Chandola Demolition: बुलडोज़र की चपेट में चंदोला झील, बांग्लादेशी घुसपैठियों पर कार्रवाई या मानवीय संकट?

Chandola Demolition

Chandola Demolition- गुजरात हाईकोर्ट ने दखल से किया इनकार, चंदोला झील पर चला AMC का बड़ा अभियान

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Chandola Demolition– अहमदाबाद में बृहद कार्रवाई के बाद 6500 से अधिक लोगों की पहचान

अहमदाबाद के चंदोला झील क्षेत्र में हाल ही में नगर निगम (AMC) और पुलिस प्रशासन द्वारा एक विशाल विध्वंस अभियान चलाया गया, जिसमें सैकड़ों झुग्गियों को ढहा दिया गया। अधिकारियों के अनुसार, इस क्षेत्र को “अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों” का गढ़ माना जा रहा था। इस अभियान में अब तक 6500 से अधिक संदिग्ध लोगों को चिन्हित कर हिरासत में लिया गया है।

इस कार्रवाई ने पूरे राज्य और देशभर में राजनीतिक व मानवीय बहस को जन्म दे दिया है। कुछ इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर उचित ठहरा रहे हैं, जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ता और प्रभावित लोग इसे ‘अवैध और अमानवीय’ करार दे रहे हैं।

गुजरात हाईकोर्ट का रुख: राहत से किया इनकार

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29 अप्रैल को गुजरात हाईकोर्ट ने इस विध्वंस को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह प्रशासनिक मामला है और इस पर फिलहाल कोर्ट कोई राहत नहीं दे सकती। अदालत ने यह भी नोट किया कि संबंधित क्षेत्र एक जलाशय (वॉटरबॉडी) के अंतर्गत आता है, जिस पर अवैध कब्जा किया गया था।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं और स्थानीय निवासियों का कहना है कि कई लोग पिछले 20 से 25 वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे थे और उनके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड तथा मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज हैं। इसके बावजूद उन्हें “बांग्लादेशी” कहकर निशाना बनाया जा रहा है।

Chandola Demolition: अतिक्रमण या आश्रय?

Chandola Demolition चंदोला झील अहमदाबाद की एक ऐतिहासिक जल संरचना है, जो वर्षों से अतिक्रमण की चपेट में रही है। नगर निगम का दावा है कि इस क्षेत्र में अवैध बस्तियां झील की पारिस्थितिकी और जल प्रबंधन को प्रभावित कर रही थीं। एक AMC अधिकारी ने बताया कि यह ऑपरेशन “नदी और जल निकायों को पुनर्जीवित करने की योजना” का हिस्सा है।

दूसरी ओर, स्थानीय निवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह झुग्गियां जरूरतमंद और प्रवासी मज़दूरों के लिए आश्रय स्थल थीं, जिन्हें बिना वैकल्पिक व्यवस्था के उजाड़ दिया गया।

“बांग्लादेशी घुसपैठिए” या भारतीय नागरिक

Chandola Demolition- सरकार और पुलिस प्रशासन का तर्क है कि चंदोला झील के आसपास की बस्तियों में बड़ी संख्या में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिक थे, जो फर्जी दस्तावेजों के जरिए यहां बसे थे। हालांकि, यह पहचान प्रक्रिया कितनी विश्वसनीय है, इस पर सवाल उठ रहे हैं।

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि बिना किसी पूर्व सूचना या नोटिस के उनकी झुग्गियां ढहा दी गईं और उन्हें “घुसपैठिया” घोषित कर दिया गया। एक महिला ने बताया, “हम यहां पिछले 22 वर्षों से रह रहे हैं। मेरे बच्चे यहीं पैदा हुए, यहीं स्कूल गए। अब अचानक हमें बाहर फेंक दिया गया।”

विध्वंस की भयावहता: घरों के साथ सपने भी टूटे

Chandola Demolition के बाद सोशल मीडिया और स्थानीय रिपोर्टों में कई परिवारों के वीडियो सामने आए हैं, जिनमें वे अपने टूटे-फूटे घरों के मलबे के बीच बैठे रोते नजर आते हैं। बच्चों की किताबें, बुजुर्गों की दवाइयाँ और रोज़मर्रा का सामान सब मलबे में दब चुका है।

मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह अभियान बिना पुनर्वास योजना के किया गया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए हैं। कई लोगों को खुले आसमान के नीचे रहना पड़ रहा है, जहां न तो पीने का पानी है और न ही शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं।

विपक्ष और कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

Chandola Demolition- विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को “राजनीतिक स्टंट” करार दिया है। एक नेता ने कहा, “घुसपैठ के नाम पर गरीबों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अगर ये लोग वाकई घुसपैठिए हैं तो अदालतों और कानून के माध्यम से कार्रवाई होनी चाहिए, न कि बुलडोज़र के जरिए।”

सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति शाह ने कहा, “अगर सरकार को शक है कि ये लोग बांग्लादेशी हैं, तो उसकी भी कानूनी प्रक्रिया है। लोगों को जबरन बेदखल करना संविधान के खिलाफ है।”

प्रशासन की सफाई: वैध प्रक्रिया के तहत कार्रवाई

AMC और पुलिस प्रशासन का कहना है कि Chandola Demolition की कार्रवाई पूरी तरह से वैध प्रक्रिया और क़ानूनी आदेशों के तहत की गई है। अधिकारियों ने दावा किया कि कई बार नोटिस दिए गए थे, लेकिन अनसुना किया गया। इसके अलावा, हाईकोर्ट द्वारा इस क्षेत्र को ‘जलाशय’ मानने के बाद यहां से अतिक्रमण हटाना जरूरी हो गया था।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पुनर्वास की प्रक्रिया जारी है और जिनके पास वैध दस्तावेज हैं, उन्हें अलग से जांच कर उचित सहायता दी जाएगी।

मानवाधिकार बनाम सुरक्षा: बहस जारी

Chandola Demolition का मामला अब एक बड़े राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन चुका है। क्या घुसपैठ की आशंका पर किसी बस्ती को उजाड़ा जा सकता है? क्या यह राष्ट्रहित है या गरीबों का उत्पीड़न? क्या पुनर्वास के बिना कोई कार्रवाई मान्य है?

जहां एक ओर सरकार इसे कानून और सुरक्षा का मामला बता रही है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल उठ रहा है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 21 — जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार — का उल्लंघन नहीं हो रहा?

निष्कर्ष: बुलडोज़र के नीचे दबा इंसानियत का सवाल

Chandola Demolition केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं है, यह भारतीय लोकतंत्र की संवेदनशीलता और संतुलन की परीक्षा है। अवैध कब्जा हटाना जरूरी हो सकता है, लेकिन बिना मानवीय दृष्टिकोण के की गई कोई भी कार्रवाई अन्यायपूर्ण प्रतीत होती है।

Chandola Demolition में जरूरी है कि सरकार अवैध घुसपैठ की जांच करे, लेकिन साथ ही उन लोगों के अधिकारों की भी रक्षा करे जो दशकों से नागरिक की तरह यहां जीवन यापन कर रहे हैं।

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