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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एक झटके में सरकारी इमारतों के नामों को नया रंग दे दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) अब ‘सेवा तीर्थ’ कहलाएगा, तो देशभर के राजभवन ‘लोकभवन’। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सत्ता से सेवा की ओर बढ़ते कदम का प्रतीक बताया है। ये बदलाव सिर्फ बोर्ड लगाने का खेल नहीं, बल्कि शासन की सोच में गहरा परिवर्तन लाने की कोशिश है। आखिर ये नाम क्यों बदले जा रहे हैं? और इससे आम आदमी को क्या फायदा? आइए, इसकी परतें खोलें।
PMO से लोकभवन तक क्या-क्या बदला?
केंद्र सरकार ने रविवार को एक के बाद एक कई बड़े ऐलान किए। सबसे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का नया परिसर, जो सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया है, अब ‘सेवा तीर्थ’ के नाम से जाना जाएगा। ये तीन इमारतों वाला कॉम्प्लेक्स है- सेवा तीर्थ-1 में PMO, सेवा तीर्थ-2 में कैबिनेट सचिवालय और सेवा तीर्थ-3 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) का दफ्तर होगा। पुराना साउथ ब्लॉक अब इतिहास बन चुका है, जहां 78 साल से PMO चल रहा था।
इसी कड़ी में, गृह मंत्रालय ने 25 नवंबर को सभी राज्यों को पत्र लिखा कि राजभवन अब ‘लोकभवन’ और केंद्र शासित प्रदेशों के राजनिवास ‘लोकनिवास’ कहलाएंगे। ये बदलाव 1 दिसंबर से लागू हो चुका है। उदाहरण के तौर पर, ओडिशा के राजभवन को लोकभवन, भुवनेश्वर नाम मिला, तो तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी राज्यपालों ने तुरंत नोटिफिकेशन जारी कर दिए। कोलकाता के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने खुद पुराना बोर्ड हटाकर नया लगवाया। केंद्रीय सचिवालय पहले ही ‘कर्तव्य भवन’ बन चुका है, जो 10 नई इमारतों वाला आधुनिक हब है। ये सभी बदलाव वातावरण-अनुकूल और ऊर्जा-कुशल हैं, जो पुरानी औपनिवेशिक इमारतों को बदल रही हैं।

मोदी का संदेश: सत्ता नहीं, सेवा ही प्राथमिकता
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बदलाव को ‘सांस्कृतिक क्रांति’ करार दिया। उन्होंने कहा, “हम सत्ता के महल से सेवा के तीर्थ की ओर बढ़ रहे हैं। ये नाम जनता को याद दिलाते हैं कि सरकार का हर कदम कर्तव्य और समर्पण से जुड़ा हो।” उनके इस बयान से साफ है कि ये सिर्फ नाम नहीं, बल्कि मानसिकता का बदलाव है। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने ट्वीट किया कि लोकभवन अब सिर्फ राज्यपाल का घर नहीं, बल्कि किसानों, छात्रों और सामाजिक संगठनों का केंद्र बनेगा। मोदी सरकार की ये सोच ‘विकसित भारत’ के सपने से जुड़ी है, जहां जनभागीदारी को बढ़ावा मिले।
कोलोनियल निशानों को मिटाने की मुहिम
इस बदलाव की जड़ें गहरी हैं। गृह मंत्रालय का कहना है कि ‘राजभवन’ जैसे नाम ब्रिटिश राज की याद दिलाते हैं, जो राजतंत्र और दूरी का प्रतीक थे। राज्यपालों के सम्मेलन में हुई चर्चा के बाद ये फैसला लिया गया। अब लोकभवन का मतलब है- जनता सर्वोपरि। ये मुहिम नई नहीं है। 2016 में PM आवास को रेसकोर्स रोड से लोक कल्याण मार्ग बनाया गया, तो 2022 में राजपथ को कर्तव्य पथ। इन छोटे-छोटे कदमों से सरकार ने शासन को ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की खाई कम होगी, क्योंकि नाम ही लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करेगा।

क्या कहते हैं विपक्ष और आम लोग?
विपक्ष की प्रतिक्रिया मिली-जुली है। कुछ इसे सकारात्मक मानते हैं, तो कुछ नाम बदलने को दिखावा बता रहे हैं। केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में जहां राज्यपाल-मुख्यमंत्री विवाद रहे हैं, वहां ये बदलाव तनाव कम करने का हथियार लगता है। सोशल मीडिया पर ज्यादातर का मानना है कि ये प्रतीकात्मक बदलाव प्रशासन को जनोन्मुखी बनाने की दिशा में कदम है।
लेकिन असली परीक्षा तो जमीन पर उतरने में है। यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन सफलता इस पर निर्भर करेगी कि लोकभवन वाकई जनता के द्वार बनें। क्या ये बदलाव सिर्फ कागजों पर रहेंगे या वाकई सेवा की भावना को नया आयाम देंगे? समय ही बताएगा। फिलहाल, ये कदम मोदी सरकार की ‘सेवा पहले’ वाली नीति को मजबूत करने का संकेत दे रहे हैं।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
