मनीष तिवारी ने उठाए गंभीर सवाल :असीमित शक्तियों पर चिंता, दुरुपयोग की आशंका
नई दिल्ली: लोकसभा में ‘विदेशियों विधेयक 2025(Immigration and Foreigners Bill, 2025) पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कई गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने विधेयक में सरकार को दी जा रही “असीमित शक्तियों” पर चिंता जताई और इसके दुरुपयोग की आशंका व्यक्त की।
प्रमुख बिंदु
संविधान के मूल अधिकारों का सवाल
मनीष तिवारी ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं थी, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए थी जो कुछ मूल्यों और असूलों पर आधारित हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान के मौलिक अधिकार नागरिकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं।

तिवारी ने कहा कि जब भी कोई नया विधेयक सदन में आता है, तो सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह यह सुनिश्चित करे कि वह मौलिक अधिकारों के अनुरूप है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान का ‘गोल्डन ट्रायंगल’ (धारा 14, 19 और 21) इस संदर्भ में अहम भूमिका निभाता है।
‘ओम्निबस पावर’ पर आपत्ति
तिवारी ने विधेयक के क्लॉज तीन के पहले प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को “ओम्निबस पावर” देने से कानून के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि कोई व्यक्ति सरकार की विचारधारा से असहमत हो, तो क्या इस कानून का इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जा सकता है?
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि किसान आंदोलन के दौरान कुछ लोगों को भारत में आने से रोका गया था, लेकिन बाद में उन्हीं लोगों को प्रवासी भारतीय दिवस पर सम्मानित किया गया।

आपील के अधिकार पर सवाल
विधेयक में आपील का कोई प्रावधान न होने पर तिवारी ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि इमिग्रेशन अधिकारी का निर्णय “अंतिम और बाध्यकारी” माना जाएगा, जिससे प्रभावित व्यक्ति के पास न अपील का विकल्प होगा, न वकील का सहारा।
तिवारी ने सुझाव दिया कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में इमिग्रेशन जज और रिफ्यूजी बोर्ड जैसे सुरक्षा उपाय होते हैं, लेकिन इस विधेयक में ऐसे सेफगार्ड्स का अभाव है। उन्होंने गृह मंत्री से अपील की कि कानून में “इमिग्रेशन जजेस” का प्रावधान जोड़ा जाए ताकि संविधान के अनुच्छेद 14 का सम्मान बना रहे।

संविधान की आत्मा पर चोट का खतरा
तिवारी ने चेतावनी दी कि यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ, तो संविधान की “अंतरात्मा” पर गहरी चोट पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि सरकार को कानून बनाते समय नागरिक अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।