रिकॉर्ड लेवल पर लुढ़का रुपया: डॉलर के आगे 88.49 पर हुआ धराशायी, आम आदमी की जेब होगी ढीली!

Indian Rupee Fall

आर्थिक डेस्क: आज 23 सितंबर 2025 को भारतीय रुपया (Indian Rupee) डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर लुढ़क गया। सुबह के कारोबार में यह 88.49 तक गिर गया, जो दो हफ्ते पहले के रिकॉर्ड लो (88.46) को पार कर गया। 10 पैसे की गिरावट के साथ खुला रुपया 88.41 पर था, जबकि सोमवार को यह 88.31 पर बंद हुआ था। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ, एशियाई मुद्राओं की कमजोरी और डॉलर की मजबूती ने रुपये पर दोहरी मार मारी है। 2025 में अब तक रुपया 3.25% कमजोर हो चुका है, 1 जनवरी को यह 85.70 के स्तर पर था।

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गिरावट के पीछे मुख्य कारण

रुपये की यह भयानक गिरावट कई वैश्विक और घरेलू कारकों का नतीजा है। सबसे बड़ा झटका अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियों से लगा। अगस्त 2025 में ट्रंप ने भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगा दिया, जो रूस से सस्ता तेल खरीदने की सजा के रूप में था। इससे भारत के 87 अरब डॉलर के निर्यात पर संकट मंडरा रहा है। विशेष रूप से टेक्सटाइल, ज्वेलरी, सीफूड और लेदर जैसे श्रम-गहन क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं, जहां निर्यात 70% तक गिर सकता है। गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, यह जीडीपी ग्रोथ को 6.5% से नीचे धकेल सकता है।  

दूसरा, H1B वीजा फीस को बढ़ाकर सालाना 1 लाख डॉलर कर दिया गया है। 19 सितंबर को ट्रंप के प्रोजेक्ट ने इसे लागू किया, जो 2026 की लॉटरी से नए आवेदकों पर लागू होगा। इससे आईटी सेक्टर पर सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियां हर साल हजारों H1B वीजा लेती हैं। भारत से 70% H1B वीजा आते हैं, और यह फीस कंपनियों के खर्च को दोगुना कर देगी।  

इसके अलावा, फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (FII) ने 2025 में 14 अरब डॉलर निकाल लिए, जो उभरते बाजारों से फंड हटाने का नतीजा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त नीतियां और डॉलर इंडेक्स की मजबूती ने भी रुपये को दबाया। कच्चे तेल की कीमतों में 1% की बढ़ोतरी ने आयात बिल बढ़ा दिया, क्योंकि भारत 80% तेल आयात करता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) डॉलर बेचकर हस्तक्षेप कर रहा है, लेकिन फॉरेक्स रिजर्व 2024 के उच्च स्तर से नीचे आ चुके हैं।

Indian Rupee US Dollar

रुपये पर असर: आम आदमी की जेब ढीली

रुपये की कमजोरी सीधे आम लोगों को नुकसान पहुंचा रही है। सबसे पहले, आयात महंगा हो गया है। कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स और सोना जैसे सामान अब ज्यादा रुपये में मिलेंगे। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी 100 डॉलर का सामान आयात करती है, तो पहले 7,400 रुपये लगते थे, अब 8,800 रुपये। इससे महंगाई बढ़ेगी—ट्रांसपोर्ट, ईंधन और रोजमर्रा की चीजों के दाम चढ़ेंगे।  

विदेश यात्रा अब बोझ बन गई है। एक डॉलर के लिए 88.49 रुपये खर्च करने पड़ेंगे, जबकि जनवरी में 85.70 थे। अमेरिका की सैर पर जाने वाले को होटल, खाना और शॉपिंग पर 3-5% ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इसी तरह, विदेशी पढ़ाई का सपना टूट रहा है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी में सालाना 40,000 डॉलर फीस पहले 32 लाख रुपये थी, अब 34.4 लाख। रहना-खाना और किताबें भी महंगी हो जाएंगी। छात्रों को टॉप-अप लोन लेना पड़ सकता है, जो ब्याज का बोझ बढ़ाएगा। एनआरआई रेमिटेंस भेजने वाले फायदा उठा सकते हैं, लेकिन निर्यातक कंपनियां (जैसे फार्मा, आईटी) को कच्चे माल के आयात से नुकसान हो रहा है। कुल मिलाकर, घरेलू बजट पर दबाव बढ़ गया है।

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कैसे तय होता है करेंसी मूल्य?

करेंसी की कीमत बाजार की मांग-आपूर्ति से तय होती है। डॉलर जैसी मजबूत मुद्रा के मुकाबले रुपये की वैल्यू घटने को डेप्रिशिएशन कहते हैं। भारत के पास फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व (जैसे डॉलर) होता है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल होता है। अगर रिजर्व बढ़े, तो रुपया मजबूत होता है; घटे, तो कमजोर। यह फ्लोटिंग रेट सिस्टम है, जहां RBI हस्तक्षेप करता है लेकिन पूरी तरह नियंत्रित नहीं।  

ट्रेड डेफिसिट (आयात > निर्यात) डॉलर की मांग बढ़ाता है। अमेरिकी ब्याज दरें ऊंची होने से निवेशक डॉलर की ओर भागते हैं। भारत में महंगाई, FII आउटफ्लो और तेल कीमतें भी असर डालती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं, लंबे समय में रुपया सालाना 3-4% गिरता है, लेकिन 2025 में ट्रंप नीतियों ने इसे तेज किया। RBI स्वैप एग्रीमेंट्स और ब्याज दरों से संभाल सकता है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितता बनी रहेगी। 

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