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नई दिल्ली, 05 अगस्त 2025: भारत के प्रमुख राजनेता और जम्मू-कश्मीर, गोवा, बिहार और मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक (Satya Pal Malik) का 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। लंबे समय से बीमार चल रहे मलिक का दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा था, जहां 5 अगस्त 2025 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर ने देश भर में शोक की लहर दौड़ा दी है। मलिक अपने बेबाक बयानों, किसान आंदोलन के समर्थन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रुख के लिए जाने जाते थे। आइए, उनके जीवन, योगदान और विवादों पर एक नजर डालते हैं।
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने मेरठ के एक कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की। 1974 में वह चौधरी चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल से विधायक चुने गए। इसके बाद, उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों जैसे समाजवादी पार्टी, जनता दल, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ काम किया। 1980 और 1986 में वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे और 1989-1991 तक अलीगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए।
मलिक को 2017 में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और इसके बाद वह जम्मू-कश्मीर (2018-2019), गोवा और मेघालय (2020-2022) के राज्यपाल रहे। उनके कार्यकाल के दौरान जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया, जिसमें उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। हालांकि, बाद में वह केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर हो गए, जिसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बेबाक रुख
सत्यपाल मलिक अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रहे। उन्होंने दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उन्हें किरू हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट और अन्य योजनाओं में 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 2024 में उनके और अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिसे मलिक ने राजनीतिक साजिश करार दिया। उन्होंने कहा, “मैंने खुद इस भ्रष्टाचार को उजागर किया, फिर भी मुझे फंसाने की कोशिश की जा रही है।” मलिक ने पुलवामा हमले (2019) की जांच में देरी को लेकर भी सरकार पर सवाल उठाए थे, जिससे वह विवादों में घिर गए।

किसान आंदोलन और सामाजिक मुद्दों में सक्रियता
मलिक ने 2020-2021 के किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों का खुलकर विरोध किया। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने की मांग उठाई और किसानों के साथ अपनी एकजुटता दिखाई। मलिक ने दावा किया कि उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी रुकवाई थी। इसके अलावा, उन्होंने महिला पहलवानों के आंदोलन और अग्निपथ योजना के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनके बयान अक्सर केंद्र सरकार के लिए असहज करने वाले रहे, जिसके कारण उनकी छवि एक बागी नेता के रूप में उभरी। मलिक ने कहा था, “मैं किसान का बेटा हूं, न डरूंगा, न झुकूंगा।”

पिछले कुछ महीनों से सत्यपाल मलिक किडनी की गंभीर समस्या से जूझ रहे थे और दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे। जून 2025 में उन्होंने अपने एक्स अकाउंट से एक भावुक पोस्ट साझा किया था, जिसमें उन्होंने अपनी गंभीर हालत और सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उनके निजी सचिव कंवर सिंह राणा ने जुलाई 2025 में उनके निधन की अफवाहों का खंडन किया था, लेकिन 5 अगस्त 2025 को उनकी मृत्यु की पुष्टि हुई।
सत्यपाल मलिक का निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी बेबाकी, ईमानदारी और किसानों व सामाजिक मुद्दों के प्रति समर्पण ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया। हालांकि, उनके विवादास्पद बयानों ने उन्हें कई बार मुश्किलों में भी डाला। मलिक की विरासत एक ऐसे नेता की है, जो सत्ता के सामने सच बोलने से नहीं डरे। उनके निधन पर देश भर से शोक संदेश आ रहे हैं और लोग उनकी सादगी और साहस को याद कर रहे हैं।
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राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।