Justice Varma Cash Row: जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में मंजूर, स्पीकर ने बनाई 3 सदस्यीय कमेटी

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Justice Varma Cash Row: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों ने देश की न्यायिक और राजनीतिक गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया है। मार्च 2025 में उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के दौरान भारी मात्रा में जली हुई नकदी की बरामदगी ने इस विवाद को जन्म दिया। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 146 सांसदों के हस्ताक्षर वाले महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की। यह घटना स्वतंत्र भारत में किसी हाई कोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने का तीसरा मौका है।

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विवाद की जड़कैश कांड

जस्टिस यशवंत वर्मा तब सुर्खियों में आए जब 14 मार्च 2025 को उनके दिल्ली के सरकारी आवास में आग लगी। जांच के दौरान वहां से जली हुई नकदी के ढेर बरामद हुए, जिसकी मात्रा डेढ़ फीट से भी अधिक बताई गई। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि यह राशि करीब 10 करोड़ रुपये की हो सकती है।

Justice Varma Cash Row

हालांकि, जस्टिस वर्मा उस समय घर पर मौजूद नहीं थे और उन्होंने इन आरोपों को “बेतुका” बताकर खारिज किया। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक जांच कमेटी ने मई 2025 में अपनी रिपोर्ट में उन्हें नकदी पर नियंत्रण रखने और न्यायिक मर्यादा के उल्लंघन का दोषी ठहराया। इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की, जिसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया।

महाभियोग प्रस्ताव: संसद में एकजुटता

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 31 जुलाई 2025 को 146 लोकसभा सांसदों और 63 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर वाला महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त किया। इस प्रस्ताव में बीजेपी के रविशंकर प्रसाद, कांग्रेस के राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर, सुप्रिया सुले जैसे बड़े नेताओं के नाम शामिल थे। यह अपने आप में दुर्लभ है कि सत्तापक्ष और विपक्ष इतने बड़े स्तर पर एकजुट हुए। संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217 और 218 के तहत यह प्रस्ताव दायर किया गया, जो हाई कोर्ट जज को हटाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। आज ओम बिरला ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का ऐलान किया।

तीन सदस्यीय जांच समिति गठित

लोकसभा स्पीकर ने इस मामले की जांच के लिए एक वैधानिक समिति गठित की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बी.वी. आचार्य शामिल हैं। जस्टिस अरविंद कुमार टैक्स और अपराध से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ हैं, जबकि जस्टिस श्रीवास्तव ने कई महत्वपूर्ण कानूनी भूमिकाएं निभाई हैं। बी.वी. आचार्य, 88 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय, कर्नाटक के पूर्व एडवोकेट जनरल रह चुके हैं। यह समिति सबूत इकट्ठा करेगी, गवाहों के बयान लेगी और जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर तय होगा कि महाभियोग की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी या नहीं।

Judiciary Corruption Case

क्या होगा आगे?

महाभियोग की प्रक्रिया जटिल और लंबी है। अगर समिति जस्टिस वर्मा को दोषी पाती है, तो महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। इसके बाद प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास जाएगा। जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में आंतरिक जांच को चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच को पारदर्शी और संवैधानिक बताया। इस मामले में सत्ता और विपक्ष की एकजुटता से जस्टिस वर्मा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। यह मामला न केवल न्यायपालिका की स्वच्छता पर सवाल उठाता है, बल्कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को भी मजबूत करने का संदेश देता है।

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