SSC Protest: क्या भारत का भविष्य लाठियों के साये में लिखा जा रहा है?

SSC Protest

Opinion Column (SSC Protest) : 31 जुलाई 2025 को दिल्ली की सड़कें एक अनकही कहानी बयां कर रही थीं। जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुआ युवा भारत लाठियों और हिरासत की साये में खड़ा था। वही युवा, जो किताबों में मेहनत की स्याही और सपनों की रौशनी से भविष्य लिखता है। वही युवा जो किसी भी विकासशील देश की नींव होता है। स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (SSC) की CGL और सेलेक्शन पोस्ट परीक्षाओं में बार-बार सामने आई खामियों ने लाखों अभ्यर्थियों का भरोसा तोड़ा है। यह सिर्फ एक परीक्षा का मामला नहीं, बल्कि उस सिस्टम पर सवाल है, जो पारदर्शिता का वादा करता है, मगर जवाबदेही से कतराता है।

WhatsApp Channel Join Now
Instagram Profile Join Now

शिक्षक और छात्र, जो समाज का आधार और भविष्य हैं, जब वे अपने हक की बात उठाने निकले, तो उन्हें दमन का जवाब मिला। उन्होंने जब पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। क्या ये वही भारत है जिसे एक विकसित भारत बनाने का हमने उद्देशय ले रखा है?

SSC Protest

SSC CGL युवाओं का सपना

हर साल SSC CGL और सेलेक्शन पोस्ट जैसी परीक्षाएँ करोड़ों युवाओं के लिए सरकारी नौकरी का सपना लाती हैं। लगभग तीन करोड़ अभ्यर्थी, अपने परिवार की आशाओं को कंधों पर उठाए, रात-दिन मेहनत करते हैं। पर हाल के वर्षों में ये परीक्षाएँ उम्मीदों का पुल कम, विवादों का अखाड़ा अधिक बन गई हैं। 2024 के टायर-1 रिजल्ट ने संदेह की आग को भड़काया, अचानक बढ़ा कट-ऑफ, कुछ खास केंद्रों से बार-बार चयनित अभ्यर्थी और रोल नंबरों का संदिग्ध पैटर्न।

2025 में सेलेक्शन पोस्ट फेज-13 की बार-बार रद्द होने वाली परीक्षाएँ, तकनीकी खामियाँ और केंद्रों पर अभ्यर्थियों के साथ बदसलूकी ने इस आग में घी डाला। “दिल्ली चलो” का नारा बुलंद हुआ, अपने भविष्य के प्रति मन में कई सवाल लिए भारत का युवा अपनी सरकार से जब सवाल करने पहुंचा तो जवाब में लाठियाँ बरसीं, शिक्षकों को हिरासत में लिया गया और उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश हुई।

लाठीचार्ज और बदसुलूकी

उन लाखो युवाओं की उम्मीद का प्रतीक बनकर नीतू सिंह, संजीव ठाकुर, अभिनय शर्मा, भोला यादव, आदित्य रंजन जैसे शिक्षक जब निष्पक्षता की मांग को लेकर अपने छात्रों के साथ उतरे तो उनको मिली पुलिस की बदसुलूकी और प्रशाशन की लाठियां। लाठीचार्ज और हिरासत से उनकी आवाज़ को कुचलने की कोशिश हुई। एक तस्वीर, जिसमें एक शिक्षक का टूटा हुआ हाथ दिखा, उस तस्वीर ने सवाल खड़ा किया कि क्या हक मांगना अपराध है?

शिक्षक डीओपीटी गेट पर खड़े होकर मंत्री जितेंद्र सिंह से मिलने की मांग कर रहे थें। तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा कि संसद सत्र चल रहा है। इस पर शिक्षक अभिनय शर्मा ने कहा कि आप इतना डरते क्यों हैं? तो पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी वर्दी छूते हुए टीचर से कहा कि ये पहनते तो पता चल जाता। इस पर टीचर ने जवाब दिया कि पहन के उतार दी है। इंस्पेक्टर ने कहा कि अगर मर्द होते तो पहनकर रखते। यह संवाद केवल बदजुबानी नहीं, बल्कि उस दर्द की चीख है, जो हक मांगने की सजा में मिली।

SSC Protest

बवाल की जड़

इस पुरे विवाद की जड़ में एक नाम बार-बार उभरता है एडूक्यूटी। SSC ने TCS को हटाकर इस कंपनी को परीक्षा आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी, जबकि इस पर पहले से तकनीकी खामियों और अनियमितताओं के आरोप हैं। फिर भी, बार-बार उसी कंपनी को चुना जाना क्या लापरवाही है, या कुछ और? अभ्यर्थियों की मांगें स्पष्ट हैं की इस कंपनी पर प्रतिबंध लगाया जाए, निश्चित परीक्षा कैलेंडर घोषित हो, नॉर्मलाइजेशन में पारदर्शिता, त्रुटिहीन प्रश्नपत्र, तेज नियुक्ति, वेटिंग लिस्ट और बेहतर केंद्र सुविधाएँ प्रदान की जाए।

ये मांगें न तो असंभव हैं, न नाजायज। ये एक ऐसी व्यवस्था की पुकार हैं, जो निष्पक्ष और जवाबदेह हो। ये एक ऐसे सिस्टम की मांग हैं, जो युवाओं के सपनों को संदेह की भेंट न चढ़ाए। मगर देश के युवाओं और शिक्षकों पर हुए लाठीचार्ज ने सवाल को और गहरा किया कि क्या यही लोकतंत्र है, जहाँ आवाज़ उठाना सजा बन गया?

SSC Protest #SSCMisManagement

SSC ने अपनी जवाब में कहा है कि वे तकनीकी सुधार कर रहे हैं और एडूक्यूटी की सेवाएँ नियमानुसार ली गई हैं। उनका दावा है कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया पारदर्शी है और कुछ केंद्रों पर अनियमितताएँ “सीमित” थीं। लेकिन 2017-18 के पेपर लीक के बाद CBI जांच के वादे और फिर सुधारों की नाकामी, अभ्यर्थियों के भरोसे को तोड़ चुके हैं। 2024-25 में वही कहानी दोहराई जा रही है, तकनीकी खामियाँ, बदइंतजामी और लाठीचार्ज। यह आंदोलन अब SSC तक सीमित नहीं है बल्कि रेलवे, BPSC और अन्य भर्ती प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ यह जन-आक्रोश बनता जा रहा है।

सोशल मीडिया पर भी उठ रही आवाज़

सोशल मीडिया पर यह स्वर गूँज रहा है। लाखों अभ्यर्थी हैशटैग के जरिए अपनी कहानियाँ बयाँ कर रहे हैं, सपनों की मेहनत, आर्थिक तंगी और एक भ्रष्ट सिस्टम का धोखा। पर क्या यह डिजिटल कोलाहल सत्ता के कानों तक पहुँचेगा?

सरकार के सामने रास्ता साफ है या तो वह इन स्वरों को सुने, संदिग्ध कंपनियों पर कार्रवाई करे और सिस्टम में पारदर्शिता लाए या फिर चुप रहे और उस भरोसे को खो दे जिस पर यह देश खड़ा है। युवा तो यह कह रहे हैं कि इतिहास गवाह है, जब युवा जागा, व्यवस्था हिली। आज फिर वही क्षण है।

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और यह unifiedbharat.com या किसी भी संगठन, संस्था या समूह का आधिकारिक दृष्टिकोण नहीं दर्शाता। लेख में दी गई जानकारी विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है, लेकिन पाठकों से अनुरोध है कि वे स्वयं तथ्यों की जांच करें। इस लेख का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और चर्चा को प्रोत्साहित करना है, न कि किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ दुराग्रह पैदा करना।

UPI के नए नियम 1 अगस्त से लागू – जानें क्या बदला 2025 में लॉन्च होंगी ये शानदार बाइक्स 31 जुलाई 2025: आज का राशिफल! 30 जुलाई 2025: आज का राशिफल! – Daily Horoscope लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर क्या बोले राहुल गांधी – Key Highlights 29 जुलाई 2025: आज का राशिफल!