प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली, 07 अगस्त 2025: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम से बड़ी राहत मिली है। खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 में संशोधन कर BCCI को RTI के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया है। यह संशोधन उन खेल संगठनों पर लागू होगा जो सरकारी अनुदान या सहायता पर निर्भर नहीं हैं। BCCI , जो दुनिया के सबसे धनी खेल संगठनों में से एक है, सरकारी फंड पर निर्भर नहीं होने के कारण इस छूट का लाभ उठाएगा। हालांकि, विधेयक के तहत BCCI को राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF) के रूप में पंजीकरण करना होगा, क्योंकि क्रिकेट को 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में शामिल किया गया है।
राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक में संशोधन
23 जुलाई, 2025 को खेल मंत्री मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 पेश किया था। इस विधेयक का मसौदा शुरू में यह कहता था कि सभी मान्यता प्राप्त खेल संगठन RTI अधिनियम, 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण माने जाएंगे। इसका मतलब था कि BCCI को अपनी गतिविधियों, चयन प्रक्रिया और वित्तीय लेनदेन के बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। लेकिन BCCI ने हमेशा RTI के दायरे में आने का विरोध किया है, क्योंकि यह सरकारी अनुदान पर निर्भर नहीं है।
संशोधन के बाद, विधेयक की धारा 15(2) में बदलाव किया गया। अब केवल वही खेल संगठन RTI के दायरे में आएंगे जो केंद्र या राज्य सरकार से अनुदान या वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। BCCI, जो अपनी आय मुख्य रूप से आईपीएल, प्रसारण अधिकारों और प्रायोजनों से कमाता है, इस श्रेणी में नहीं आता। खेल मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, “संशोधित धारा यह स्पष्ट करती है कि सार्वजनिक प्राधिकरण वही संगठन हैं जो सरकारी फंड या सहायता पर निर्भर हैं। इससे विधेयक में अस्पष्टता दूर हुई है, जो इसे अदालत में चुनौती का कारण बन सकती थी।”

BCCI को क्यों मिली राहत?
BCCI का कहना है कि वह एक निजी संगठन है, जो तमिलनाडु सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1975 के तहत पंजीकृत है। यह सरकारी अनुदान के बजाय अपनी वित्तीय स्वतंत्रता पर गर्व करता है। 2016 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आरएम लोढ़ा समिति ने BCCI को RTI के दायरे में लाने की सिफारिश की थी। 2018 में, कानून आयोग ने भी अपनी 275वीं रिपोर्ट में BCCI को सार्वजनिक प्राधिकरण मानने की सलाह दी थी, क्योंकि यह कर छूट, जमीन अनुदान और सार्वजनिक कार्यों के कारण अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी सहायता प्राप्त करता है। लेकिन BCCI ने इसका विरोध किया और मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के 2018 के आदेश पर रोक लगवा दी।
संशोधित विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि केवल सरकारी अनुदान या सहायता लेने वाले संगठन ही RTI के तहत जवाबदेह होंगे। हालांकि, अगर BCCI किसी आयोजन के लिए सरकारी बुनियादी ढांचे (जैसे स्टेडियम) का उपयोग करता है, तो उससे संबंधित जानकारी मांगी जा सकती है। एक सूत्र ने बताया, “सरकारी सहायता केवल धन तक सीमित नहीं है, इसमें बुनियादी ढांचा भी शामिल है।”

ओलंपिक और NSF पंजीकरण का दबाव
2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में टी20 क्रिकेट को शामिल करने के फैसले ने BCCI के लिए स्थिति बदल दी है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) अब एक मान्यता प्राप्त ओलंपिक महासंघ है और BCCI को ओलंपिक चार्टर के तहत NSF के रूप में पंजीकरण करना होगा। यह विधेयक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों को राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB) की मान्यता प्राप्त करने के लिए बाध्य करता है।
NSB का गठन खेल प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए किया जाएगा। यह बोर्ड उन संगठनों को मान्यता देगा जो केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता चाहते हैं। BCCI को भले ही RTI से छूट मिल गई हो, लेकिन उसे नैतिकता आयोग, एथलीट समिति और सुरक्षित खेल नीति जैसे विधेयक के अन्य प्रावधानों का पालन करना होगा। यह भारत की 2036 ओलंपिक की मेजबानी की बोली को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है।

विधेयक के अन्य प्रमुख प्रावधान
राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक में कई अन्य महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं। उदाहरण के लिए, खेल प्रशासकों की आयु सीमा को मौजूदा 70 वर्ष से बढ़ाकर 75 वर्ष कर दिया गया है, बशर्ते अंतरराष्ट्रीय खेल संगठनों के नियम इसकी अनुमति दें। इससे BCCI के मौजूदा अध्यक्ष रोजर बिन्नी, जो 70 वर्ष के हैं, को लाभ हो सकता है।
इसके अलावा, विधेयक में राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB) और राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता अधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव है। NSB में एक अध्यक्ष और सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी। यह समिति कैबिनेट सचिव या खेल सचिव की अध्यक्षता में होगी, जिसमें खेल प्राधिकरण के महानिदेशक, दो अनुभवी खेल प्रशासक और एक द्रोणाचार्य, खेल रत्न या अर्जुन पुरस्कार विजेता शामिल होगा।
राष्ट्रीय खेल मध्यस्थता अधिकरण के पास सिविल कोर्ट की शक्तियां होंगी और यह चयन व चुनाव से संबंधित विवादों को सुलझाएगा। इस अधिकरण के फैसलों को केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। यह कदम खेल प्रशासन में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ाने की दिशा में उठाया गया है।

पारदर्शिता पर बहस
BCCI को RTI से छूट देने का फैसला विवादास्पद हो सकता है। कई सामाजिक संगठन और खेल प्रेमी लंबे समय से मांग करते रहे हैं कि BCCI को RTI के तहत लाया जाए ताकि इसके संचालन में पारदर्शिता सुनिश्चित हो। BCCI का भारतीय क्रिकेट पर एकाधिकार और इसकी विशाल वित्तीय ताकत इसे एक प्रभावशाली संगठन बनाती है। फिर भी, यह एक निजी निकाय के रूप में कार्य करता है, जिसके कारण इसे सार्वजनिक जवाबदेही से बचने का मौका मिलता है।
खेल मंत्रालय का यह कदम उन लोगों के लिए निराशाजनक हो सकता है जो BCCI के संचालन में अधिक पारदर्शिता चाहते हैं। दूसरी ओर, BCCI के समर्थकों का तर्क है कि इसकी वित्तीय स्वतंत्रता इसे अन्य NSF से अलग करती है और इसे अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए। यह बहस भविष्य में और तेज हो सकती है, खासकर जब भारत 2036 ओलंपिक की मेजबानी की दिशा में आगे बढ़ेगा।

राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 में किए गए संशोधन ने BCCI को RTI के दायरे से बाहर रखकर इसे बड़ी राहत दी है। हालांकि, ओलंपिक में क्रिकेट की वापसी के कारण BCCI को NSF के रूप में पंजीकरण करना होगा और विधेयक के कुछ प्रावधानों का पालन करना होगा। यह फैसला खेल प्रशासन में सुधार और भारत की ओलंपिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम है, लेकिन यह पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करने वालों के बीच नई बहस को जन्म दे सकता है।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।