प्रमुख बिंदु-
वाराणसी: भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक बड़ा खालीपन आ गया है। पद्मविभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र (Pandit Chhannulal Mishra) का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। बनारस घराने के इस दिग्गज कलाकार ने ठुमरी, खयाल और भजन जैसी विधाओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके गीत आज भी लाखों दिलों में बसते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी एक खास घटना में कैसे भूमिका निभाई? आइए जानते हैं उनके जीवन की अनकही कहानियां।
जीवन की शुरुआत
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हरिहरपुर गांव में हुआ था। उनका परिवार संगीत से गहराई से जुड़ा था। उनके दादा शांता प्रसाद, जिन्हें गुदई महाराज के नाम से जाना जाता था, एक मशहूर तबला वादक थे। बचपन से ही संगीत की दुनिया में कदम रखने वाले छन्नूलाल ने महज छह साल की उम्र में अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से संगीत की बारीकियां सीखनी शुरू कीं। नौ साल की उम्र में उन्होंने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान से खयाल गायकी का प्रशिक्षण लिया। बाद में ठाकुर जयदेव सिंह जैसे गुरुओं ने उन्हें और निखारा।
उनके परिवार में चार बेटियां और एक बेटा है। दुख की बात यह है कि 2021 में कोरोना महामारी के दौरान उनकी पत्नी मनोरमा मिश्र और बड़ी बेटी संगीता मिश्र का निधन हो गया था। यह उनके जीवन का सबसे कठिन दौर था, लेकिन उन्होंने संगीत के जरिए खुद को संभाला। करीब चार दशक पहले वे वाराणसी आकर बस गए और यहीं को अपनी कर्मभूमि बनाया। बनारस की गलियां और गंगा घाट उनके गीतों में हमेशा झलकते रहे।

संगीत की अनोखी यात्रा और उपलब्धियां
पंडित छन्नूलाल मिश्र बनारस घराने के प्रमुख प्रतिनिधि थे। उन्होंने खयाल, ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी और भजन जैसी विधाओं में महारत हासिल की। उनकी गायकी में शास्त्रीय और लोक संगीत का अनोखा मेल था, जो दुनिया भर में मशहूर हुआ। बिहार के मुजफ्फरपुर में संगीत की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वाराणसी में अपनी साधना को नई धार दी। उनका मशहूर गीत ‘खेले मसाने में होली दिगंबर’ आज भी होली के मौके पर हर जगह गूंजता है।

उन्हें कई सम्मान मिले। 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में पद्म भूषण और 2021 में पद्म विभूषण से नवाजा गया। दिलचस्प बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे। मोदी जी को बनारस से चुनाव लड़ाने के लिए अमित शाह ने उनसे व्यक्तिगत मुलाकात की थी। पंडित जी ने तब कहा था कि नई सरकार काशी में गंगा और संगीत परंपरा का ख्याल रखे। उनके गीतों ने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी भारतीय संस्कृति को फैलाया।

स्वास्थ्य संघर्ष और अंतिम पल
पिछले सात महीनों से पंडित छन्नूलाल मिश्र की तबीयत खराब चल रही थी। उन्हें एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS), फेफड़ों में सूजन, टाइप-2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, ऑस्टियोआर्थराइटिस और प्रोस्टेट की समस्या थी। सितंबर में सीने में दर्द के बाद उन्हें मिर्जापुर के रामकृष्ण सेवाश्रम अस्पताल में भर्ती किया गया, फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में शिफ्ट किया। 27 सितंबर को डिस्चार्ज होने के बाद वे बेटी नम्रता मिश्र के मिर्जापुर स्थित घर चले गए।

गुरुवार तड़के करीब 4:15 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। परिवार के सदस्यों के मुताबिक, उन्होंने पहले ही कह दिया था कि उन्हें वेंटिलेटर पर न रखा जाए। उनका पार्थिव शरीर एंबुलेंस से वाराणसी लाया गया, जहां शाम को मणिकर्णिका घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। संगीत जगत में यह खबर फैलते ही शोक की लहर दौड़ गई।
नेताओं की श्रद्धांजलि
पंडित जी के निधन पर देश के प्रमुख नेताओं ने गहरा दुख जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “वे जीवन भर भारतीय कला और संस्कृति के लिए समर्पित रहे। मुझे उनका स्नेह और आशीर्वाद मिला, जो मेरा सौभाग्य है।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि यह भारतीय संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें गायन कला साधकों के लिए प्रेरणा बताया और प्रार्थना की कि भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी शोक व्यक्त किया।
इन श्रद्धांजलियों से साफ है कि पंडित जी का योगदान राजनीति से परे था।
अमर विरासत
पंडित छन्नूलाल मिश्र की विरासत बनारस की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।उनकी गीतों में गंगा की लहरें, होली का उल्लास और भक्ति की गहराई झलकती है। वे न सिर्फ एक गायक थे, बल्कि भारतीय परंपरा के संरक्षक भी। युवा कलाकारों के लिए वे प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। उनका निधन संगीत जगत के लिए बड़ा नुकसान है, लेकिन उनके गीत हमेशा जीवित रहेंगे। बनारस की गलियों में उनकी आवाज गूंजती रहेगी, जैसे वे कहते थे – संगीत जीवन है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।