प्रमुख बिंदु-
ग्लोबल डेस्क: नेपाल (Nepal) में GenZ आंदोलन की आग अभी ठंडी नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस गौरी बहादुर कार्की की अगुवाई वाले न्यायिक आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत पांच प्रमुख लोगों पर काठमांडू छोड़ने की सख्त पाबंदी लगा दी है। यह कदम आंदोलन के दौरान हुई गोलीबारी की जांच के बीच उठा है, जिसमें 72 लोगों की जान गई थी। आयोग ने पासपोर्ट निलंबित करने और सतत निगरानी के आदेश भी दिए हैं। ओली ने इसका विरोध जताया है, लेकिन युवाओं का गुस्सा साफ बयान दे रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी।
न्यायिक आयोग का सख्त फैसला
जांच आयोग ने 27 सितंबर को यह आदेश जारी किया, जो GenZ आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की गहन पड़ताल का हिस्सा है। आयोग के अनुसार, ओली के अलावा पूर्व गृहमंत्री रमेश लेखक, तत्कालीन गृह सचिव गोकर्ण मणि दुवाडी, आंतरिक खुफिया विभाग के प्रमुख हुत राज थापा और काठमांडू के जिलाधिकारी छवि रिजाल पर भी यही पाबंदी लागू होगी। इन सभी को बिना आयोग की इजाजत काठमांडू से बाहर जाने की मनाही है।
आयोग ने पुलिस और खुफिया एजेंसियों को इनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने का निर्देश दिया है। पासपोर्ट निलंबन का मतलब है कि ये नेता न सिर्फ देशभर में, बल्कि विदेश यात्रा भी नहीं कर सकेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम जांच को प्रभावित होने से बचाने के लिए उठाया गया है। बीबीसी और रॉयटर्स की रिपोर्ट्स के मुताबिक, आंदोलन में पुलिस की गोलीबारी से 19 से 72 मौतें हुईं, जिसमें एक भारतीय महिला भी शिकार हुई। आयोग का मानना है कि इन अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है, खासकर गोली चलाने के आदेश को लेकर।
यह फैसला नेपाल की अस्थिर राजनीति को और गहरा झटका दे सकता है। अंतरिम सरकार के गठन के बाद भी युवाओं का आंदोलन भ्रष्टाचार और नेपोटिज्म के खिलाफ जोर पकड़ रहा है। आयोग की रिपोर्ट आने तक ये नेता ‘घर में कैद’ जैसे हालात में रहेंगे।

ओली का पहला सार्वजनिक बयान: ‘भागूंगा नहीं’
इस्तीफे के 18 दिन बाद शनिवार को पूर्व पीएम ओली भक्तपुर में अपनी पार्टी के छात्र संगठन के कार्यक्रम में नजर आए। उन्होंने कहा, “मैं देश को तमाशे वाली सरकार के हवाले करके विदेश भागने वाला नहीं हूं।” ओली ने मौजूदा अंतरिम सरकार पर निशाना साधा कि यह जनता की इच्छा से नहीं, बल्कि हिंसा और तोड़फोड़ से बनी है।
उन्होंने गोलीबारी के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि उनकी सरकार ने पुलिस को ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था। “हिंसा में घुसपैठिए शामिल थे, निष्पक्ष जांच होनी चाहिए,” उन्होंने जोर देकर कहा। ओली ने अपनी सुरक्षा पर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि उनके नए घर का पता सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और हमले की धमकियां मिल रही हैं, फिर भी सरकार ने सुरक्षा मुहैया नहीं कराई। “अब वे मेरी सुविधाएं छीनने, पासपोर्ट रोकने और मुकदमा करने की साजिश रच रहे हैं,” ओली ने आरोप लगाया।
ओली का यह बयान आंदोलन के बाद उनकी पहली सार्वजनिक उपस्थिति थी। उन्होंने युवाओं से शांति की अपील की, लेकिन GenZ कार्यकर्ताओं ने इसे ‘बहाना’ करार दिया। सोशल मीडिया पर #ArrestOli ट्रेंड कर रहा है, जहां युवा उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।

GenZ आंदोलन
यह सब 8 सितंबर से शुरू हुआ, जब नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी बैन लगा दिया। युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना और काठमांडू की सड़कों पर उतर आए। नारे लगे- “भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया मत!” प्रदर्शन जल्द ही भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और नेपोटिज्म के खिलाफ बड़े आंदोलन में बदल गया।
सोमवार को पुलिस की गोलीबारी से हालात बेकाबू हो गए। संसद भवन, पीएम कार्यालय और ओली के घर में आग लगा दी गई। कर्फ्यू लगने के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने सेना को भी ललकारा। आंदोलन ने ओली सरकार को गिरा दिया, लेकिन हिंसा में 72 मौतें हुईं। इसमें स्कूल यूनिफॉर्म पहने छात्र भी शामिल थे। युवा नेता बलेंद्र शाह, काठमांडू के मेयर, इस आंदोलन के चेहरे बन चुके हैं। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ बैन का मुद्दा नहीं, पूरे सिस्टम की सड़ांध है।”

GenZ आंदोलन में मारे गए लोगों को शहीद का दर्जा
अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने कार्यभार संभालते ही GenZ आंदोलन में मारे गए 72 लोगों को शहीद का दर्जा दे दिया। प्रत्येक परिवार को 10 लाख नेपाली रुपये का मुआवजा घोषित किया गया है। यह फैसला पीड़ित परिवारों को न्याय का भरोसा दिलाने के लिए लिया गया।
कार्की ने कहा, “ये शहीद हमारे लोकतंत्र के रक्षक हैं। उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी।” लेकिन युवा संगठनों का कहना है कि मुआवजा तो ठीक, लेकिन दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। एक भारतीय महिला की मौत ने भारत-नेपाल संबंधों को भी प्रभावित किया है। भारतीय दूतावास ने पीड़ित परिवारों से संपर्क किया है।
यह कदम आंदोलन को शांत करने की कोशिश है, लेकिन जांच आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है। नेपाल में स्थिरता लौटे, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय निगरानी की मांग भी उठ रही है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
