फसल बर्बादी का शोर झूठा, सभी किसानों ने दी थी सहमति!
प्रमुख बिंदु-
वाराणसी: आगामी 11अप्रैल को वाराणसी में PM मोदी की प्रस्तावित सभा से पहले एक बार फिर राजनीतिक विवाद गरमा गया है। इस बार मामला खड़ा हुआ एक इंटरनेट समाचार चैनल की उस खबर से, जिसमें दावा किया गया कि “मोदी की रैली के लिए वाराणसी में खड़ी फसल पर जेसीबी चलाई गई।” इस खबर को समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करते हुए भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा, “भाजपावाले अपनी राजनीतिक फसल उगाने के लिए किसी का भी खेत उजाड़ सकते हैं।” लेकिन जांच में यह खबर पूरी तरह गलत साबित हुई, जिसके बाद भाजपा ने अखिलेश को आड़े हाथों लिया।
जांच में खुली सच्चाई

खबर के वायरल होने के बाद वाराणसी के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए। अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) विपिन कुमार ने पुलिस के साथ ग्राम सभा मेहदीगंज के प्रभावित किसान मूसेपाल से मुलाकात की। मूसेपाल ने साफ किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री की जनसभा के लिए प्रस्तावित भूमि के उपयोग की लिखित सहमति दी थी। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी बिछिया देवी को इसकी जानकारी नहीं थी। उस दिन वह काम के सिलसिले में बाहर थे, तभी एक पत्रकार ने उनकी अनपढ़ पत्नी से सहमति पत्र के बारे में पूछा। बिछिया को मुआवजे और सहमति की जानकारी नहीं होने के कारण गलतफहमी पैदा हुई, जिसे पत्रकार ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।

उप जिलाधिकारी, राजातालाब ने भी पुष्टि की कि मूसेपाल से आराजी नंबर 1996 (रकबा 0.134 हेक्टेयर) के लिए लिखित सहमति ली गई थी। इसके अलावा, कार्यक्रम स्थल और हेलीपैड के लिए कुल 26 कास्तकारों की 09 हेक्टेयर जमीन प्रभावित हुई, और सभी से सहमति प्राप्त कर ली गई थी। प्रशासन ने माना कि मूसेपाल की पत्नी अनपढ़ होने के कारण सहमति पत्र और मुआवजे की जानकारी से अनजान थी। इस घटना को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश के पीछे एक इंटरनेट चैनल की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।
अखिलेश का ट्वीट बना विवाद का केंद्र
इस पूरे विवाद की शुरुआत अखिलेश यादव के एक ट्वीट से हुई, जिसने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया। उन्होंने X पर लिखा, “भाजपावाले अपनी राजनीतिक फसल उगाने के लिए किसी का भी खेत उजाड़ सकते हैं। जनता पूछ रही है कि झोपड़ियों, घरों, दुकानों, खेतों-फसलों के बाद अब और कहाँ-कहाँ बुलडोज़र-जेसीबी चढ़ाओगे-चलाओगे?”
इस ट्वीट के साथ उन्होंने उस वायरल खबर का लिंक शेयर किया, जिसमें फसल बर्बादी का दावा किया गया था। अखिलेश के इस बयान ने जहाँ सपा समर्थकों में जोश भरा, वहीं भाजपा ने इसे झूठ का पुलिंदा करार देते हुए जांच की मांग की। बाद में जांच ने साबित कर दिया कि अखिलेश का ट्वीट गलत तथ्यों पर आधारित था।
भाजपा का अखिलेश पर पलटवार
जांच के नतीजों के बाद भाजपा ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर जोरदार हमला बोला। बीजेपी उत्तर प्रदेश ने अपने आधिकारिक X हैंडल से पोस्ट करते हुए लिखा, “जनता को भ्रमित करने के लिए आधे-अधूरे तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना अखिलेश यादव का पुश्तैनी राजनीतिक अस्त्र है। सिर्फ भाषणों और ट्वीट्स से सच्चाई नहीं बदली जा सकती। जनता अनुभव से सीख चुकी है और अब झूठ के सामने खड़ी होकर सवाल पूछ रही है। अखिलेश को समझना होगा कि झूठ के सहारे लंबी राजनीति नहीं की जा सकती, क्योंकि अंततः जीत उसी की होती है जो जनता की जमीन पर सच्चाई के साथ खड़ा होता है।”
राजनीतिक घमासान का नया दौर
यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष ने भाजपा पर इस तरह के आरोप लगाए हों और दोनों के बीच सोशल मीडिया पर तीखी नोकझोंक देखने को मिली हो। अखिलेश ने इस घटना को भाजपा की “बुलडोजर नीति” से जोड़कर जनता के बीच नया नैरेटिव बनाने की कोशिश की, लेकिन जांच के बाद उनका दावा उल्टा पड़ गया। वहीं, भाजपा इसे सपा की हताशा करार दे रही है। जांच में खबर के गलत साबित होने के बाद सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अखिलेश ने बिना तथ्यों की जांच किए इस वीडियो को साझा किया? इस घटना ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के दुरुपयोग की बहस को हवा दे दी है।
जांच ने दिखाया आयना
जांच के बाद सच सामने आने के बावजूद यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ अखिलेश के समर्थक इसे किसानों के हक की लड़ाई बता रहे हैं, तो दूसरी ओर भाजपा समर्थक इसे सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा करार दे रहे हैं। हालांकि, जांच से यह स्पष्ट हो गया कि न तो किसी किसान की फसल को नुकसान पहुंचा और न ही कोई जबरदस्ती हुई। सभी 26 कास्तकारों ने अपनी सहमति दी थी, और प्रभावित जमीन पर कोई खड़ी फसल नहीं थी।
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या राजनीतिक फायदे के लिए तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है? आपकी क्या राय है जरूर बताएं।
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राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।