प्रमुख बिंदु-
तुर्की के इस्तांबुल शहर में 2 जून को Russia-Ukraine Ceasefire के दूसरे दौर में एक महत्वपूर्ण मानवीय सहमति बनी, जिसमें लगभग 1,000 युद्धबंदियों की अदला-बदली और हजारों मृत सैनिकों के अवशेषों की वापसी पर समझौता हुआ। हालांकि, लंबे समय से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस संघर्षविराम या राजनीतिक समाधान अब तक नहीं निकल पाया है। यह वार्ता दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में हुई, लेकिन अपेक्षित सफलता से कोसों दूर रही।
Russia-Ukraine Ceasefire: मानवीय मुद्दों पर सीमित सहमति

Russia-Ukraine Ceasefire वार्ता में एक सकारात्मक कदम के रूप में यह तय किया गया कि रूस और यूक्रेन दोनों एक-दूसरे के 1,000 युद्धबंदियों को वापस करेंगे। Russia-Ukraine Ceasefire में वे सैनिक शामिल हैं जो या तो घायल हैं या किशोर हैं और जिन्हें मानवीय आधार पर रिहा किया जाएगा। इसके अलावा, दोनों पक्षों ने लगभग 12,000 मृत सैनिकों के अवशेषों को उनके परिवारों को सौंपने की दिशा में कदम उठाने पर सहमति व्यक्त की। यह एक ऐसी पहल है जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सकारात्मक दृष्टि से देखा है।
संघर्षविराम पर गतिरोध

Russia-Ukraine Ceasefire में हालांकि युद्धबंदियों के मुद्दे पर सहमति बनी, लेकिन संघर्षविराम पर वार्ता विफल रही। यूक्रेन ने अमेरिका समर्थित 30-दिन के संघर्षविराम का प्रस्ताव रखा, जिसे रूस ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यह “रणनीतिक लाभ के लिए समय खींचने की कोशिश” है। इसके विपरीत, रूस ने 2-3 दिन का सीमित संघर्षविराम प्रस्तावित किया, वह भी केवल युद्धबंदियों की वापसी के लिए।
Russia-Ukraine Ceasefire असहमति से यह स्पष्ट हो गया कि दोनों पक्षों के बीच अभी भी राजनीतिक और सामरिक मतभेद बहुत गहरे हैं। यूक्रेन का रुख है कि बिना व्यापक संघर्षविराम और क्षेत्रीय संप्रभुता की गारंटी के कोई दीर्घकालिक समाधान संभव नहीं है।
बच्चों की वापसी पर ठहराव
Russia-Ukraine Ceasefire में एक और संवेदनशील मुद्दा वार्ता में सामने आया—वह है बच्चों की जबरन वापसी। यूक्रेन ने रूस को 339 अपहृत बच्चों की सूची सौंपी और उनकी तत्काल वापसी की मांग की। परंतु रूस ने केवल 10 बच्चों की वापसी पर विचार करने की सहमति दी। Russia-Ukraine Ceasefire में इस मामले पर कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया और वार्ता इस बिंदु पर भी ठहराव में रही।
Russia-Ukraine Ceasefire: रूस की कठोर शर्तें
रूसी प्रतिनिधिमंडल ने Russia-Ukraine Ceasefire पर अपने रुख को कठोर बनाते हुए यूक्रेन से चार कब्जे वाले क्षेत्रों—डोनेट्स्क, लुहांस्क, जापोरिझिया और खेरसोन—से पूरी तरह हटने, नाटो में शामिल होने की आकांक्षा छोड़ने, और नई तटस्थ सरकार के गठन की मांग की। इसके जवाब में यूक्रेन ने इन मांगों को “स्वाभाविक संप्रभुता पर हमला” बताते हुए पूरी तरह खारिज कर दिया।
सैन्य तनाव का प्रभाव

Russia-Ukraine Ceasefire वार्ता के ठीक पहले और बाद में दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई तेज हुई। यूक्रेन ने “ऑपरेशन स्पाइडरवेब” के तहत रूस के अंदर कई हवाई अड्डों और रडार केंद्रों पर ड्रोन हमले किए, जिसमें 41 से अधिक रूसी सैन्य विमान और हेलिकॉप्टर नष्ट हुए। इसका अनुमानित आर्थिक नुकसान $7 बिलियन से अधिक बताया गया है।
रूस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए यूक्रेन के कई शहरों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। यह सैन्य तनाव यह संकेत देता है कि जमीनी हकीकत अभी भी शांति वार्ता के प्रयासों से काफी दूर है।
Russia-Ukraine Ceasefire: अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की कोशिशें

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने यह प्रस्ताव दिया है कि वे एक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित करें जिसमें व्लादिमीर पुतिन, वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की और संभावित रूप से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भाग लें। एर्दोआन का मानना है कि एक उच्च स्तरीय कूटनीतिक पहल से गतिरोध टूट सकता है।
वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी भारत, चीन और ब्राजील को संभावित मध्यस्थों के रूप में नामित किया है। भारत पहले से ही दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए है और पहले भी मानवीय सहायता पहुंचाने में सक्रिय रहा है।
वार्ता की सीमाएं और भविष्य

विश्लेषकों का मानना है कि इस्तांबुल में हुई Russia-Ukraine Ceasefire वार्ता केवल प्रतीकात्मक थी, जिसका उद्देश्य यह दिखाना था कि बातचीत की संभावनाएं अब भी ज़िंदा हैं। वास्तविक समाधान तभी संभव है जब दोनों पक्ष अपनी ज़िद और राजनीतिक एजेंडा को एक तरफ रखकर एक-दूसरे की वैध सुरक्षा चिंताओं को समझें।
अगर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता सफल होती है, तो आगामी महीनों में एक स्थायी संघर्षविराम की संभावना बन सकती है। लेकिन जब तक दोनों पक्षों के बीच विश्वास की पुन:स्थापना नहीं होती और ठोस ज़मीन पर शांति उपाय नहीं किए जाते, तब तक युद्ध की विभीषिका जारी रह सकती है।
इस्तांबुल में हुई Russia-Ukraine Ceasefire वार्ता में यद्यपि कुछ मानवीय सहमति बनी है, जैसे युद्धबंदियों की अदला-बदली और बच्चों के मुद्दे पर सीमित चर्चा, लेकिन संघर्षविराम जैसी बड़ी उपलब्धि अब भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। सैन्य कार्रवाइयों की निरंतरता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते यह संकट एक दीर्घकालिक संघर्ष का रूप ले चुका है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका आने वाले समय में निर्णायक हो सकती है। भारत जैसे देशों की मध्यस्थता यदि सफल होती है, तो एक सकारात्मक मोड़ आ सकता है। लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर युद्धविराम लागू नहीं होता, तब तक लाखों नागरिकों की ज़िंदगी संकट में बनी रहेगी।
अवि नमन यूनिफाइड भारत के एक विचारशील राजनीतिक पत्रकार और लेखक हैं, जो भारतीय राजनीति, नीति निर्माण और सामाजिक न्याय पर तथ्यपरक विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं। उनकी लेखनी में गहरी समझ और नया दृष्टिकोण झलकता है। मीडियम और अन्य मंचों पर उनके लेख लोकतंत्र, कानून और सामाजिक परिवर्तन को रेखांकित करते हैं। अवि ने पत्रकारिता के बदलते परिवेश सहित चार पुस्तकों की रचना की है और सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता के लिए समर्पित हैं।