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नई दिल्ली, 29 अगस्त 2025: भारतीय रुपया (Indian Rupee) शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर (Dollar) के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 87.9650 पर पहुंच गया। इसका मुख्य कारण अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ हैं, जिसने निवेशकों में खलबली मचा दी। अमेरिका ने हाल ही में 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे भारतीय निर्यातों पर कुल टैरिफ 50% हो गया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। चीनी युआन के मुकाबले भी रुपया 12.3307 तक गिर गया, जो सप्ताह में 1.2% और महीने में 1.6% की गिरावट दर्शाता है।
पिछले चार महीनों में रुपये ने युआन के खिलाफ करीब 6% की गिरावट दर्ज की है। यह स्थिति भारत की आर्थिक रणनीति और व्यापार संतुलन के लिए नई चुनौतियां और अवसर ला रही है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है, और विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की यह कमजोरी कुछ क्षेत्रों के लिए फायदेमंद भी हो सकती है। आइए, इस खबर को विस्तार से समझें।
अमेरिकी टैरिफ का रुपये पर क्यों पड़ रहा दबाव?
अमेरिका ने हाल ही में भारतीय निर्यातों पर टैरिफ को दोगुना कर 50% कर दिया, जबकि चीनी सामानों पर 30% टैरिफ लागू है और उसमें बढ़ोतरी अभी रुकी हुई है। इस भेदभावपूर्ण नीति ने भारतीय रुपये को भारी नुकसान पहुंचाया। Reuters के अनुसार, IDFC FIRST Bank की अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने बताया कि टैरिफ का यह अंतर उन क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है, जो अमेरिकी बाजारों में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जैसे कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान और रसायन।
रुपये की इस गिरावट ने निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ा दी, जिससे बाजार में अस्थिरता देखने को मिल रही है। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों ने जनवरी में भारतीय शेयरों और बांडों में करीब 9 अरब डॉलर की बिकवाली की, जिसने रुपये पर अतिरिक्त दबाव डाला। ट्रम्प प्रशासन की इस नीति को जेफरीज के ग्लोबल हेड ऑफ इक्विटी स्ट्रैटेजी क्रिस वुड ने “कठोर” बताया, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर 55-60 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।

युआन के मुकाबले रुपये की कमजोरी
चीनी युआन के मुकाबले रुपये की गिरावट भारत के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है। ANZ बैंक के FX रणनीतिकार धीरज निम के अनुसार, RBI युआन के मुकाबले रुपये की इस कमजोरी का स्वागत कर सकता है, क्योंकि यह डॉलर के मुकाबले ज्यादा नहीं गिरी है। इसका मतलब है कि भारतीय सामान अब अमेरिकी बाजारों में चीनी सामानों की तुलना में सस्ते हो सकते हैं, जो निर्यातकों के लिए राहत की बात है।
विशेष रूप से कपड़ा, जूते, आभूषण और रत्न जैसे क्षेत्रों को फायदा हो सकता है। साथ ही, यह भारत-चीन व्यापार घाटे को कम करने में भी मदद कर सकता है, जो 2024 में 94 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। हालांकि, युआन-रुपया विनिमय दर पर RBI की नजर बनी हुई है, क्योंकि यह भारत की आर्थिक रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

RBI की रुपये को संभालने की कोशिश
RBI ने रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप किया है। बैंकर्स का कहना है कि RBI ने सरकारी बैंकों के जरिए डॉलर बेचकर रुपये को 88 के स्तर को पार करने से रोका है। इस सप्ताह युआन के मुकाबले रुपये में 1% से ज्यादा की गिरावट आई, लेकिन डॉलर के मुकाबले केवल 0.3% की कमी देखी गई।
RBI की यह रणनीति रुपये की अस्थिरता को कम करने में सफल रही है। इसके अलावा, RBI ने हाल ही में 5 अरब डॉलर की डॉलर/रुपया बाय-सेल स्वैप नीलामी आयोजित की, जिसने बाजार में तरलता बढ़ाने में मदद की। विशेषज्ञों का मानना है कि RBI की यह नीति रुपये को और गहरी गिरावट से बचाने में महत्वपूर्ण है, खासकर जब वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ रही है।

व्यापार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
अमेरिकी टैरिफ और रुपये की कमजोरी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर कई तरह से पड़ रहा है। एक ओर, रुपये की कमजोरी निर्यातकों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि यह भारतीय सामानों को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनाता है। खासकर सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों को इसका लाभ मिल सकता है।
दूसरी ओर, रुपये की कमजोरी आयात को महंगा कर सकती है, खासकर कच्चे तेल जैसे आवश्यक सामानों को, जिससे उत्पादन लागत और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसके अलावा, विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए यह स्थिति फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि उनकी रेमिटेंस की वैल्यू भारत में बढ़ जाएगी। हालांकि, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ और वैश्विक व्यापार तनाव ने भारतीय शेयर बाजारों को भी प्रभावित किया है, जहां सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट देखी गई।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
