Simla Agreement: दोनों देशों ने कश्मीर समेत सभी विवादों को शांति और वार्ता से सुलझाने का लिया था संकल्प
प्रमुख बिंदु
नई दिल्ली/इस्लामाबाद: 1971 की भारत-पाक युद्ध के बाद शांति के लिए बने ऐतिहासिक शिमला समझौते (Simla Agreement) को लेकर पाकिस्तान एक बार फिर धमकी की मुद्रा में है। पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से रद्द किए जाने की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान अब शिमला समझौता तोड़ने की बात कर रहा है।
क्या है शिमला समझौता?
भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों को शांतिपूर्ण मोड़ देने वाला ऐतिहासिक शिमला समझौता (Simla Agreement) एक बार फिर चर्चा में है। 2 जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ यह समझौता दोनों देशों के बीच स्थायी शांति और कश्मीर जैसे विवादों को द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाने का आधार बना।
बार्नेस कोर्ट बना था ऐतिहासिक समझौते का गवाह
यह समझौता शिमला के बार्नेस कोर्ट में हुआ था, जो आज हिमाचल प्रदेश का राजभवन है। 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच यह पहली बड़ी कूटनीतिक पहल थी, जिसमें युद्धबंदियों की वापसी, नियंत्रण रेखा की स्थिति और भविष्य में किसी भी विवाद को बातचीत से सुलझाने की प्रतिबद्धता जताई गई थी।
आज भी राजभवन में शिमला समझौते (Simla Agreement) की कई निशानियां मौजूद हैं, जो उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाती हैं जब दोनों पड़ोसी देशों ने तनाव के बजाय संवाद का रास्ता चुना था।
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इसकी मुख्य शर्तें
• सभी मुद्दे केवल भारत-पाक के बीच सुलझाए जाएंगे।
• कोई तीसरी पार्टी जैसे UN को दखल नहीं मिलेगा।
• LOC को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाएगा।
• युद्ध और बल प्रयोग से बचा जाएगा।
अब क्या बदल सकता है?
अगर पाकिस्तान शिमला समझौता (Simla Agreement) तोड़ता है, तो वह कश्मीर मुद्दे को फिर से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा। हालांकि भारत पहले ही अनुच्छेद 370 और 35(A) को हटाकर कश्मीर को आंतरिक मामला घोषित कर चुका है।

भारत पर असर:
• अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत पर कोई नया कानूनी या राजनीतिक दबाव नहीं पड़ेगा।
• LOC पर तनाव बढ़ सकता है, जिससे सीमा पर सैन्य टकराव की संभावना बनी रह सकती है।
• पाकिस्तान की यह रणनीति अधिकतर कूटनीतिक हथियार के रूप में देखी जा रही है।
क्या दुनिया मानेगी पाकिस्तान की बात?
विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थक छवि और उसकी गिरती अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता के चलते UN समेत कोई बड़ी ताकत उसके पक्ष में खड़ी नहीं होगी।
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