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मुंबई: बॉलीवुड के दिग्गज कॉमेडियन गोवर्धन असरानी (Govardhan Asrani), जिन्हें प्यार से असरानी कहा जाता है, अब हमारे बीच नहीं रहे। 84 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। उनकी मौत की खबर से फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है। असरानी ने पांच दशकों से ज्यादा समय तक दर्शकों को हंसाया, लेकिन उनकी आखिरी सोशल मीडिया पोस्ट ने सबके दिलों को छू लिया।
असरानी का जीवन
असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद ऑल इंडिया रेडियो में बतौर वॉयस आर्टिस्ट काम करना शुरू किया। अभिनय की ट्रेनिंग उन्होंने साहित्य कलाभाई ठक्कर से ली और 1962 में मुंबई आ गए। यहां उन्हें शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से 1966 में ग्रेजुएट होने के बाद भी उन्हें छोटे-मोटे रोल ही मिले।

फिल्मों जैसे ‘हम कहां जा रहे हैं’, ‘हरे कांच की चूड़ियां’ और ‘सत्यकाम’ में उनकी छोटी भूमिकाएं थीं। पैसे की तंगी के चलते उन्होंने FTII में ही पढ़ाना शुरू किया, जो उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। असरानी ने हिंदी के अलावा गुजराती फिल्मों में भी काम किया और अपनी अनोखी कॉमिक टाइमिंग से सबको प्रभावित किया। उनके परिवार में पत्नी मंजू असरानी, बहन और भतीजा हैं, जो उनके साथ मुंबई में रहते थे।

फिल्मी करियर की चमक
असरानी का फिल्मी सफर 1960 के दशक से शुरू हुआ और उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी और राज कपूर जैसे दिग्गजों के साथ उनके सहयोग ने उन्हें बॉलीवुड का भरोसेमंद चरित्र अभिनेता बनाया। उनकी सबसे यादगार भूमिका 1975 की ब्लॉकबस्टर ‘शोले’ में जेलर की थी, जहां उनका डायलॉग ‘अंग्रेजों के जमाने का जेलर हूं मैं’ आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इस रोल के लिए उन्हें सलीम-जावेद की लेखनी और रमेश सिप्पी की निर्देशन की तारीफ हमेशा करते रहे।

इसके अलावा ‘बावर्ची’, ‘नमक हराम’, ‘चुपके चुपके’, ‘अभिमान’, ‘छोटी सी बात’, ‘रफू चक्कर’ और ‘खून पसीना’ जैसी फिल्मों में उनकी कॉमेडी ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया। असरानी ने सिर्फ कॉमेडी ही नहीं, सीरियस रोल भी निभाए और छह फिल्मों का निर्देशन भी किया। उनकी आखिरी फिल्म 2023 की ‘नॉन स्टॉप धमाल’ थी। बॉलीवुड में उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें एक सदाबहार कलाकार बना दिया, जो नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहे।

अंतिम क्षण और आखरी पोस्ट
असरानी लंबे समय से बीमार थे और जुहू के आरोग्य निधि अस्पताल में भर्ती थे। उनके मैनेजर बाबूभाई ने बताया कि सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 20 अक्टूबर को दोपहर करीब 3 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। परिवार ने प्राइवेट सेरेमनी में उनका अंतिम संस्कार संताक्रूज श्मशान घाट पर किया।
मौत से कुछ घंटे पहले ही असरानी ने सोशल मीडिया पर दिवाली की शुभकामनाएं पोस्ट की थीं, जिसमें उन्होंने फैंस को खुशियां बांटीं। परिवार ने उनके इंस्टाग्राम पर एक भावुक संदेश साझा किया- “हमारे प्यारे असरानी जी अब हमारे बीच नहीं हैं। उनकी मौत हिंदी सिनेमा और हमारे दिलों के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी यादें हमेशा जिंदा रहेंगी। ओम शांति।” पत्नी मंजू असरानी, जो खुद एक अभिनेत्री हैं, इस सदमे से उबरने की कोशिश कर रही हैं।

सितारों की आंखें नम
असरानी के निधन की खबर फैलते ही बॉलीवुड में शोक छा गया। अक्षय कुमार ने भावुक संदेश लिखकर सबको रुला दिया। उन्होंने लिखा,
“असरानी जी के निधन पर अवाक हूँ। एक हफ़्ते पहले ही ‘हैवान’ की शूटिंग के दौरान हमने उन्हें गले लगाया था। बहुत प्यारे इंसान थे… उनकी कॉमिक टाइमिंग लाजवाब थी। मेरी सभी चर्चित फ़िल्मों ‘हेरा फेरी’ से लेकर ‘भागम भाग’, ‘दे दना दन’, ‘वेलकम’ और अब हमारी रिलीज़ न हुई ‘भूत बंगला’ और ‘हैवान’ तक… मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा और काम किया। हमारी इंडस्ट्री के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। ईश्वर आपको आशीर्वाद दे असरानी सर, हमें हँसने के लाखों कारण देने के लिए। ॐ शांति”

फिल्म इंडस्ट्री के संगठनों ने उनके योगदान को याद किया और कहा कि उनका जाना एक युग का अंत है। इस साल ‘शोले’ के 50 साल पूरे होने पर असरानी ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था, “लोग आज भी मेरे डायलॉग दोहराते हैं, यह सलीम-जावेद और सिप्पी साहब की देन है।” उनकी मौत से फैंस भी सदमे में हैं और सोशल मीडिया पर उनकी पुरानी क्लिप्स शेयर कर रहे हैं। असरानी की विरासत हिंदी सिनेमा में हमेशा जीवित रहेगी।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
