प्रमुख बिंदु-
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, लेकिन विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर इतना घमासान मचा है कि पूरा गठबंधन ही बिखरने की कगार पर नजर आ रहा है। पहले चरण के नामांकन खत्म होने के बावजूद RJD, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दलों के बीच सहमति नहीं बन पाई है। नतीजतन, कई सीटों पर गठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार चुके हैं, जो NDA के लिए सुनहरा मौका साबित हो सकता है। क्या यह अंदरूनी कलह महागठबंधन को हार की ओर धकेल देगी? आइए जानते हैं पूरी कहानी।
सीट बंटवारे का अनसुलझा गणित
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं, लेकिन महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अभी तक कागज पर तय नहीं हो सका। RJD नेता तेजस्वी यादव की पार्टी सबसे बड़े हिस्से की दावेदार है और करीब 125 से 135 सीटों की मांग कर रही है। वहीं, कांग्रेस 50 से 60 सीटों पर अड़ी हुई है, जबकि वाम दल जैसे सीपीआई-एमएल, सीपीआई और सीपीएम कुल 29 से 34 सीटें चाहते हैं। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी भी 15 से 20 सीटों की जिद पर कायम हैं।
सूत्रों के मुताबिक, RJD और कांग्रेस के बीच मुख्य विवाद उन सीटों पर है जहां दोनों पार्टियों का मजबूत आधार है। पहले चरण के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 18 अक्टूबर को गुजर चुकी है, लेकिन गठबंधन ने उम्मीदवारों की आधिकारिक सूची जारी नहीं की। कांग्रेस ने अकेले ही 48 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी, जिससे RJD में नाराजगी बढ़ गई। वाम दलों ने भी RJD-कांग्रेस से त्याग की अपील की है, लेकिन बातचीत बेनतीजा रही। इस देरी से गठबंधन की कमजोर तैयारी उजागर हो रही है, जबकि चुनाव के पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होना है।

दोस्ताना मुकाबलों का बढ़ता सिलसिला
महागठबंधन की इस खींचतान का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि कम से कम 10 सीटों पर उसके घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतर चुके हैं। वैशाली, तारापुर, कुटुम्बा, सिकंदरा और इमामगंज जैसी प्रमुख सीटों पर RJD के उम्मीदवार कांग्रेस या वीआईपी के प्रत्याशियों से टकरा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, कुटुम्बा सीट पर कांग्रेस के पूर्व मंत्री सुरेश पासवान और RJD के उम्मीदवार के बीच सीधा मुकाबला है।
इन ‘दोस्ताना मुकाबलों’ से वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा है, जो सीधे NDA को फायदा पहुंचाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर गठबंधन एकजुट रहता तो NDA को कड़ी चुनौती मिल सकती थी, लेकिन अब विपक्षी वोट बिखरने से भाजपा-जेडीयू गठबंधन की राह आसान हो गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने तो महागठबंधन से अलग होकर 6 सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है, जिससे गठबंधन की एकता पर और सवाल उठे हैं।

नेताओं की नाराजगी
महागठबंधन में नाराजगी का आलम यह है कि वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने पहले गठबंधन छोड़ने की धमकी दी थी। उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद की मांग की, लेकिन RJD ने इसे ठुकरा दिया। बाद में सीपीआई-एमएल के दीपांकर भट्टाचार्य ने राहुल गांधी से फोन पर बात कर सहनी को मनाया। हालांकि, सहनी अब सिर्फ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे और चुनाव नहीं लड़ेंगे।
कांग्रेस में भी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित करने पर कुछ नेता सहमत नहीं हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने इसे समय से पहले का कदम बताया। राबड़ी देवी के आवास के बाहर एक पूर्व प्रत्याशी ने टिकट न मिलने पर कुर्ता फाड़कर विरोध जताया, जो गठबंधन की अंदरूनी अराजकता को दिखाता है। तेजस्वी यादव और अन्य नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं, लेकिन नतीजा अब तक शून्य है। इस बीच, एआईएमआईएम जैसी पार्टियां अलग से उम्मीदवार उतार रही हैं, जो महागठबंधन के वोट बैंक को और कमजोर कर सकती हैं।
NDA की मजबूत स्थिति
दूसरी तरफ, NDA ने पहले ही सीट बंटवारा तय कर लिया है। भाजपा और जेडीयू को 101-101 सीटें मिली हैं, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 और अन्य सहयोगियों को बाकी सीटें। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने महागठबंधन की स्थिति पर चुटकी ली और कहा कि ‘बिहार बच गया’। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जल्द बिहार में चुनावी रैलियां करेंगे। NDA की एकजुटता और महागठबंधन की कलह से साफ है कि विपक्ष की कमजोरी सत्ताधारी गठबंधन को मजबूत बना रही है।

कुल मिलाकर, बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की यह अस्थिरता न सिर्फ उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा रही है, बल्कि मतदाताओं में भी भ्रम पैदा कर रही है। अगर जल्द समाधान नहीं हुआ तो यह चुनाव NDA के लिए आसान साबित हो सकता है। मतगणना 14 नवंबर को होगी, तब तक राजनीतिक समीकरण कैसे बदलेंगे, यह देखना बाकी है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
