प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: भारतीय डाक विभाग (India Post) ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अपनी 171 साल पुरानी पंजीकृत डाक सेवा को 1 सितंबर 2025 से बंद करने की घोषणा की है। यह सेवा, जो ब्रिटिश शासनकाल में 1854 में शुरू हुई थी, अब स्पीड पोस्ट में विलय कर दी जाएगी। हालांकि, यह बदलाव न केवल एक सेवा का अंत है, बल्कि लाखों भारतीयों की भावनाओं और यादों से जुड़े एक युग का समापन भी है। पंजीकृत डाक सेवा लंबे समय तक विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक रही है, खासकर ग्रामीण भारत और छोटे व्यापारियों के लिए। लेकिन डिजिटल युग और निजी कूरियर सेवाओं की बढ़ती लोकप्रियता के बीच, इस सेवा की मांग में कमी आई है।
पंजीकृत डाक: विश्वास का एक लंबा सफर
पंजीकृत डाक सेवा की शुरुआत 1854 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी, जब इसे महत्वपूर्ण और कानूनी दस्तावेजों को सुरक्षित भेजने के लिए शुरू किया गया था। यह सेवा अपनी विश्वसनीयता और किफायती लागत के लिए जानी जाती थी। नौकरी के नियुक्ति पत्र, कानूनी नोटिस, सरकारी पत्राचार और यहाँ तक कि व्यक्तिगत पत्र जैसे राखी या शादी के निमंत्रण भी इस सेवा के माध्यम से भेजे जाते थे। इसकी सबसे खास विशेषता थी डिलीवरी का लिखित प्रमाण (प्रूफ ऑफ डिलीवरी), जिसे अदालतों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता था।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यह सेवा बैंकों, विश्वविद्यालयों, अदालतों और सरकारी विभागों के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ डिजिटल सेवाएँ अभी भी पूरी तरह से नहीं पहुँची हैं, पंजीकृत डाक संपर्क का एक भरोसेमंद साधन थी। बुजुर्गों के लिए यह सेवा केवल डाक नहीं, बल्कि उनकी यादों और भावनाओं का हिस्सा थी। उदाहरण के लिए, कई लोग आज भी उन दिनों को याद करते हैं जब नौकरी का नियुक्ति पत्र या शादी का निमंत्रण रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से उनके घर पहुँचता था।

बदलते समय और गिरती मांग
पिछले कुछ दशकों में डिजिटल क्रांति और निजी कूरियर सेवाओं के उदय ने पंजीकृत डाक की मांग को काफी कम कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 में 24.44 करोड़ पंजीकृत डाक भेजी गई थीं, जो 2019-20 तक घटकर 18.46 करोड़ रह गईं, यानी लगभग 25% की कमी। ई-मेल, व्हाट्सएप और ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स ने पत्राचार के पारंपरिक तरीकों को लगभग अप्रासंगिक बना दिया है। इसके अलावा, निजी कूरियर कंपनियाँ तेज और सुविधाजनक सेवाएँ प्रदान कर रही हैं, जिससे पंजीकृत डाक का उपयोग और कम हो गया है।
डाक विभाग का कहना है कि यह बदलाव समय की मांग है। डिजिटल युग में ग्राहक तेज, ट्रैक करने योग्य और तकनीकी रूप से उन्नत सेवाएँ चाहते हैं। स्पीड पोस्ट, जो 1986 में शुरू हुई थी, पहले से ही रियल-टाइम ट्रैकिंग, डिजिटल भुगतान और बीमा जैसी सुविधाएँ प्रदान करती है। पंजीकृत डाक को स्पीड पोस्ट में विलय करने से परिचालन प्रक्रिया सरल होगी, ट्रैकिंग में सुधार होगा और ग्राहकों को एकीकृत सेवा मिलेगी।

लागत और ग्रामीण भारत पर प्रभाव
हालांकि यह बदलाव तकनीकी दृष्टिकोण से उन्नत है, लेकिन इसकी लागत को लेकर चिंताएँ भी हैं। पंजीकृत डाक की शुरुआती कीमत 25.96 रुपये थी, जिसमें प्रति 20 ग्राम अतिरिक्त 5 रुपये लगते थे। वहीं, स्पीड पोस्ट की शुरुआती कीमत 41 रुपये प्रति 50 ग्राम है, जो लगभग 20-25% अधिक है। यह लागत वृद्धि खासकर ग्रामीण इलाकों, छोटे व्यापारियों और किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जो सस्ती डाक सेवाओं पर निर्भर हैं।
डाक विभाग ने स्पष्ट किया है कि पंजीकृत डाक की सुविधाएँ, जैसे सुरक्षित डिलीवरी और प्रूफ ऑफ डिलीवरी, स्पीड पोस्ट के तहत मूल्यवर्धित सेवाओं के रूप में उपलब्ध रहेंगी। उदाहरण के लिए, 5 रुपये का साधारण पत्र 17 रुपये अतिरिक्त शुल्क देकर रजिस्टर्ड स्पीड पोस्ट के रूप में भेजा जा सकेगा। फिर भी, लागत में यह अंतर उन लोगों के लिए बोझ बन सकता है जो किफायती सेवाओं पर निर्भर हैं।

आधुनिकीकरण की ओर कदम
भारतीय डाक विभाग इस बदलाव को आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानता है। विभाग का कहना है कि स्पीड पोस्ट में रियल-टाइम ट्रैकिंग, डिजिटल भुगतान और तेज डिलीवरी जैसी सुविधाएँ ग्राहकों की आधुनिक जरूरतों को पूरा करेंगी। इसके अलावा, विभाग ने डिजिपिन और घर से पार्सल पिकअप जैसी नई सेवाएँ शुरू की हैं, जो डाक सेवाओं को और अधिक सुगम बना रही हैं।
हालांकि, यह बदलाव भावनात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है। पंजीकृत डाक न केवल एक सेवा थी, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत का हिस्सा थी। इसका समापन उन लोगों के लिए एक युग का अंत है, जिनके लिए यह सेवा विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक थी। डाक विभाग ने सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों को 31 अगस्त 2025 तक अपने दस्तावेजों और प्रक्रियाओं को स्पीड पोस्ट के अनुरूप अपडेट करने का निर्देश दिया है।

पंजीकृत डाक सेवा का अंत एक युग का समापन है, लेकिन यह डिजिटल युग में भारतीय डाक विभाग के आधुनिकीकरण की दिशा में एक आवश्यक कदम भी है। यह बदलाव तेज और तकनीकी रूप से उन्नत सेवाओं की ओर बढ़ने का संकेत है, लेकिन साथ ही यह ग्रामीण भारत और सस्ती सेवाओं पर निर्भर लोगों के लिए चुनौतियाँ भी ला सकता है। जैसे-जैसे भारत डिजिटल युग में आगे बढ़ रहा है, पंजीकृत डाक की यादें और इसका महत्व हमेशा लोगों के दिलों में बना रहेगा।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।