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बिहार: सियासी गलियों में हलचल मचाने वाले मशहूर रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बुधवार को बड़ा ऐलान कर दिया। जन सुराज पार्टी के संस्थापक ने कहा कि वे आगामी विधानसभा चुनावों में खुद मैदान में नहीं उतरेंगे। पार्टी के हित में लिया यह फैसला बिहार की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। किशोर ने NDA और INDI गठबंधन दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी पार्टी या तो जबरदस्त जीत हासिल करेगी या फिर बुरी तरह हार जाएगी। बीच का कोई रास्ता नहीं। यह घोषणा बिहार चुनावों से ठीक तीन हफ्ते पहले आई है, जब राज्य दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को वोटिंग देखेगा।
निर्णय के पीछे की रणनीति
प्रशांत किशोर का यह फैसला पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर केंद्रित है। PTI को दिए विशेष इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर वे चुनाव लड़ते, तो संगठन निर्माण का काम प्रभावित होता। “पार्टी ने तय किया कि मुझे अन्य उम्मीदवारों की जीत पर फोकस करना चाहिए। रघोपुर से तेजस्वी यादव के खिलाफ हमारा उम्मीदवार पहले ही घोषित हो चुका है। यह फैसला पार्टी के व्यापक हित में लिया गया है,” किशोर ने कहा।
पिछले तीन सालों से बिहार की धरती पर पैदल यात्रा कर जन सुराज को मजबूत बनाने वाले किशोर अब पूरी तरह रणनीतिकार की भूमिका में लौट आए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम पार्टी को एकजुट रखने और वोटों के ध्रुवीकरण से बचाने का प्रयास है। जन सुराज ने अब तक 117 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें रघोपुर से स्थानीय व्यवसायी चंचल सिंह को उतारा गया है।
किशोर ने जोर देकर कहा कि वे पूरे बिहार में घूम-घूम कर पार्टी कार्यकर्ताओं को ऊर्जा देंगे, ताकि ग्रामीण स्तर पर संदेश मजबूत हो। यह रणनीति न केवल आंतरिक कलह रोकती है, बल्कि किशोर को पूरे राज्य पर नजर रखने की आजादी भी देती है। बिहार की राजनीति में जहां व्यक्तिगत छवि अक्सर हावी रहती है, वहां यह फैसला जन सुराज को सामूहिक चेहरा देने की कोशिश नजर आती है।

चुनावी संभावनाओं पर किशोर का अनुमान
किशोर ने अपनी पार्टी की संभावनाओं पर बेबाकी से बात की। उन्होंने कहा, “हम या तो 150 से ज्यादा सीटें जीतेंगे या फिर 10 से कम। बीच की कोई स्थिति संभव नहीं। 150 से कम सीटें हार मानी जाएंगी।” यह दावा बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा के संदर्भ में बेहद महत्वाकांक्षी है। अगर जन सुराज इतनी सीटें हासिल कर लेती है, तो राज्य की सत्ता परिवर्तन की पूरी संभावना बनेगी। किशोर ने दावा किया कि उनकी जीत से राष्ट्रीय राजनीति का कंपास बदल जाएगा।
दूसरी ओर, अगर पार्टी 150 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई, तो किशोर ने कहा कि वे सड़क और समाज की राजनीति जारी रखेंगे। बिहार को देश के शीर्ष 10 विकसित राज्यों में शुमार करने का उनका सपना अधूरा रहेगा। सर्वे एजेंसियों के अनुसार, जन सुराज अभी युवाओं और शहरी मतदाताओं में लोकप्रिय है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पहुंच सीमित है।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर तीखे प्रहार
पूर्व रणनीतिकार किशोर ने एनडीए पर सीधी चोट की। उन्होंने कहा, “एनडीए का सफाया तय है। नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे।” जेडीयू को महज 25 सीटें मिलने का अनुमान लगाते हुए किशोर ने सीट बंटवारे की उलझनों का जिक्र किया। “बीजेपी और जेडीयू के बीच अभी भी सीटों पर पेच फंसा है। चिराग पासवान की एलजेपी को 29 सीटें मिलीं, लेकिन जेडीयू असंतुष्ट है,” उन्होंने कहा। 2020 के चुनावों का हवाला देते हुए किशोर ने याद दिलाया कि चिराग के विद्रोह से जेडीयू की सीटें 43 पर सिमट गई थीं। अब वैसा ही संकट फिर मंडरा रहा है।
इंडिया गठबंधन पर भी किशोर ने कटाक्ष किया। “आरजेडी और कांग्रेस के बीच अनबन खत्म होने का नाम नहीं ले रही। पूर्व मंत्री मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी का साथ बना रहेगा या नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं।” अगर हंग असेंबली बनी, तो गठबंधन का समर्थन करने का सवाल पर किशोर ने साफ कहा, “फ्रैक्चर्ड मंडेट असंभव है। हमारी जीत निर्णायक होगी।” आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने पलटवार किया, “किशोर को पहले ही हार का एहसास हो गया है। उनकी बुलबुले फूटने लगे हैं।” बीजेपी ने इसे ‘डर का ऐलान’ बताया। ये बयानबाजी चुनावी माहौल को और गर्म कर रही है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त एजेंडे का वादा
जन सुराज की जीत पर किशोर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त एजेंडे का वादा किया। “सत्ता में आने के पहले महीने में 100 सबसे भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों की संपत्ति जब्त करेंगे।” उन्होंने शराबबंदी हटाने, वर्ल्ड बैंक से 5-6 लाख करोड़ जुटाने और बिहार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की रूपरेखा पेश की। “बिहार को नशे की लत से मुक्त करेंगे, लेकिन राजस्व के स्रोत बढ़ाएंगे,” उन्होंने जोर दिया।
किशोर की यह रणनीति बिहार के विकास मॉडल पर टिकी है। पार्टी ने 51 और 66 उम्मीदवारों की सूचियां जारी की हैं, जिसमें डॉक्टर, वकील और युवा नेता शामिल हैं। अगर लक्ष्य हासिल हुआ, तो बिहार न केवल राज्य स्तर पर बदलेगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में नई लहर पैदा करेगा। लेकिन चुनौतियां कम नहीं। एनडीए और इंडिया दोनों मजबूत मोर्चे हैं। किशोर का यह सफर बिहार के वोटरों की परीक्षा लेगा। क्या वे बदलाव के लिए तैयार हैं? 14 नवंबर को नतीजे सब कुछ साफ कर देंगे। बिहार की सियासत में यह ट्विस्ट रोमांचक मोड़ ला रहा है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
