कट रहा जंगल, चीख रहे बेज़ुबान, विकास के नाम पर पर्यावरण का बलिदान
प्रमुख बिंदु-
Hyderabad: तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में पर्यावरण और विकास के बीच एक बार फिर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के पास स्थित 400 एकड़ के हरे-भरे जंगल को साफ करने की राज्य सरकार की योजना ने छात्रों, पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों के बीच भारी आक्रोश पैदा कर दिया है।
यह जंगल, जो कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में स्थित है और न केवल शहर के लिए एक महत्वपूर्ण हरा-भरा क्षेत्र है, बल्कि जैव विविधता का भी एक अनमोल खजाना है। इस क्षेत्र में सैकड़ों प्रजातियों के पेड़-पौधे, पक्षी, जानवर और कीड़े-पतंगे पाए जाते हैं, जो इसे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का एक अभिन्न अंग बनाते हैं। लेकिन तेलंगाना सरकार इसे साफ करके वहां आईटी पार्क और अन्य व्यावसायिक परियोजनाएं विकसित करने की योजना बना रही है, जिसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

विवाद की शुरुआत और हाल का घटनाक्रम
यह विवाद तब शुरू हुआ जब तेलंगाना राज्य औद्योगिक बुनियादी ढांचा निगम (TGIIC) ने 30 मार्च को हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के पास इस 400 एकड़ भूमि पर जेसीबी मशीनों और अन्य भारी उपकरणों के साथ जंगल को साफ करना शुरू किया। सरकार का दावा है कि यह जमीन उसकी है और यह हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती।
दूसरी ओर, विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक इस जमीन को हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के “ईस्ट कैंपस” का हिस्सा मानते हैं, जो 1970 के दशक में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दी गई 2300 एकड़ जमीन का हिस्सा है। छात्रों का कहना है कि यह जंगल न केवल उनकी शैक्षिक और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि पर्यावरण संतुलन के लिए भी जरूरी है।

1 अप्रैल को हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के छात्रों ने इस कदम के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू किया, जिसके जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया और कई छात्रों को हिरासत में लिया। इस घटना ने मामले को और गरमा दिया।
इसके बाद तेलंगाना हाई कोर्ट ने 2 अप्रैल को सरकार को इस जंगल को साफ करने से तत्काल रोकने का आदेश दिया और मामले की अगली सुनवाई तक कोई कार्रवाई न करने को कहा। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप करते हुए तेलंगाना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार से इस क्षेत्र का निरीक्षण करने और रिपोर्ट सौंपने को कहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी राज्य सरकार से इस “अवैध” कटाई पर जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक
3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा कदम उठाते हुए हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के पास कांचा गाचीबोवली के 400 एकड़ जंगल में पेड़ों की कटाई पर अंतरिम रोक लगा दी। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने तेलंगाना के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जब तक कोर्ट का अगला आदेश नहीं आता, तब तक कोई पेड़ न काटा जाए।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “अखबारों में बताया गया है कि कांचा गचीबोवली जंगल (Hyderabad) में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जा रही है। इससे पता चलता है कि बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा जा रहा है। समाचारों से पता चलता है कि सप्ताहांत में लंबी छुट्टियों का फायदा उठाते हुए, अधिकारियों ने पेड़ों को काटने की जल्दबाजी की है। यह भी बताया गया है कि वन क्षेत्र 8 प्रकार के अनुसूचित जानवरों का घर है”
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हम तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को तत्काल संबंधित स्थल का दौरा करने तथा आज दोपहर 3.30 बजे तक अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देते हैं। इस न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को तत्काल इस आदेश की सूचना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को देनी चाहिए, जो इस पर तत्काल कार्रवाई करेंगे।”

जंगल का महत्व और जैव विविधता
कांचा गाचीबोवली का यह जंगल हैदराबाद (Hyderabad) जैसे तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ते शहर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित क्षेत्र है। विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की 2008-09 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में 455 से अधिक प्रजातियों के वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें हिरण, सांप, मोर के साथ ही साथ कई दुर्लभ पेड़ भी शामिल हैं। यह जंगल न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करता है, बल्कि भूजल स्तर (Groundwater Level) को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस जंगल को साफ करने से तापमान में 1 से 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है, जिससे शहर में गर्मी और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ेंगी।
सरकार का पक्ष
तेलंगाना सरकार का कहना है कि यह जमीन कभी भी आधिकारिक रूप से जंगल के रूप में दर्ज नहीं की गई थी और इसे “बंजर” या “चरागाह” भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया था। सरकार के वकील ने हाई कोर्ट में तर्क दिया कि आसपास के क्षेत्र में ऊंची इमारतें और हेलीपैड मौजूद हैं, इसलिए इसे जंगल नहीं माना जा सकता। सरकार का दावा है कि इस जमीन पर आईटी पार्क बनाने से 50,000 करोड़ रुपये का निवेश और हजारों नौकरियां आएंगी। हालांकि, पर्यावरणविदों और हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के छात्रों का कहना है कि यह “संकीर्ण आर्थिक हितों” के लिए जैव विविधता को नष्ट करने का बहाना है।
हमारा दृष्टिकोण
हमारा मानना है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) के पास स्थित इस 400 एकड़ हरे-भरे जंगल को साफ करना न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक बड़ा खतरा है। यह जंगल शहर के बढ़ते प्रदूषण और गर्मी को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे आईटी पार्क या व्यावसायिक परियोजनाओं के लिए नष्ट करना अल्पकालिक लाभ के लिए दीर्घकालिक नुकसान को आमंत्रित करना है। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह जंगल पूरी तरह से संरक्षित रहे।

विकास जरूरी है, लेकिन यह पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह इस जंगल को संरक्षित क्षेत्र घोषित करे। वैकल्पिक रूप से, शहर के अन्य बंजर क्षेत्रों में आईटी पार्क विकसित किए जा सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति और प्रगति के बीच संतुलन बनाए रखना ही सच्चा विकास है। इस जंगल को बचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है, ताकि हम अपने आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ और हरा-भरा भविष्य दे सकें।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।