सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: 100 एकड़ जंगल की बहाली के लिए ठोस योजना पेश करें
प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (Hyderabad Central University) के पास कंचा गाचीबोवली क्षेत्र में करीब 100 एकड़ जंगल को अवैध रूप से काटने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस मामले में तेलंगाना सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए सख्त टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने बिना उचित अनुमति के बड़े पैमाने पर जंगल को नष्ट किया, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा, बल्कि वन्यजीवों के आवास भी खतरे में पड़ गए। इस मामले की अगली सुनवाई 15 मई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार से सवाल किया कि आखिर इतनी जल्दबाजी में और वह भी छुट्टियों के दौरान 100 एकड़ जंगल को क्यों काटा गया। जस्टिस गवई ने गुस्से में कहा, “आपके चीफ सेक्रेटरी को बचाना चाहते हैं तो बताइए कि 100 एकड़ जंगल को कैसे बहाल करेंगे। एक ठोस योजना पेश करें, वरना हमें नहीं पता कि आपके कितने अधिकारी अस्थायी जेल में जाएंगे।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक जंगल की बहाली की योजना सामने नहीं आती, तब तक इस क्षेत्र में एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा।
कोर्ट ने सरकार के इस दावे पर भी सवाल उठाए कि उसने कुछ प्रजातियों को संरक्षित प्रजातियों की सूची से “स्वयं-मुक्त” कर लिया। कोर्ट ने तेलंगाना सरकार के वन्यजीव वार्डन को तत्काल कार्रवाई करने और क्षेत्र में वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने विशेष रूप से उन वीडियो का हवाला दिया, जिनमें जंगल से भागते हुए शाकाहारी जानवरों को आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाएं दिखाई गईं।

1996 के आदेश का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1996 के एक आदेश का भी जिक्र किया, जिसमें राज्य सरकारों को जंगलों में पेड़ काटने के लिए दिशा-निर्देश बनाने का आदेश दिया गया था। इन दिशा-निर्देशों में वन्यजीवों और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने पर जोर दिया गया था। कोर्ट ने तेलंगाना सरकार से सवाल किया कि उसने इन नियमों को कैसे नजरअंदाज किया।
तेलंगाना सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने स्वीकार किया कि “कुछ त्रुटियां हो सकती हैं,” लेकिन उन्होंने दावा किया कि सरकार का इरादा नेक था। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा, “हमें इन बातों से कोई सरोकार नहीं है। हम केवल पर्यावरण की सुरक्षा और विस्थापित जानवरों की सुरक्षा चाहते हैं। हमें सिर्फ यह जानना है कि 100 एकड़ जंगल को कैसे बहाल किया जाएगा।”

विवाद का केंद्र: 400 एकड़ भूमि का पुनर्विकास
यह विवाद तेलंगाना में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की उस योजना से जुड़ा है, जिसमें हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास 400 एकड़ भूमि का पुनर्विकास किया जाना है। इस योजना के तहत कंचा गाचीबोवली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य प्रस्तावित हैं। हालांकि, इस योजना का विरोध यूनिवर्सिटी के छात्रों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों ने किया है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और बुलडोजर का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
एक NGO (वाटा फाउंडेशन) ने इस भूमि को “डीम्ड फॉरेस्ट” का दर्जा देने और इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत “राष्ट्रीय उद्यान” घोषित करने की मांग की है। संगठन का दावा है कि यह क्षेत्र कई प्रजातियों के जानवरों और पक्षियों का घर है, और इसे नष्ट करने से जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचेगा।

छात्रों और कार्यकर्ताओं का विरोध
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस मामले में सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किए। उनका कहना है कि यह क्षेत्र हैदराबाद का “आखिरी हरा-भरा फेफड़ा” है, जिसे बचाना जरूरी है। विरोध प्रदर्शनों में शामिल छात्रों ने कहा कि जंगल को नष्ट करने से न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि यह क्षेत्र प्रदूषण का शिकार हो जाएगा।
3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए 100 एकड़ क्षेत्र में सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी को यह भी जवाब देने को कहा था कि क्या इस क्षेत्र में पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को 15 मई तक 100 एकड़ जंगल को बहाल करने की योजना पेश करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर सरकार इस आदेश का पालन करने में विफल रहती है, तो वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस मामले ने न केवल तेलंगाना में, बल्कि पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है।
यह मामला एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। हैदराबाद जैसे तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ते शहर में, जहां हरियाली तेजी से सिकुड़ रही है, यह मामला और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कड़ा रुख पर्यावरण संरक्षण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।