प्रमुख बिंदु-
बनारस की गलियों में एक ऐसी मिठाई है, जो न केवल स्वाद के लिए मशहूर है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी भी अपने में समेटे हुए है। यह है तिरंगा बर्फी (Tiranga Barfi), जिसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त है। यह मिठाई केवल खाने की चीज नहीं, बल्कि देशभक्ति और बलिदान का प्रतीक है। 1940 के दशक में जब अंग्रेजों ने भारत के तिरंगे पर प्रतिबंध लगा दिया था, तब इस तिरंगा बर्फी, जिसे उस दौर में राष्ट्रीय बर्फी के नाम से जाना जाता था, इसने क्रांतिकारियों के बीच गुप्त संदेशों के आदान-प्रदान का माध्यम बनकर स्वतंत्रता की भावना को जगाया। आइए, इस मिठाई के इतिहास, सामग्री और स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका को विस्तार से जानें।
तिरंगा बर्फी जो बनी स्वतंत्रता की प्रतीक
तिरंगा बर्फी की कहानी 1940 में शुरू होती है, जब बनारस के मशहूर मिठाई दुकान राम भंडार के तत्कालीन संचालक मदन गोपाल गुप्ता ने इसे तैयार किया। उस समय भारत अंग्रेजी हुकूमत के अधीन था और तिरंगे को सार्वजनिक रूप से फहराना या प्रदर्शित करना प्रतिबंधित था। ऐसे में, क्रांतिकारियों को अपने संदेशों को गुप्त रूप से साझा करने के लिए एक अनोखे तरीके की जरूरत थी। मदन गोपाल गुप्ता ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर तिरंगा बर्फी को बनाया जो उस समय राष्ट्रिय बर्फी के रूप में जानी जाती थी, जो भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का प्रतीक थी। यह बर्फी न केवल एक मिठाई थी, बल्कि एक सांकेतिक संदेश भी थी, जो लोगों में देशभक्ति की भावना जगाती थी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बर्फी को मुफ्त में बांटा जाता था ताकि अंग्रेजी शासन के खिलाफ जनता में जागरूकता फैलाई जा सके। जब अंग्रेजों को इस बर्फी के बारे में पता चला, तो वे इसके तिरंगे जैसे रंगों को देखकर हैरान रह गए। यह मिठाई क्रांतिकारियों के लिए एक गुप्त हथियार बन गई थी, जिसके जरिए वे बिना डर के अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे। यह बर्फी बनारस में स्वतंत्रता संग्राम का एक अनोखा प्रतीक बन गई, जो आज भी लोगों के दिलों में देशभक्ति का जज्बा जगाती है।

सामग्री और स्वाद, केवल प्रकृति की मिठास
तिरंगा बर्फी की खासियत यह है कि इसके रंग पूरी तरह से प्राकृतिक सामग्री से बनाए जाते हैं, बिना किसी कृत्रिम (केमिकल) रंग के। इस बर्फी को बनाने में केसर, पिस्ता, खोया और काजू का उपयोग होता है। केसर से बर्फी की ऊपरी परत को केसरिया रंग दिया जाता है, जो तिरंगे के शीर्ष रंग के रूप में शौर्य को दर्शाता है। बीच की सफेद परत खोया और काजू के मिश्रण से बनती है, जो शांति और सत्य का प्रतीक है। सबसे नीचे हरी परत पिस्ता से तैयार की जाती है, जो उर्वरता और समृद्धि को दर्शाती है। इसके ऊपर बादाम और अन्य ड्राई फ्रूट्स डाले जाते हैं, जो इसे और भी स्वादिष्ट बनाते हैं।

राम भंडार के वर्तमान संचालक अरुण गुप्ता के अनुसार, इस बर्फी का स्वाद आज भी वही है, जो 1940 के दशक में था। इसका कारण है कि वे आज भी पारंपरिक तरीके और प्राकृतिक सामग्री का ही उपयोग करते हैं। यह बर्फी न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि इसके रंग तिरंगे की भावना को जीवंत करते हैं। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर इसकी मांग खूब बढ़ जाती है और लोग इसे देशभक्ति के प्रतीक के रूप में ले जाते हैं।
जवाहर लड्डू, मोती पाग, मदन मोहन और गांधी गौरव
राम भंडार ने तिरंगा बर्फी के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई अन्य मिठाइयाँ भी पेश कीं, जो उस समय के क्रांतिकारी भावनाओं को दर्शाती थीं। इनमें जवाहर लड्डू, मोती पाग, मदन मोहन और गांधी गौरव शामिल हैं। ये मिठाइयाँ 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पेश की गई थीं और इनका नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रीय नेताओं के सम्मान में किया गया था। जवाहर लड्डू का नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर, मोती पाग का नाम मोतीलाल नेहरू के नाम पर, गांधी गौरव का नाम महात्मा गांधी के सम्मान में, और मदन मोहन का नाम पंडित मदन मोहन मालवीय के सम्मान में रखा गया था।
ये मिठाइयाँ न केवल स्वादिष्ट थीं, बल्कि इन्हें भी मुफ्त में बांटा जाता था ताकि लोगों में स्वतंत्रता की भावना को और मजबूत किया जा सके। ये मिठाइयाँ बनारस में इतनी लोकप्रिय हुईं कि इनका स्वाद और नाम स्थानीय लोगों के बीच आजादी की लड़ाई का पर्याय बन गया। हालांकि, समय के साथ इन मिठाइयों की लोकप्रियता तिरंगा बर्फी जितनी नहीं रही, लेकिन राम भंडार आज भी इन्हें विशेष अवसरों पर तैयार करता है। ये मिठाइयाँ उस दौर की क्रांतिकारी भावना और बनारस की समृद्ध मिठाई संस्कृति का जीवंत उदाहरण हैं।

आज भी जीवित है तिरंगा बर्फी की विरासत
आजादी के बाद भी तिरंगा बर्फी बनारस की शान बनी हुई है। राम भंडार में यह बर्फी आज भी बिकती है, लेकिन इसका महत्व पैसे से कहीं ज्यादा है। यह मिठाई न केवल बनारस की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह उन क्रांतिकारियों की याद भी दिलाती है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हाल के वर्षों में, सरकार द्वारा इस बर्फी को GI टैग मिलने से इसकी ख्याति और बढ़ गई है। यह टैग इसे एक विशिष्ट पहचान देता है और बनारस की इस अनूठी मिठाई को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में मदद करता है।

हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को, बनारस के लोग इस बर्फी को खरीदकर स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों को याद करते हैं, जिन्होंने तिरंगे की शान को बनाए रखने के लिए यह अनोखा तरीका अपनाया। आज भी, जब लोग इस बर्फी को देखते हैं, उनके मन में देशभक्ति की भावना जाग उठती है। यह मिठाई न केवल स्वाद की दृष्टि से खास है, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक जीवंत कहानी है, जो पीढ़ियों तक प्रेरणा देती रहेगी।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।