प्रमुख बिंदु-
ग्लोबल डेस्क: 37 वर्षीय भारतीय नर्स निमिषा प्रिया (Nimisha Priya), जो यमन में 2017 में अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में मौत की सजा का सामना कर रही थीं, उन्हें 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी थी। लेकिन आखिरी क्षणों में, भारत के ‘ग्रैंड मुफ्ती’ शेख अबूबक्कर अहमद, जिन्हें कंथापुरम एपी अबूबक्कर मुस्लियार के नाम से भी जाना जाता है, उनकी कोशिशों ने उनकी फांसी को टाल दिया। इस हस्तक्षेप ने न केवल निमिषा को नई जिंदगी की उम्मीद दी, बल्कि धार्मिक कूटनीति और मानवता के महत्व को भी उजागर किया।
कैसे रुकी फांसी? ग्रैंड मुफ्ती का हस्तक्षेप
केरल की नर्स निमिषा प्रिया, जिन्हें 2017 में यमन के एक नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी, 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी थी। भारत सरकार और निमिषा के परिवार के प्रयास विफल होने के बाद ग्रैंड मुफ्ती शेख अबू बकर ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। उन्होंने यमन के प्रमुख सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क किया, जिनके माध्यम से यमनी अधिकारियों और पीड़ित परिवार से बातचीत की गई।
मुस्लियार ने इस्लामी शरिया कानून का हवाला देते हुए कहा, “इस्लाम में यदि हत्यारे को मौत की सजा सुनाई जाती है, तो पीड़ित परिवार को माफी देने का अधिकार है।” उनकी अपील और यमनी विद्वानों के साथ उनकी मित्रता ने यमन सरकार को फांसी स्थगित करने के लिए प्रेरित किया। इस्लाम में ‘ब्लड मनी’ की प्रथा के तहत पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर माफी की संभावना पर भी बातचीत चल रही है, जिसके लिए निमिषा की मां प्रेमा कुमारी यमन में मौजूद हैं। इस हस्तक्षेप ने न केवल निमिषा के लिए नई उम्मीद जगाई, बल्कि धार्मिक कूटनीति की शक्ति को भी उजागर किया।

कौन हैं ये ‘ग्रैंड मुफ्ती’?
शेख अबू बकर अहमद, जिन्हें कंथापुरम एपी अबू बकर मुस्लियार के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सुन्नी मुस्लिम समुदाय के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं में से एक हैं। 22 मार्च 1931 को केरल के कोझिकोड जिले के कंथापुरम गांव में जन्मे 94 वर्षीय इस आलिम को 24 फरवरी 2019 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित गरीब नवाज़ शांति सम्मेलन में भारत का दसवां ग्रैंड मुफ्ती चुना गया। हालांकि यह खिताब आधिकारिक रूप से सरकारी नहीं है, लेकिन उनके इस्लामी शरिया कानून के गहन ज्ञान और सामाजिक प्रभाव के कारण उन्हें यह सम्मान प्राप्त है। दक्षिण एशिया में सुन्नी समुदाय के बीच उनकी आवाज का विशेष महत्व है।
मुस्लियार ने अरबी, उर्दू और मलयालम में 60 से अधिक किताबें लिखी हैं और 12,000 से अधिक प्राथमिक विद्यालयों, 11,000 माध्यमिक विद्यालयों और 638 कॉलेजों सहित कई शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों का संचालन किया है। उनकी आत्मकथा विश्वसापूर्वम का विमोचन 2024 में हुआ, जिसमें उन्होंने शिक्षा को शांति की कुंजी बताया। वह जॉर्डन के रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर और अमेरिका के जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय द्वारा तैयार विश्व के 500 सबसे प्रभावशाली मुस्लिमों की सूची में शामिल हैं।

CAA पर विवादास्पद बयान
ग्रैंड मुफ्ती शेख अबू बकर 2019-20 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ अपने बयानों के कारण भी चर्चा में रहे। उन्होंने इस कानून का विरोध किया, लेकिन साथ ही सड़कों पर उतरीं महिलाओं को नसीहत दी कि वे इस तरह के विरोध प्रदर्शनों से बचें। इस बयान ने कुछ लोगों के बीच विवाद पैदा किया, क्योंकि यह विरोध प्रदर्शनों को हतोत्साहित करने वाला माना गया। फिर भी, उन्होंने भारत के धर्मनिरपेक्ष और विविध समाज में शांति और एकता को बढ़ावा देने की वकालत की। 2014 में उन्होंने ISIS के खिलाफ फतवा जारी कर अपनी शांति समर्थक छवि को मजबूत किया था।
क्या था पूरा मामला?
निमिषा प्रिया, जो 2008 में नर्स के रूप में यमन गई थीं, उन्होंने 2014 में तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक क्लिनिक शुरू किया था। लेकिन तलाल ने कथित तौर पर उनके पैसे चुराए, उनका पासपोर्ट जब्त किया और शारीरिक उत्पीड़न किया। 2017 में, अपने पासपोर्ट को वापस पाने के लिए, निमिषा ने तलाल को बेहोश करने के लिए सेडेटिव का इस्तेमाल किया, लेकिन गलती से अधिक मात्रा में दवा देने से उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, निमिषा ने सबूत मिटाने के लिए उनके शव को टुकड़ों में काटकर एक पानी के टैंक में फेंक दिया। 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, और 2023 में उनकी अपील खारिज हो गई।

अब, शेख अबूबक्कर की मध्यस्थता और भारतीय सरकार के निजी प्रयासों के साथ, तलाल के परिवार के साथ ‘दियात’ पर बातचीत जारी है। निमिषा की मां, जो अप्रैल 2024 से यमन में हैं, और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ ने $1 मिलियन (लगभग ₹8.3 करोड़) की पेशकश की है। यदि पीड़ित का परिवार इसे स्वीकार करता है, तो निमिषा की सजा माफ हो सकती है।
शेख अबूबक्कर अहमद की कोशिशों ने न केवल निमिषा प्रिया के लिए एक नई उम्मीद जगाई है, बल्कि यह भी दिखाया है कि धार्मिक कूटनीति और मानवता की भावना सीमाओं को पार कर सकती है। उनके हस्तक्षेप ने भारत और यमन के बीच सीमित कूटनीतिक संबंधों के बावजूद एक संभावित समाधान का रास्ता खोला है। अब सभी की निगाहें तलाल के परिवार के फैसले पर टिकी हैं, जो निमिषा के भविष्य को तय करेगा।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।