अमरीश पुरी की अमर यात्रा: खलनायकी से लेकर दिलों को जीतने तक
प्रमुख बिंदु-
मनोरंजन डेस्क, यूनिफाइड भारत: हिंदी सिनेमा में कुछ किरदार ऐसे होते हैं, जो समय की सीमाओं को तोड़कर हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। अमरीश पुरी (Amrish Puri) का नाम उनमें सबसे ऊपर है। उनकी दमदार आवाज, गहरी आँखें, और संवाद अदायगी ने उन्हें बॉलीवुड का सबसे बड़ा खलनायक बनाया, लेकिन उनके किरदारों की गहराई ने उन्हें एक सख्त पिता, एक भ्रष्ट नेता, और एक संवेदनशील ज़मींदार के रूप में भी दर्शकों के दिलों में जगह दी। आज 22 जून 2025 को उनकी जयंती पर, आइए उनकी फिल्मी यात्रा की झलकियों को देखें और उनकी विरासत को नमन करें।
थिएटर से सिल्वर स्क्रीन तक
अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के नवांशहर में हुआ था। उनके पिता निहाल चंद पुरी एक साधारण परिवार से थे, और अमरीश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई शिमला में पूरी की। अभिनय का जुनून उन्हें कॉलेज के दिनों से ही था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ने उन्हें पहले एक सरकारी नौकरी की ओर धकेला। उन्होंने कर्मचारी राज्य बीमा निगम में क्लर्क की नौकरी की, लेकिन उनका दिल तो रंगमंच पर था।
1960 के दशक में, अमरीश पुरी ने पृथ्वी थिएटर जॉइन किया, जो पृथ्वीराज कपूर द्वारा स्थापित था। यहाँ उन्होंने अपनी अभिनय कला को निखारा और नाटकों में गहरे किरदार निभाए। उनकी पहली फिल्म शहीद (1965) थी, जिसमें उन्होंने एक सहायक किरदार निभाया। यह फिल्म भगत सिंह की जीवनी पर आधारित थी, और अमरीश का छोटा सा रोल भी उनकी गंभीरता को दर्शाता था। लेकिन असली पहचान उन्हें 1970 और 1980 के दशक में मिली, जब उन्होंने खलनायकी किरदारों को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

मोगैंबो: एक खलनायक जिसने इतिहास रचा
1987 में आई फिल्म मिस्टर इंडिया ने अमरीश पुरी को एक ऐसे खलनायक के रूप में पेश किया, जिसे दर्शक कभी नहीं भूल सकते। मोगैंबो का किरदार, उसका हँसना, और उसका डायलॉग “मोगैंबो खुश हुआ!” आज भी लोगों की जुबान पर है। इस किरदार ने न केवल बॉलीवुड में खलनायकों की परिभाषा बदली, बल्कि बच्चों से लेकर बड़ों तक को मोगैंबो का प्रशंसक बना दिया। शेखर कपूर की इस साइंस-फिक्शन फिल्म में अमरीश पुरी की दमदार उपस्थिति ने अनिल कपूर और श्रीदेवी जैसे सितारों को भी पीछे छोड़ दिया।
मोगैंबो का किरदार इतना प्रभावशाली था कि इसे बॉलीवुड के सबसे यादगार विलेन में गिना जाता है। उनकी हँसी और संवाद अदायगी ने दर्शकों में डर के साथ-साथ आकर्षण भी पैदा किया। यह किरदार उनकी थिएटर पृष्ठभूमि का नतीजा था, जहाँ उन्होंने किरदारों को जीवंत करने की कला सीखी थी।

सख्त पिता से भ्रष्ट नेता तक: किरदारों की विविधता
अमरीश पुरी केवल खलनायक ही नहीं थे; उन्होंने हर तरह के किरदार को बखूबी निभाया। 1995 में आई दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में उन्होंने चौधरी बलदेव सिंह का किरदार निभाया, जो एक सख्त पिता है, लेकिन अपने परिवार से बेइंतहा प्यार करता है। इस फिल्म में उनका डायलॉग “जा सिमरन, जा, जी ले अपनी जिंदगी” आज भी लोगों को भावुक कर देता है। यह किरदार उनकी बहुमुखी प्रतिभा का सबूत था।

2001 में नायक: द रियल हीरो में उन्होंने भ्रष्ट मुख्यमंत्री बलराज चौहान का किरदार निभाया। इस फिल्म में अनिल कपूर के साथ उनकी टक्कर ने दर्शकों को स्क्रीन से बाँधे रखा। बलराज चौहान का किरदार उनकी गहरी आवाज और प्रभावशाली अभिनय के बिना अधूरा होता।

1995 की करण अर्जुन में ठाकुर दुर्जन सिंह के रूप में उन्होंने क्रूरता की नई मिसाल पेश की। 1996 की घातक: लेथल में काटिया के किरदार ने दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए। 1997 की विरासत में उन्होंने एक शक्तिशाली ज़मींदार पिता का रोल निभाया, जो संवेदनशील और दमदार था। 1993 की दामिनी में बैरिस्टर इन्द्रजीत चड्ढा के रूप में उन्होंने एक चालाक वकील का किरदार निभाया, जो न्याय को अपने फायदे के लिए मोड़ देता है।

गदर: एक और दमदार खलनायकी
2001 में रिलीज़ हुई फिल्म गदर: एक प्रेम कथा में अमरीश पुरी ने अशरफ अली का किरदार निभाया, जो एक प्रभावशाली और क्रूर पाकिस्तानी राजनेता है। इस किरदार में उनकी गहरी आवाज और तीखी नजरों ने एक बार फिर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अशरफ अली का किरदार देशभक्ति और प्रेम की कहानी में एक मजबूत विरोधी के रूप में उभरा, जिसने सनी देओल के तारा सिंह के किरदार को और निखारा। अमरीश पुरी ने इस रोल में अपनी संवाद अदायगी और भाव-भंगिमाओं से एक बार फिर साबित किया कि वह खलनायकी को जीवंत करने में बेमिसाल हैं।

हॉलीवुड में भी बजा डंका
अमरीश पुरी की प्रतिभा केवल बॉलीवुड तक सीमित नहीं थी। 1984 में हॉलीवुड फिल्म इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम में उन्होंने मोलाराम का किरदार निभाया। इस फिल्म में उनका क्रूर और रहस्यमयी किरदार दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित करने में कामयाब रहा। स्टीवन स्पीलबर्ग ने उनके बारे में कहा था, “अमरीश जैसा कोई नहीं, न होगा।”
यह फिल्म उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव थी, क्योंकि उस समय बहुत कम भारतीय अभिनेता हॉलीवुड में अपनी छाप छोड़ पाते थे। मोलाराम का किरदार उनकी गहरी आवाज और अभिनय की ताकत का नमूना था।

संवादों की ताकत: अमरीश पुरी की पहचान
अमरीश पुरी की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी आवाज और संवाद अदायगी। उनके डायलॉग्स इतने प्रभावशाली थे कि वे फिल्म के बाद भी लोगों के जेहन में रह जाते थे। चाहे वह “मोगैंबो खुश हुआ!” हो या फिर “जा सिमरन, जा!” हो, हर डायलॉग में उनकी गहरी आवाज और भावनाओं का समावेश था।
उनके संवादों की ताकत का राज उनकी थिएटर पृष्ठभूमि थी। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने सीखा था कि कैसे एक किरदार को जीवंत किया जाता है। उनकी आवाज में एक ऐसी गहराई थी, जो डर, क्रोध, या प्यार को बखूबी व्यक्त कर सकती थी।

असली जिंदगी में एक विनम्र इंसान
पर्दे पर खतरनाक खलनायक बनने वाले अमरीश पुरी असल जिंदगी में बेहद विनम्र और सौम्य थे। उनके सह-कलाकार और निर्देशक अक्सर उनकी सादगी और समर्पण की तारीफ करते थे। वह सेट पर समय के पाबंद थे और अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित रहते थे। उनकी पत्नी उर्मिला और बेटे राजीव के साथ उनका रिश्ता बहुत आत्मीय था।
अमरीश पुरी की विरासत
12 जनवरी 2005 को अमरीश पुरी का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जिंदा है। उनकी फिल्में, उनके किरदार, और उनके डायलॉग्स एक पीढ़ी के लिए आज भी यादगार है। सोशल मीडिया पर उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भले ही होड़ ना मचती हो पर अपने फिल्मों के हर किरदार में वो आज भी जीवंत हैं।
अमरीश पुरी का करियर नई पीढ़ी के अभिनेताओं के लिए एक मिसाल है। उन्होंने दिखाया कि मेहनत, लगन, और प्रतिभा के दम पर कोई भी अपने सपनों को पूरा कर सकता है। उनकी थिएटर से सिल्वर स्क्रीन तक की यात्रा यह सिखाती है कि कला के प्रति समर्पण कभी बेकार नहीं जाता।

मोगैंबो हमेशा खुश रहेगा!
अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा के एक ऐसे सितारे थे, जिन्होंने खलनायकी को कला का दर्जा दिया। उनके किरदार, चाहे वह मोगैंबो हो, चौधरी बलदेव सिंह हो, या ठाकुर दुर्जन सिंह, हमेशा दर्शकों के दिलों में जिंदा रहेंगे। उनकी जयंती पर, आइए उनकी विरासत को सलाम करें और उनके योगदान को याद करें। मोगैंबो अब भी खुश है, और उनकी यह खुशी हमेशा हमारे बीच रहेगी।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।