प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले बिहार वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर हंगामा मचा हुआ है। चुनाव आयोग द्वारा 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इस प्रक्रिया को गैरकानूनी और गरीब विरोधी बताया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की कम भागीदारी पर हैरानी जताई है। कोर्ट ने आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने और हटाए गए मतदाताओं को ऑनलाइन दावा जमा करने की अनुमति दी है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और हैरानी
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। ये याचिकाएं राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव और बिहार के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग के 24 जून 2025 के उस आदेश को रद्द करने की मांग की है, जिसमें मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 11 विशेष दस्तावेज जमा करने को कहा गया है।
कोर्ट ने इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की कम भागीदारी पर आश्चर्य जताया। चुनाव आयोग ने बताया कि SIR के तहत 85,000 नए मतदाताओं को जोड़ा गया, लेकिन बूथ-लेवल एजेंटों ने केवल दो आपत्तियां दर्ज कीं। कोर्ट ने कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि इतने बड़े पैमाने पर चल रही इस प्रक्रिया में राजनीतिक दल सक्रिय नहीं हैं।” कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि हटाए गए मतदाताओं को आधार कार्ड या अन्य 11 मान्य दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन दावा जमा करने की सुविधा दी जाए।

बिहार वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख मतदाता
बिहार में SIR अभियान के तहत 7.89 करोड़ मतदाताओं की जांच की गई, जिसमें से 65 लाख नाम हटाए गए। चुनाव आयोग के अनुसार, नाम हटाने के मुख्य कारण मृत्यु, स्थायी पलायन और डुप्लिकेट प्रविष्टियां थीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन नामों की सूची 19 अगस्त तक सभी 38 जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर अपलोड कर दी गई। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह कदम पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया। उन्होंने दावा किया कि किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना नोटिस और सुनवाई के नहीं हटाया जाएगा।
हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को गैरकानूनी और पक्षपातपूर्ण करार दिया। राजद सांसद मनोज झा और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क दिया कि 65 लाख मतदाताओं को हटाना संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन है। प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को गैर-खोज योग्य बनाया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठे।

आधार कार्ड और दस्तावेजों का विवाद
चुनाव आयोग ने शुरू में आधार कार्ड, वोटर आईडी, और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया था। इसके बजाय, 11 दस्तावेज जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, स्थायी निवास प्रमाणपत्र और शैक्षिक प्रमाणपत्र को अनिवार्य किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये दस्तावेज ग्रामीण और गरीब मतदाताओं के लिए उपलब्ध कराना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को आयोग को आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मान्यता देने पर विचार करने का निर्देश दिया। 14 अगस्त को कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आधार कार्ड को दावा फॉर्म के लिए स्वीकार करने का आदेश दिया।
इसके बावजूद, आयोग ने कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है और SIR का उद्देश्य केवल पात्र भारतीय नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना है। इस बयान ने विपक्षी दलों और याचिकाकर्ताओं के बीच और असंतोष पैदा किया।
दावे-आपत्तियों की प्रक्रिया
चुनाव आयोग ने 1 अगस्त 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की, जो 1 सितंबर तक दावों और आपत्तियों के लिए खुली है। इस दौरान कोई भी व्यक्ति या राजनीतिक दल पात्र मतदाताओं को शामिल करने या अपात्र लोगों को हटाने की मांग कर सकता है। कोर्ट ने आदेश दिया कि हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची न केवल वेबसाइटों पर, बल्कि पंचायत भवनों, प्रखंड कार्यालयों, समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया पर भी व्यापक रूप से प्रचारित की जाए।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) और इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स (EROs) मतदाता सूची की सटीकता के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने अफवाहों पर ध्यान न देने और आधिकारिक स्रोतों पर भरोसा करने की अपील की। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी।

विपक्ष का रुख
विपक्षी दलों, खासकर राजद और तृणमूल कांग्रेस, ने SIR को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को दबाने की साजिश करार दिया है। राहुल गांधी ने भी मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया, जिसके जवाब में आयोग ने उनसे लिखित शपथपत्र या सार्वजनिक माफी की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर SIR में कोई अनियमितता पाई गई, तो पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है। अगली सुनवाई में कोर्ट यह जांचेगा कि आयोग ने उसके आदेशों का पालन कैसे किया। इस बीच, मतदाताओं को सलाह दी गई है कि वे अपने EPIC नंबर के साथ ऑनलाइन अपनी स्थिति जांचें और जरूरी दस्तावेज जमा करें।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
