Environment Day 2025: आज के युग में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की स्थिति: एक विचार!

Environment Day 2025: आज के युग में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की स्थिति: एक विचार!

आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में Environment और जलवायु परिवर्तन एक ऐसी चुनौती बन चुकी है, जिसे अब नजरअंदाज करना नामुमकिन है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, नीति निर्माताओं और आम नागरिकों को यह एहसास हो चुका है कि अगर अब भी हमने इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा। तापमान में वृद्धि, मौसम के असंतुलन, प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि, और जैव विविधता का ह्रास ये सब स्पष्ट संकेत हैं कि पृथ्वी “संतुलन” की अवस्था खो रही है।

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वैश्विक स्तर पर Environment की स्थिति

(क) जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक संकेत

Environment और जलवायु परिवर्तन अब केवल एक परिकल्पना नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा सिद्ध वास्तविकता है। IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की छठी रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक औसत तापमान में 1.1°C की वृद्धि हो चुकी है और यदि यही रफ्तार रही तो सदी के अंत तक यह 2.5°C तक जा सकता है।

(ख) ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र स्तर में वृद्धि

हिमालय और आर्कटिक क्षेत्रों के ग्लेशियर अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र स्तर बढ़ रहा है। इससे तटीय क्षेत्रों और द्वीप देशों जैसे मालदीव, फिजी, और बांग्लादेश में बाढ़ और विस्थापन की घटनाएं बढ़ रही हैं।

(ग) मौसम चक्र का असंतुलन

Environment में मौसम अब अनुमानित नहीं रह गया है। कहीं अत्यधिक वर्षा हो रही है तो कहीं अकाल सूखा। भारत जैसे कृषि-प्रधान देशों में मानसून की अनियमितता सीधे कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रही है।

प्रमुख देशों की भूमिका

(क) अमेरिका की भूमिका

अमेरिका, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। 2015 में पेरिस समझौते का हिस्सा बना लेकिन 2017 में इससे अलग हो गया। हालांकि, 2021 में पुनः इसमें शामिल हुआ और अब क्लाइमेट लीडरशिप की दिशा में अग्रसर है।

महत्वपूर्ण प्रयास:

  • 2030 तक उत्सर्जन में 50-52% की कटौती।
  • $369 अरब की ग्रीन एनर्जी इन्वेस्टमेंट।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी और सोलर-हब विकास।

(ख) चीन की भूमिका

चीन सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, लेकिन उसने 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की घोषणा की है। चीन वैश्विक सौर और पवन ऊर्जा निवेश में अग्रणी है।

प्रमुख कदम:

  • कोयले पर निर्भरता घटाना।
  • ग्रीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव।
  • 2030 तक उत्सर्जन को पीक पर लाने का लक्ष्य।

(ग) यूरोपीय संघ की भूमिका

EU Environment सुधारों में सबसे प्रभावी है। ‘ग्रीन डील’ के तहत यह 2050 तक कार्बन-न्यूट्रल बनने का प्रयास कर रहा है।

प्रमुख नीतियाँ:

  • Fit for 55: 2030 तक उत्सर्जन में 55% की कटौती।
  • क्लाइमेट टैक्स और कार्बन ट्रेडिंग।
  • Environment और जलवायु वित्त में विकासशील देशों को सहायता।

(घ) अन्य देश (जापान, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया)

  • जापान ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है।
  • ब्राज़ील में वनों की कटाई गंभीर चिंता है, फिर भी Amazon वर्षावनों को बचाने के लिए नए प्रयास शुरू किए गए हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया में जीवाश्म ईंधन उद्योग मजबूत है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में परिवर्तन दिख रहा है।

भारत की भूमिका

(क) सतत विकास लक्ष्य (SDGs)

भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों को अपनाया है, जिनमें से कई सीधे तौर पर Environment और जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं:

  • लक्ष्य 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता
  • लक्ष्य 7: सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
  • लक्ष्य 11: सतत शहर और समुदाय
  • लक्ष्य 13: जलवायु कार्रवाई

(ख) Environment में भारत की योजनाएं और मिशन

  1. राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन (NAPCC)
    इसमें 8 राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं जैसे:
    • राष्ट्रीय सौर मिशन
    • ऊर्जा दक्षता मिशन
    • जल मिशन
    • ग्रीन इंडिया मिशन
  2. उज्ज्वला योजना, LED वितरण (UJALA), और ऊर्जा कुशल उपकरण
    भारत ने व्यापक स्तर पर Environment और ऊर्जा बचाने और प्रदूषण कम करने के लिए LED बल्बों और कुशल उपकरणों का वितरण किया है।
  3. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
    भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त पहल, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा को वैश्विक स्तर पर अपनाना है।

(ग) कार्बन न्यूट्रल बनने की प्रतिबद्धता

COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘Panchamrit’ (पाँच अमृत तत्व) की घोषणा की, जिनमें से प्रमुख लक्ष्य है:

  • 2070 तक भारत को कार्बन न्यूट्रल बनाना।
  • 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा उत्पादन।
  • 1 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में कमी।

भारत के पर्यावरणीय कानून

भारत में कई सख्त Environment कानून मौजूद हैं:

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: सभी प्रकार के प्रदूषण पर नियंत्रण।
  • वायु अधिनियम, 1981: वायु प्रदूषण नियंत्रण।
  • जल अधिनियम, 1974: जल स्रोतों को बचाना।
  • NGT (राष्ट्रीय हरित अधिकरण): पर्यावरणीय मामलों में त्वरित न्याय।

Environment और जलवायु परिवर्तन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

(क) कृषि पर प्रभाव

Environment और जलवायु परिवर्तन से मानसून असामान्य हो गया है, जिससे फसल चक्र गड़बड़ा गया है। सूखा और बाढ़ की घटनाएं किसानों को आर्थिक संकट में डाल रही हैं।

(ख) स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु प्रदूषण, जल स्रोतों की गुणवत्ता में गिरावट और हीटवेव से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो रहा है। WHO के अनुसार, हर साल लाखों लोगों की मौत केवल वायु प्रदूषण के कारण होती है।

(ग) प्रवास और विस्थापन

बढ़ते समुद्र स्तर और प्राकृतिक आपदाएं लोगों को उनके घर छोड़ने के लिए मजबूर कर रही हैं। “क्लाइमेट रिफ्यूजी” नामक एक नई आबादी उभर रही है।

समाधान और सुझाव

  • नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग– भारत में सौर और पवन ऊर्जा की प्रचुरता है। इन स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग करना ज़रूरी है।
  • सामुदायिक जागरूकता– स्कूलों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से पर्यावरणीय शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
  • वृक्षारोपण और जल संरक्षण– वनों का पुनः सृजन और जल स्रोतों का संरक्षण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बना सकता है।
  • जिम्मेदार उपभोग– प्लास्टिक का उपयोग कम करना, पुनः उपयोग और पुनः चक्रण को बढ़ावा देना।

Environment और जलवायु परिवर्तन की चुनौती वैश्विक है और इसका समाधान भी वैश्विक सहयोग से ही संभव है। भारत जैसे विकासशील देश ने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बीच संतुलन बनाकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब सरकार, उद्योग, समाज और हर नागरिक मिलकर एकजुटता से कार्य करें।

पृथ्वी हमारी धरोहर नहीं, भावी पीढ़ियों से उधार लिया गया ऋण है।
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए ही हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ, हरित और सुरक्षित पर्यावरण दे सकते हैं।

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