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नई दिल्ली: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर चल रहा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच चुका है। बुधवार, 13 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए निर्वाचन आयोग के दस्तावेज जांच अभियान को ‘मतदाता विरोधी’ मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि यह कवायद मतदाताओं को सूची से हटाने की साजिश नहीं, बल्कि उनकी सुविधा के लिए उठाया गया कदम है। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस अभियान को मतदाता विरोधी और अलगाववादी बताया था, लेकिन जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने उनकी दलील को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख: मतदाता हित में है SIR
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग का विशेष गहन संशोधन (SIR) अभियान मतदाताओं के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके हित में है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया कि SIR का मकसद लोगों को मतदाता सूची से बाहर करना है। जस्टिस जोयमाल्या बागची ने कहा, “हम आपके आधार से जोड़कर अलगाव के तर्क को समझते हैं, लेकिन यह दस्तावेजों की संख्या का मामला है। ये दस्तावेज वास्तव में मतदाताओं के हक में हैं, न कि उनके खिलाफ।” उन्होंने आगे कहा कि कई तरह के दस्तावेजों से नागरिकता साबित की जा सकती है, जो इस प्रक्रिया को और भी सुगम बनाता है।
जस्टिस सूर्य कांत ने भी इस बात का समर्थन करते हुए कहा, “अगर 11 दस्तावेज मांगे जाते हैं, तो आप इसे मतदाता विरोधी कहते हैं। लेकिन अगर सिर्फ एक दस्तावेज मांगा जाए, तो क्या यह ठीक होगा?” कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि SIR का उद्देश्य मतदाताओं को परेशान करना नहीं, बल्कि मतदाता सूची को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना है।

अभिषेक मनु सिंघवी की दलील और कोर्ट की प्रतिक्रिया
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में जोरदार दलील दी। उन्होंने SIR को ‘एंटी-वोटर’ और ‘अलगाववादी’ करार देते हुए कहा कि यह प्रक्रिया नागरिकों के मताधिकार को कमजोर कर सकती है। सिंघवी ने दावा किया कि दस्तावेजों की मांग और सत्यापन प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इससे कई वैध मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। लेकिन कोर्ट ने उनकी इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया मतदाताओं की सुविधा के लिए बनाई गई है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि SIR का मकसद अवैध मतदाताओं को हटाना और सूची को शुद्ध करना है, न कि वैध मतदाताओं को परेशान करना।

बिहार में SIR का विवाद
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर पिछले कुछ समय से राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हंगामा मचा हुआ है। कई नेताओं और संगठनों ने दावा किया कि SIR के नाम पर वैध मतदाताओं को सूची से हटाने की कोशिश की जा रही है। कुछ X पोस्ट्स में इसे ‘मौन मतदाता हटाओ’ अभियान तक कहा गया। उदाहरण के लिए, एक X पोस्ट में दावा किया गया कि बिहार में 65 लाख मतदाताओं को सूची से हटाया गया, जिसमें 35 लाख प्रवासी, 22 लाख मृत और 7 लाख दोहरे पंजीकृत मतदाता शामिल हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दावों को गंभीरता से नहीं लिया और निर्वाचन आयोग के कदम को जायज ठहराया।

SIR का मकसद
निर्वाचन आयोग ने SIR को मतदाता सूची को अपडेट करने और अवैध या गलत प्रविष्टियों को हटाने के लिए शुरू किया था। आयोग का कहना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और केवल वैध मतदाताओं को ही वोट देने का अधिकार मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने आयोग के इस कदम को और मजबूती दी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस प्रक्रिया में कोई खामी है, तो उसे ठीक करने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए जा सकते हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से मतदाता विरोधी कहना गलत है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिहार में SIR को लेकर चल रहे विवाद को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यह प्रक्रिया मतदाताओं के हित में है और इसका मकसद चुनावी प्रक्रिया को और मजबूत करना है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं और कुछ राजनीतिक दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।