प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: 10 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर एक महत्वपूर्ण सुनवाई की। कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड, राशन कार्ड और इलेक्टोरल फोटो पहचान पत्र को मतदाता पहचान के लिए स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने पर विचार करे। हालांकि, कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन ECI से कहा कि अगर वह इन दस्तावेजों को शामिल नहीं करता, तो इसके लिए ठोस कारण बताए। यह सुनवाई बिहार में मतदाता सूची के संशोधन को लेकर उठे विवादों और याचिकाओं पर आधारित थी।
क्या है विवाद ?
निर्वाचन आयोग ने 24 जून 2025 को एक निर्देश जारी किया, जिसमें बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की बात कही गई। इस निर्देश के तहत, बिहार के लाखों मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे। खासकर, जिन मतदाताओं का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेज देने होंगे। 2004 के बाद जन्मे मतदाताओं को न केवल अपने, बल्कि अपने माता-पिता के दस्तावेज भी जमा करने होंगे। यदि माता-पिता में से कोई विदेशी नागरिक है, तो उनके पासपोर्ट और वीजा की कॉपी भी मांगी गई है।
इस निर्देश को असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद सांसद मनोज झा और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव सहित कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक है और इससे बिहार के लगभग 3 करोड़ मतदाता मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं, खासकर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय।

सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने बिहार में ECI द्वारा 24 जून को जारी निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया, जिसमें मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन ECI से आधार, राशन कार्ड और EPIC को पहचान के दस्तावेजों के रूप में शामिल करने पर विचार करने को कहा।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “दस्तावेजों की जांच के बाद, ECI ने बताया कि मतदाता सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची है, जो पूर्ण नहीं है। हमारी राय में, अगर आधार कार्ड, EPIC और राशन कार्ड को शामिल किया जाता है, तो यह न्याय के हित में होगा। यह ECI पर निर्भर है कि वह इन दस्तावेजों को स्वीकार करता है या नहीं। अगर वह इन्हें स्वीकार नहीं करता, तो उसे इसके कारण बताने होंगे, जो याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट करें।”
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि बिहार में नवंबर में होने वाले चुनावों के कारण समय बहुत कम है। इस वजह से कोर्ट ने ECI को नोटिस जारी किया और जवाब मांगा। बेंच ने निर्देश दिया, “इस मामले की सुनवाई की जरूरत है। इसे 28 जुलाई को उचित कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। ECI 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करे और याचिकाकर्ता 28 जुलाई तक अपना प्रत्युत्तर दाखिल करें।”

कोर्ट ने उठाए तीन प्रमुख सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन महत्वपूर्ण सवालों को रेखांकित किया:
- ECI के अधिकार: क्या ECI को इस तरह की प्रक्रिया आयोजित करने का अधिकार है?
- प्रक्रिया का तरीका: ECI इन अधिकारों का उपयोग कैसे कर रहा है?
- समयसीमा: नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए समयसीमा बहुत कम है, और अधिसूचना पहले जारी होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मतदाता सूची का संशोधन संविधान के तहत ECI का एक अनिवार्य दायित्व है। जस्टिस धूलिया ने कहा, “वे जो कर रहे हैं, वह संविधान के तहत उनका कर्तव्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो संविधान के तहत नहीं है।”
आधार कार्ड को लेकर कोर्ट की चिंता
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि आधार कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा। जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, “हमें लगता है कि चूंकि आधार को मतदाता सूची में शामिल करने के लिए एक ठोस प्रमाण के रूप में लिया गया है, इसे शामिल करना चाहिए। आपकी गणना सूची पहचान से संबंधित है – मैट्रिक सर्टिफिकेट आदि।”
जस्टिस धूलिया ने भी कहा, “यह पूरी प्रक्रिया केवल पहचान स्थापित करने के लिए है।” उन्होंने ECI के वकील राकेश द्विवेदी से पूछा, “मान लीजिए मैं जाति प्रमाण पत्र चाहता हूं। मैं अपना आधार कार्ड दिखाता हूं। इसके आधार पर मुझे जाति प्रमाण पत्र मिल जाता है। तो यह एक स्वीकार्य दस्तावेज है, लेकिन आधार नहीं। यह एक बुनियादी दस्तावेज है, जिसे कई जगह स्वीकार किया जाता है, लेकिन आप इसे स्वीकार नहीं कर रहे।”
द्विवेदी ने जवाब दिया, “आधार एक्ट के तहत मुझे इसे नागरिकता या निवास प्रमाण के रूप में उपयोग करने से रोका गया है।” इस पर जस्टिस बागची ने कहा, “कृपया ध्यान दें कि आधार एक्ट को अन्य कानूनों को नजरअंदाज करके नहीं पढ़ा जा सकता। हमें दोनों कानूनों को एक साथ पढ़ना होगा। जैसे ही ड्राफ्ट रोल प्रकाशित होगा, कुछ नाम हटाए जाने की संभावना है।”
कोर्ट ने कह, प्रथम दृष्टया बिहार में मतदाता सूची की एसआईआर के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड पर विचार किया जा सकता है।
SC: Prima facie Aadhaar, voter ID, ration cards can be considered during SIR of electoral rolls in Bihar
— Press Trust of India (@PTI_News) July 10, 2025
ECI का रुख और याचिकाकर्ताओं की दलीलें
ECI ने 24 जून को एक निर्देश जारी किया था, जिसमें 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं होने वाले मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने को कहा गया। इसके अलावा, दिसंबर 2004 के बाद जन्मे मतदाताओं को अपने और अपने माता-पिता दोनों के नागरिकता दस्तावेज जमा करने होंगे। अगर माता-पिता में से कोई विदेशी नागरिक है, तो उनके पासपोर्ट और वीजा की भी आवश्यकता होगी।

याचिकाकर्ताओं, जिनमें एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और कई विपक्षी नेता जैसे महुआ मोइत्रा, मनोज झा, योगेंद्र यादव, केसी वेणुगोपाल, सुप्रिया सुले, डी राजा, हरिंदर मलिक, अरविंद सावंत, सरफराज अहमद और दीपंकर भट्टाचार्य शामिल थे, ने इस निर्देश को चुनौती दी। उनका कहना था कि ये आवश्यकताएं अत्यधिक जटिल हैं और बिहार जैसे राज्य में, जहां गरीबी, अशिक्षा और कमजोर पंजीकरण प्रणाली है, इससे लाखों वास्तविक मतदाताओं का मताधिकार छिन सकता है।
ADR ने अपनी याचिका में कहा कि यह निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रावधानों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया कि यह आदेश नई दस्तावेज आवश्यकताएं लागू करता है और नागरिकता साबित करने का बोझ नागरिकों पर डालता है। आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से स्वीकृत दस्तावेजों को बाहर करने से गरीब और हाशिए पर रहने वाले मतदाताओं, खासकर ग्रामीण बिहार में, को नुकसान होगा।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बिहार में जन्म पंजीकरण का स्तर ऐतिहासिक रूप से कम रहा है और कई मतदाताओं के पास आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं। ADR ने अनुमान लगाया कि बिहार के तीन करोड़ से अधिक मतदाता इन मानदंडों को पूरा नहीं कर पाएंगे और उनकी मतदाता सूची से नाम हटाए जा सकते हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत विशेष संशोधन केवल दर्ज किए गए कारणों के लिए अनुमत है, लेकिन ECI ने अपने आदेश के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिए।
वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया, “2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं होने वालों पर नागरिकता साबित करने का बोझ डालना मनमाना है। उन्होंने कला, खेल और अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए छूट दी है, जो पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। यह प्रक्रिया कानून के तहत आधारहीन है।”
कोर्ट और ECI के बीच हुई बहस
जस्टिस धूलिया ने कहा, “मतदाता सूची का संशोधन संविधान के तहत एक जनादेश है। ECI ने 2003 को आधार बनाया क्योंकि तब गहन प्रक्रिया की गई थी। उनके पास उसका डेटा है। उन्हें फिर से शुरुआत क्यों करनी चाहिए? ECI का इसके पीछे एक तर्क है।”
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने ECI के अधिकार पर सवाल उठाया और कहा, “ECI को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि कौन नागरिक है और कौन नहीं। अगर आप फॉर्म नहीं भरते, तो आप वोट नहीं दे सकते। यह कैसे स्वीकार्य है? यह बोझ उन पर है कि वे साबित करें कि मैं नागरिक नहीं हूं, मुझ पर नहीं।”
जस्टिस बागची ने कहा, “नागरिकता के लिए साक्ष्य की सख्ती से जांच होनी चाहिए और यह एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए।” इस पर ECI के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, “हमें प्रक्रिया पूरी करने दीजिए। हम किसी भी समय रुक सकते हैं। चुनाव नवंबर में हैं। अभी हमें रोकने की जरूरत नहीं है।”
कोर्ट का अंतिम निर्देश
कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि वह ECI के कामकाज में हस्तक्षेप करने से बचता है। हालांकि, उसने ECI से आधार, राशन कार्ड और EPIC को शामिल करने पर विचार करने और अगर इन्हें शामिल नहीं किया जाता, तो इसके कारण बताने को कहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं कर रहे हैं।
क्या है SIR प्रक्रिया और क्यों हो रहा विवाद?
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का आदेश जारी किया। इसके तहत सभी मतदाताओं को व्यक्तिगत गणना फॉर्म भरना अनिवार्य है और 1 जनवरी 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए लोगों को जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट या शैक्षिक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों के जरिए अपनी और अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करनी होगी। यह प्रक्रिया 25 जून से शुरू होकर 30 सितंबर 2025 तक चलेगी, जिसमें ड्राफ्ट वोटर लिस्ट 1 अगस्त को प्रकाशित होगी और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी।
विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में शुरू की गई है और इससे लाखों गरीब, प्रवासी मजदूर और हाशिए पर रहने वाले समुदाय, जैसे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अल्पसंख्यक, मतदान के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने अपनी याचिका में अनुमान लगाया है कि करीब 3 करोड़ मतदाता इस प्रक्रिया के कारण वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने बिहार में मतदाता सूची के संशोधन को लेकर उठे विवादों को और गहरा कर दिया है। कोर्ट ने ECI को आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया, जो लाखों मतदाताओं के लिए राहत की बात हो सकती है। हालांकि, कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिससे ECI को अपनी प्रक्रिया जारी रखने का मौका मिला। यह मामला अब 28 जुलाई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है और तब तक ECI को अपना जवाब दाखिल करना होगा।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।