ग्लोबल डेस्क: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN) में शुक्रवार, 12 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब भारत समेत 142 देशों ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले ‘न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन’ का समर्थन किया। यह प्रस्ताव इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को सुलझाने के लिए दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) को बढ़ावा देता है। जहां भारत ने शांति और न्याय के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, वहीं अमेरिका और इजरायल ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया।
न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन क्या है?
‘न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन ऑन द पीसफुल सेटलमेंट ऑफ द क्वेश्चन ऑफ फिलिस्तीन एंड द इंप्लीमेंटेशन ऑफ द टू-स्टेट सॉल्यूशन’ फ्रांस और सऊदी अरब की अगुवाई में तैयार किया गया एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह प्रस्ताव जुलाई 2025 में आयोजित एक उच्च-स्तरीय सम्मेलन का नतीजा है, जिसका मकसद दशकों पुराने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को हल करना है। इस डिक्लेरेशन में कई अहम बिंदु शामिल हैं:
- प्रस्ताव में गाजा में तत्काल युद्धविराम की मांग की गई है, ताकि हिंसा और मानवीय संकट को रोका जा सके।
- गाजा और अन्य फिलिस्तीनी क्षेत्रों का प्रशासन फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपने की बात कही गई है।
- इसमें गाजा में हमास के शासन को खत्म करने और उनके हथियार फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपने की मांग है।
- शांति समझौते की निगरानी और फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) के तहत एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय मिशन तैनात करने का प्रस्ताव है।
यह प्रस्ताव 142 देशों के समर्थन से पारित हुआ, जबकि अमेरिका और इजरायल सहित 10 देशों ने इसका विरोध किया और 12 देशों ने मतदान से दूरी बनाई।

भारत का रुख: शांति और दो-राष्ट्र समाधान
भारत ने इस प्रस्ताव का खुलकर समर्थन करते हुए अपनी लंबे समय से चली आ रही नीति को दोहराया, जिसमें वह एक स्वतंत्र, संप्रभु और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना का समर्थक रहा है। भारत का मानना है कि इजरायल और फिलिस्तीन दोनों को सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा, “पश्चिम एशिया में स्थायी शांति तभी संभव है, जब फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिले।” यह कदम भारत की वैश्विक मंच पर शांति और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
अमेरिका और इजरायल का कड़ा विरोध
प्रस्ताव के खिलाफ इजरायल और अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया दी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए कहा, “यहां कोई फिलिस्तीनी राष्ट्र नहीं होगा। यह जमीन हमारी है।” उन्होंने वेस्ट बैंक में अपनी बस्तियों को और विस्तार देने की घोषणा की। इजरायल के UN राजदूत डैनी डैनन ने इसे “नाटक” और “हमास को फायदा पहुंचाने वाला” करार दिया। दूसरी ओर, अमेरिका ने इसे “गलत समय पर किया गया प्रचार स्टंट” बताया। अमेरिकी मिशन की काउंसलर मॉर्गन ऑरटागस ने कहा कि यह प्रस्ताव हमास को मजबूत करेगा और शांति की राह में बाधा डालेगा।
हमास और गाजा का जिक्र
न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन में 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमलों की कड़ी निंदा की गई है, जिसमें 1,200 लोग मारे गए और 250 से अधिक को बंधक बनाया गया। साथ ही, इजरायल के गाजा में सैन्य कार्रवाइयों की भी आलोचना की गई, जिसके कारण गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 64,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए। डिक्लेरेशन में गाजा में हमास के शासन को खत्म करने और उनके हथियारों को फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपने की मांग की गई है, ताकि एक एकीकृत और शांतिपूर्ण फिलिस्तीनी प्रशासन स्थापित हो सके।
भविष्य की उम्मीदें
फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने इस प्रस्ताव को “शांति की उम्मीद” करार दिया और कहा कि यह वैश्विक समुदाय की उस इच्छा को दर्शाता है, जो हिंसा और तबाही के बजाय शांति और तर्क का रास्ता चुनना चाहता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि 22 सितंबर 2025 से शुरू होने वाली UN महासभा की बैठक में कम से कम 10 और देश फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देंगे। वर्तमान में 145 से अधिक देश पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं, और इस प्रस्ताव से इस संख्या में और इजाफा होने की संभावना है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।