प्रमुख बिंदु-
Maa Annapurna Darshan: वाराणसी की पवित्र नगरी में धनतेरस के साथ मां अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन शुरू हो गए हैं। साल में सिर्फ पांच दिनों तक खुलने वाला यह दरबार भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। सुबह से ही 2 किलोमीटर लंबी कतारें लगी हैं, जहां श्रद्धालु मां के आशीर्वाद और प्रसाद रूपी खजाने की उम्मीद में घंटों खड़े हैं। दोपहर तक करीब 1 लाख से ज्यादा लोग दर्शन कर चुके हैं, और यह सिलसिला अन्नकूट तक जारी रहेगा।

दर्शन के लिए भक्तों की उमड़ी भीड़
धनतेरस की भोर में मंगला आरती के साथ मां अन्नपूर्णा के मंदिर के कपाट खोले गए। काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे इस मंदिर में स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन के लिए भक्त रात भर से लाइन में लगे हुए थे। प्रशासन के अनुसार, सुबह 5 बजे से दर्शन शुरू होते ही भीड़ बढ़ती गई। कई श्रद्धालु तो 24 घंटे पहले ही पहुंच गए थे, ताकि मां के पहले दर्शन का सौभाग्य मिल सके।

वाराणसी पुलिस और मंदिर प्रबंधन ने बताया कि इस साल अमावस्या दो दिन होने से दर्शन का समय पांच दिनों तक बढ़ गया है। 18 अक्टूबर से 22 अक्टूबर तक चलने वाले इस उत्सव में अनुमानित 7-8 लाख भक्त पहुंच सकते हैं। राज गणेश मार्ग से प्रवेश की व्यवस्था की गई है, जहां कतारें सड़कों तक फैली हुई हैं। भक्तों का कहना है कि मां के दर्शन से जीवन में सुख-समृद्धि आती है, इसलिए ठंडी हवाओं में भी इंतजार की परवाह नहीं। एक स्थानीय भक्त ने कहा, “यह इंतजार नहीं, भक्ति का रूप है। मां सब कुछ देती हैं।”

प्रसाद रूपी खजाना और उसकी मान्यताएं
मां अन्नपूर्णा के दर्शन के साथ भक्तों को विशेष प्रसाद मिल रहा है, जिसे ‘खजाना’ कहा जाता है। इसमें लावा (भुने हुए धान) और सिक्के शामिल हैं। मंदिर महंत शंकर पुरी ने बताया कि धनतेरस पर 11 लाख से ज्यादा सिक्के और 11 क्विंटल लावा वितरित किए जाएंगे। यह प्रसाद घर की तिजोरी या भंडार में रखने से धन-धान्य की कमी नहीं होने की मान्यता है।
कई भक्तों का विश्वास है कि यह खजाना अक्षय होता है, जो परिवार को पूरे साल समृद्ध रखता है। पिछले सालों की तरह इस बार भी सोने-चांदी के सिक्कों का वितरण हो रहा है। एक महिला श्रद्धालु ने साझा किया, “पिछले साल का प्रसाद रखने से घर में बरकत आई। इस बार भी मां की कृपा लेने आई हूं।” मंदिर प्रशासन ने प्रसाद वितरण के लिए अलग काउंटर बनाए हैं, ताकि भीड़ में कोई असुविधा न हो। यह परंपरा सदियों पुरानी है, जो मां अन्नपूर्णा को अन्न की देवी के रूप में स्थापित करती है।

मंदिर की अनोखी विशेषताएं
पुराणों के अनुसार, मां अन्नपूर्णा तीनों लोकों की अन्नदात्री हैं। उन्होंने स्वयं भगवान शिव को भोजन कराया था, जब काशी में अकाल पड़ा था। शिव ने मां से भिक्षा मांगी, और उन्होंने वचन दिया कि काशी में कोई भूखा नहीं सोएगा। यही कारण है कि यह मंदिर देश का इकलौता श्री यंत्र आकार का मंदिर है, जहां आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र की रचना की थी।

मंदिर में मां अन्नपूर्णा के साथ काशी विश्वनाथ, लक्ष्मी माता और धरती माता की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। साल में सिर्फ धनतेरस से अन्नकूट तक दर्शन होने से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। इतिहासकारों के मुताबिक, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो काशी की धार्मिक विरासत को जीवंत रखती है। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और भोग लगाया जाता है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

व्यवस्थाएं और विशेष आयोजन
मंदिर प्रबंधन ने भक्तों की सुविधा के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं। वृद्ध और दिव्यांगों के लिए सुगम दर्शन की व्यवस्था है, जबकि वीआईपी दर्शन शाम 5 से 7 बजे तक। पुलिस ने सुरक्षा के लिए बैरिकेडिंग और सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। इस साल अंबानी परिवार ने मां को विशेष उपहार भेजे हैं, जो उत्सव की भव्यता बढ़ा रहे हैं।
दर्शन सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक चलेंगे। प्रशासन ने अपील की है कि भक्त धैर्य रखें और कतार में रहें। काशी के अन्य मंदिरों में भी दीपावली की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन मां अन्नपूर्णा का यह दरबार सबसे खास है। भक्तों का मानना है कि यहां का आशीर्वाद जीवन बदल देता है। यदि आप काशी आ रहे हैं, तो इस दुर्लभ अवसर को न चूकें।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
