प्रमुख बिंदु-
Deadly Cough Syrup: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक साधारण सर्दी-खांसी की दवा ने मासूम बच्चों की जिंदगियां छीन लीं। पिछले 20 दिनों में यहां 9 बच्चों की किडनी फेलियर से मौत हो चुकी है, जबकि पड़ोसी राजस्थान के सीकर और भरतपुर में भी दो और बच्चे इसी जहर का शिकार हो गए। जांच में सामने आया है कि नेक्सट्रो-डीएस और कोल्ड्रिफ जैसे कफ सिरप में घातक केमिकल डायएथिलीन ग्लायकॉल (DEG) मिला था। यह वही विषैला पदार्थ है, जो गाड़ियों के ब्रेक ऑयल और पेंट में इस्तेमाल होता है।
हादसे की शुरुआत: सर्दी से मौत तक का सफर
यह दर्दनाक सिलसिला 24 अगस्त से शुरू हुआ, जब परासिया क्षेत्र के कुछ बच्चों को मामूली बुखार और खांसी हुई। परिजनों ने स्थानीय डॉक्टरों से सलाह ली और नेक्सट्रो-डीएस व कोल्ड्रिफ सिरप खरीदे। शुरुआत में सब ठीक लगा, लेकिन जल्द ही बच्चों की हालत बिगड़ने लगी। पेशाब बंद हो गया, उल्टी-दस्त शुरू हो गए और शरीर में सूजन आ गई। कई परिवार छिंदवाड़ा के अस्पताल पहुंचे, लेकिन गंभीर हालत देखते हुए उन्हें नागपुर के निजी अस्पतालों में रेफर कर दिया गया। वहां डॉक्टरों ने किडनी बायोप्सी की, जिसमें टॉक्सिन मीडिएटेड इंजरी की पुष्टि हुई।
विशेषज्ञों का कहना है कि DEG नामक यह केमिकल किडनी को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है, जो बच्चों के लिए घातक साबित होता है। जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. नरेश गुन्नाडे ने बताया कि 4 सितंबर से 26 सितंबर तक 6 मौतें हुईं, लेकिन अब आंकड़ा 9 तक पहुंच गया है। अभी भी 7 बच्चे अस्पतालों में जूझ रहे हैं, जिनमें 4 नागपुर में वेंटिलेटर पर हैं।

सिरप में ब्रेक ऑयल जैसा जहर
नागपुर लैब की रिपोर्ट ने सबको स्तब्ध कर दिया। मृत बच्चों की किडनी बायोप्सी में DEG की मौजूदगी साफ नजर आई। छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन नांदुलकर ने कहा, “यह केमिकल सिरप में ग्लिसरीन की जगह सस्ते विकल्प के तौर पर मिलाया जाता है। पुरानी रिसर्च बताती है कि यह बच्चों की किडनी को 48 घंटों में फेल कर सकता है।” 27 सितंबर को सैंपल पुणे की लैब भेजे गए, जहां से पुष्टि हुई कि तमिलनाडु की एक फार्मा कंपनी से आए ये सिरप दूषित थे।
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) और ICMR की टीमों ने छिंदवाड़ा पहुंचकर पानी, दवा और कीटाणु सैंपल इकट्ठा किए। कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने कहा, “आरंभिक रिपोर्ट्स से साफ है कि दूषित सिरप ही मौत का कारण है। हमने सभी मेडिकल स्टोर्स पर छापे मारे और 16 सैंपल जबलपुर भेजे।” राजस्थान में भी इसी तरह के सिरप से दो मौतें हुईं, जहां 19 बैचों पर बैन लगा दिया गया।

बैन तो लगा, लेकिन कितना असरदार?
मौतों की खबर फैलते ही छिंदवाड़ा कलेक्टर ने नेक्सट्रो-डीएस और कोल्ड्रिफ की बिक्री, वितरण और उपयोग पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया। भोपाल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनीष शर्मा ने एडवाइजरी जारी की- डॉक्टरों को सलाह दी कि वे कॉम्बिनेशन दवाएं न लिखें, सिर्फ पैरासिटामॉल जैसे सिम्पटम-विशेष दवाएं दें। सरकारी अस्पतालों में ये सिरप पहले से उपलब्ध नहीं थे, लेकिन निजी दुकानों पर जांच अभियान चलाया जा रहा है।
कटारिया फार्मास्यूटिकल्स पर छापा पड़ा, जहां से कई सैंपल जब्त हुए। स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने कहा, “जांच पूरी होने तक बैन रहेगा। ICMR रिपोर्ट से सच्चाई सामने आएगी।” हालांकि, उपमुख्यमंत्री ने शुरू में सिरप को मौत का कारण बताने से इनकार किया था, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाए। अब केंद्र सरकार ने भी जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि देर हो चुकी है।
विपक्ष का हमला, सरकार का बचाव
यह मामला अब सियासत का अखाड़ा बन गया है। कांग्रेस विधायक सोहन वाल्मीकि ने कहा, “प्रशासन ने शुरुआत में मामले को हल्के में लिया, वरना इतनी मौतें न होतीं।” पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कफ सिरप पर बैन और सभी दवाओं की जांच की मांग की। उन्होंने ट्वीट कर पूछा, “मासूमों की मौत पर सरकार सो रही है क्या?” विपक्षी नेता उमंग सिंहर ने प्रभावित परिवारों को मुआवजे की घोषणा की मांग की।
दूसरी ओर, स्वास्थ्य मंत्री ने सफाई दी कि “सिरप पूरी तरह निर्दोष है, मौतें वायरल इंफेक्शन से हुईं।” लेकिन रिपोर्ट्स के बाद उनका रुख बदला। परासिया से कांग्रेस विधायक ने दावा किया कि मौतें 7 हैं, जबकि प्रशासन 6 मान रहा था। सोशल मीडिया पर #कफ_सीरप_कांड ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग सरकार की लापरवाही पर सवाल उठा रहे हैं।
क्या दवाओं पर भी नहीं कर सकते भरोसा?
यह हादसा 2022 के गाम्बिया कांड की याद दिलाता है, जहां भारतीय सिरप से 70 बच्चों की मौत हुई थी। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि दवा उद्योग में क्वालिटी कंट्रोल की कमी घातक साबित हो रही है। डॉ. नांदुलकर ने सलाह दी, “माता-पिता सर्दी-खांसी में घरेलू उपाय अपनाएं, बिना डॉक्टर की सलाह दवा न दें।”
NCDC की टीम ने राजस्थान के सिकार और भरतपुर से भी सैंपल लिए, जहां एक डॉक्टर ने सिरप की ‘सुरक्षा’ साबित करने की कोशिश में बेहोश हो गया। अब सवाल यह है कि क्या यह जांच सिर्फ कागजों पर रह जाएगी? प्रभावित परिवारों को न्याय कब मिलेगा? छिंदवाड़ा के गलियों में आज भी मातम का सन्नाटा है – सजा का इंतजार करते हुए।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।