प्रमुख बिंदु-
ग्लोबल डेस्क: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को एक बड़ा फैसला लिया है, जिसने वैश्विक टेक इंडस्ट्री में हड़कंप मचा दिया। H-1B वीजा की सालाना फीस को 1,000 डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दिया गया है। यह बदलाव 21 सितंबर से लागू हो जाएगा। H-1B वीजा उच्च कुशल विदेशी पेशेवरों के लिए है, जिसमें ज्यादातर भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स आते हैं।
पिछले साल जारी 85,000 H-1B वीजा में 71% भारतीयों को मिले थे। ट्रंप का कहना है कि यह अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी कंपनियों को ही ज्यादा नुकसान होगा। साथ ही, ट्रंप ने ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा प्रोग्राम लॉन्च किया है, जो अमीर निवेशकों के लिए है।
ट्रंप का नया H-1B नियम
ट्रंप ने शुक्रवार को एक प्रोजेकलेशन साइन किया, जिसमें H-1B वीजा के नए आवेदनों के लिए कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर का भुगतान करना होगा। यह फीस मौजूदा 215 डॉलर रजिस्ट्रेशन और 780 डॉलर फॉर्म I-129 फीस के अलावा है। इसका मकसद H-1B प्रोग्राम के ‘दुरुपयोग’ को रोकना है, जहां कंपनियां सस्ते विदेशी मजदूरों से अमेरिकी वर्कर्स को हटाती हैं। ट्रंप के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा, “अब कंपनियां ट्रेनी विदेशी वर्कर्स को नहीं ला सकेंगी, क्योंकि यह आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं। अमेरिकंस को ट्रेनिंग मिलेगी।”
ट्रंप ने साथ ही ‘ट्रंप गोल्ड कार्ड’ प्रोग्राम शुरू किया, जिसमें 5 मिलियन डॉलर (करीब 416 करोड़ रुपये) निवेश करने पर स्थायी निवास और नागरिकता का रास्ता मिलेगा। यह EB-5 निवेशक वीजा को रिप्लेस करेगा। इसके अलावा, स्पॉन्सर्ड वर्कर्स के लिए फास्ट-ट्रैक वीजा 2 मिलियन डॉलर में उपलब्ध होगा। एक ‘प्लेटिनम कार्ड’ भी प्लान में है, जो 5 मिलियन डॉलर का होगा और अमेरिका में 270 दिनों तक टैक्स-फ्री रहने की सुविधा देगा। लेकिन H-1B फीस हाइक से टेक सेक्टर में हाहाकार मच गया है।
भारतीय IT कंपनियों पर बिजली जैसा झटका
यह फैसला भारतीय आईटी दिग्गजों के लिए आफत है। इंफोसिस, विप्रो, TCS और कॉग्निजेंट जैसी कंपनियां H-1B पर बहुत निर्भर हैं। 2025 में TCS ने 5,505, कॉग्निजेंट ने 2,493 और इंफोसिस ने 2,004 H-1B वीजा हासिल किए। नई फीस से इन कंपनियों का खर्चा 13.4 मिलियन डॉलर से बढ़कर 1.34 बिलियन डॉलर हो जाएगा, जो FY25 में इनकी कुल कमाई का 10% है।
19 सितंबर को अमेरिकी बाजार में इंफोसिस के ADR 4.5% गिरे, विप्रो 3.4%, कॉग्निजेंट 4.3% और एक्सेंचर 1.3% नीचे आए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनियां अब ऑन-साइट स्टाफिंग कम करेंगी, ऑफशोरिंग बढ़ाएंगी और केवल सीनियर रोल्स के लिए H-1B यूज करेंगी। TCS के CEO ने पहले कहा था कि H-1B उनकी कुल जरूरत का छोटा हिस्सा है, लेकिन कुल मिलाकर भारतीय आईटी सेक्टर को 46% H-1B पर निर्भरता कम करने की चुनौती है। अमेरिकी कंपनियां जैसे अमेजन (12,000+ वीजा) और माइक्रोसॉफ्ट (5,000+) भी प्रभावित होंगी, जो इनोवेशन को चोट पहुंचा सकता है।
भारत सरकार का रिस्पॉन्स
भारतीय सरकार ने इस फैसले का असर आंकने का काम शुरू कर दिया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने मनीकंट्रोल को बताया कि अमेरिकी दूतावास से संपर्क है और नास्कॉम से सलाह ली जा रही है। अधिकारी ने कहा, “ट्रंप की नीति से अमेरिकी टेक कंपनियों को ज्यादा नुकसान होगा, जो भारतीय प्रोफेशनल्स पर निर्भर हैं। लेकिन भारत के लिए मौके हैं—कंपनियां अब ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) यहां सेटअप करेंगी।”
अमिताभ कांत ने कहा, “यह US इनोवेशन को रोक सकता है और पेटेंट्स भारत की ओर शिफ्ट हो सकते हैं।” सरकार को लगता है कि यह नीति कानूनी चुनौतियों का सामना करेगी, क्योंकि यह विदेशी और अमेरिकी कंपनियों दोनों को प्रभावित करेगी। कांग्रेस ने इसे ‘ट्रंप का भारत को रिटर्न गिफ्ट’ बताया और मोदी सरकार पर ‘कमजोर’ होने का आरोप लगाया।
भारत के लिए क्यों है सुनहरा अवसर?
ट्रंप का यह झटका भारत के लिए बूमरैंग साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B महंगे होने से US कंपनियां भारत में GCC बढ़ाएंगी, जहां पहले से 1,700 से ज्यादा सेंटर्स हैं। इससे लाखों जॉब्स पैदा होंगे। भारतीय आईटी फर्म्स अब रिमोट वर्क और ऑटोमेशन पर फोकस करेंगी, जो उनकी लागत बचाएगा। साथ ही, युवाओं के लिए घरेलू बाजार मजबूत होगा, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया को बूस्ट मिलेगा। रेमिटेंस पर असर पड़ेगा (2024 में US से 32 बिलियन डॉलर), लेकिन GCC से नई कमाई के रास्ते खुलेंगे। कुल मिलाकर, यह भारत को वैश्विक टैलेंट हब बनाने का मौका है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।