंताओं के लिए पुलिस से संपर्क करने की अनुमति दी है। यह मामला न केवल स्वतंत्र अभिव्यक्ति और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन का सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संवेदनशील मुद्दों पर आधारित फिल्में सामाजिक सौहार्द को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।
‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज को लेकर चल रहा विवाद स्वतंत्र अभिव्यक्ति, सामाजिक सद्भाव और न्यायिक प्रक्रिया के बीच जटिल संतुलन को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कि केंद्र सरकार के पैनल की रिपोर्ट के बिना फिल्म रिलीज नहीं होगी, यह दर्शाता है कि न्यायालय इस मामले को गंभीरता से ले रहा है। 21 जुलाई 2025 को होने वाली अगली सुनवाई इस बात पर प्रकाश डालेगी कि क्या यह फिल्म सिनेमाघरों में दर्शकों तक पहुंच पाएगी या नहीं।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।