प्रमुख बिंदु-
मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक बड़ा खुलासा हुआ है। देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड (Reliance Jio Infocomm Limited) पर आरोप लगा है कि वह 2013 से नगर निगम को पोलों और मोबाइल टावरों का किराया व लाइसेंस फीस नहीं दे रही। इससे मेरठ नगर निगम को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है। RTI के जरिए सामने आए इस मामले पर निगम ने तुरंत एक्शन लिया है। 16 सितंबर 2025 को जारी कार्यालय आदेश के मुताबिक, तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई है। यह मामला अब सोशल मीडिया और स्थानीय चर्चाओं में गरमाया हुआ है। क्या Jio को अब पुराने बकाया चुकाने पड़ेंगे?
RTI शिकायत से खुला राज
सब कुछ शुरू हुआ एक साधारण आरटीआई शिकायत से। मेरठ के निवासी श्री एल.के. खुराना ने 15 अक्टूबर 2025 को नगर निगम को पत्र लिखा। उन्होंने बताया कि रिलायंस जियो ने शहर की सीमाओं में हेड ऑप्टिकल फाइबर बिछाने के लिए लगाए गए एरियल पोलों का किराया नहीं दिया। साथ ही, 2012 से स्थापित मोबाइल टावरों का निर्धारित किराया और लाइसेंस शुल्क भी जमा नहीं किया गया। खुराना ने कहा कि Jio के इस रवैये से निगम को लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा है।
आरटीआई में सामने आई जानकारी के अनुसार, Jio ने 2013 से आज तक कोई भुगतान नहीं किया। मेरठ जैसे व्यस्त शहर में Jio के सैकड़ों पोल और दर्जनों टावर लगे हैं, जो सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर हैं। इनके लिए निगम को मासिक किराया मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्थानीय पत्रकारों के अनुसार, यह राशि करोड़ों में हो सकती है, क्योंकि एक पोल का किराया ही हजारों रुपये मासिक होता है। खुराना की शिकायत पर निगम ने फौरन संज्ञान लिया और जांच के आदेश दिए। सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हो गई, जहां लोग Jio की ‘बड़ी कंपनी’ वाली छवि पर सवाल उठा रहे हैं।

तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन
नगर आयुक्त सौरभ शंगबार ने 16 सितंबर 2025 को आधिकारिक आदेश जारी किया। इसमें स्पष्ट कहा गया कि श्री एल.के. खुराना की शिकायत सही लग रही है। इसलिए, उपरोक्त मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है। समिति के सदस्य हैं-
1. श्रीमती लपी त्रिपाठी, अपर नगर आयुक्त।
2. श्री अमित चारगव, मुख्य नगर लेखा परीक्षक।
3. श्री कृष्ण बिहारी पाडना, लेखाधिकारी।
आदेश में निर्देश दिया गया है कि समिति को एक सप्ताह के अंदर पूरी जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट अधोहस्ताक्षरी को सौंपनी होगी। जांच में बकाया राशि का आकलन, Jio के साथ हुए समझौतों की पड़ताल और नुकसान का हिसाब शामिल होगा। निगम अधिकारियों का कहना है कि यह समिति सभी दस्तावेजों की बारीकी से जांच करेगी, जिसमें पुराने रिकॉर्ड, बिलिंग डिटेल्स और Jio के जवाब शामिल हैं। आदेश तत्काल प्रभावी है, यानी बिना देरी के काम शुरू हो चुका है। मेरठ निगम के एक अधिकारी ने बताया कि ऐसी शिकायतें पहले भी आती रही हैं, लेकिन इस बार आरटीआई के दबाव में एक्शन तेज हुआ।
निगम को हो रहा भारी नुकसान: कितना चला गया पैसा?
Jio जैसे बड़े प्लेयर का किराया न चुकाना मेरठ नगर निगम के लिए करारा झटका है। अनुमान के मुताबिक, 12 सालों से चली आ रही यह देनदारी करोड़ों रुपये की हो सकती है। एक सामान्य गणना से, अगर 100 पोलों का किराया 5 हजार रुपये मासिक मानें, तो सालाना 60 लाख और 12 साल में 7 करोड़ से ज्यादा। टावरों का हिसाब जोड़ें तो आंकड़ा और बढ़ जाता है।
निगम की सालाना आय का बड़ा हिस्सा संपत्ति कर, लाइसेंस फीस और किरायों से आता है, लेकिन ऐसे डिफॉल्ट से बजट बिगड़ जाता है। मेरठ में यह पहली बार नहीं, लेकिन जांच से उम्मीद है कि बकाया वसूली हो सकेगी।
Reliance Jio की चुप्पी
Reliance Jio की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। कंपनी के मेरठ ऑफिस से संपर्क करने पर कोई जवाब नहीं मिला। लेकिन जानकारों का मानना है कि जांच रिपोर्ट के बाद Jio को नोटिस जारी हो सकता है। अगर बकाया साबित हुआ, तो ब्याज समेत वसूली की प्रक्रिया शुरू होगी। यह मामला अन्य शहरों के लिए भी मिसाल बन सकता है, जहां टेलीकॉम कंपनियां निगमों को फीस चुकाने में देरी करती हैं। जांच का इंतजार है, जो अगले हफ्ते रिपोर्ट लाएगी। क्या Jio पुराने कर्ज चुकाएगी या कानूनी लड़ाई लड़ेगी? समय बताएगा।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।