अमित शाह ने पेश किया नया बिल: 30 दिन की हिरासत पर PM, CM की कुर्सी खतरे में, विपक्ष का संसद में भारी हंगामा

Amit Shah

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 20 अगस्त, 2025 को लोकसभा में तीन विवादास्पद विधेयक पेश किए, जो भारतीय राजनीति में भूचाल ला रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 को पेश किया। इन विधेयकों का मकसद गंभीर आपराधिक मामलों में 30 दिन से अधिक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को पद से हटाने का कानूनी ढांचा तैयार करना है।

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विधेयक पेश होते ही विपक्ष ने तीखा विरोध जताया, बिल की प्रतियां फाड़ीं और नारेबाजी की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “सुपर इमरजेंसी” करार दिया, जबकि AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे संविधान विरोधी बताया। लोकसभा में हंगामे के बीच कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित कर दी गई। इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया है।

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक: क्या है नया?

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन प्रस्तावित करता है। इसका उद्देश्य उन नेताओं को पद से हटाना है, जो पांच साल या उससे अधिक सजा वाले अपराधों में 30 दिन से अधिक हिरासत में रहते हैं। यदि 31वें दिन तक इस्तीफा नहीं दिया जाता, तो राष्ट्रपति (प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों के लिए), राज्यपाल (मुख्यमंत्रियों और राज्य मंत्रियों के लिए) या उपराज्यपाल (केंद्र शासित प्रदेशों के लिए) उन्हें हटा देंगे।हिरासत से रिहाई के बाद ऐसे नेता फिर से नियुक्त हो सकते हैं।

अमित शाह ने इसे राजनीति में शुचिता और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का कदम बताया। उन्होंने अपने उदाहरण का जिक्र करते हुए कहा कि गुजरात में गृह मंत्री रहते हुए उन पर झूठे आरोप लगे थे, फिर भी उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया और अदालत से बरी होने तक कोई संवैधानिक पद नहीं लिया।

जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेशों पर प्रभाव

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन करता है। यह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर भी 30 दिन की हिरासत के बाद हटाने का नियम लागू करता है। यदि मुख्यमंत्री इस्तीफा नहीं देता, तो उपराज्यपाल कार्रवाई करेंगे। इसी तरह, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025, दिल्ली और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों पर लागू होगा, जो केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 45 में संशोधन करता है।

सरकार का कहना है कि ये विधेयक जनता के भरोसे को बनाए रखने और नेताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए हैं। हाल के मामलों, जैसे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा न देने की घटना, ने इस कानून की जरूरत को उजागर किया।

विपक्ष का तीखा विरोध: ममता ने कहा ‘सुपर इमरजेंसी’

विपक्ष ने इन विधेयकों को लोकतंत्र के लिए खतरा करार दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने का हथियार बनेगा और इसे “सुपर इमरजेंसी” की ओर कदम बताया। कांग्रेस, सपा, आरजेडी और AIMIM ने भी विरोध किया। AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और केंद्रीय एजेंसियों को नेताओं को निशाना बनाने की खुली छूट देता है। उन्होंने इसे “पुलिस राज्य” की ओर कदम बताया।

कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने शाह से सवाल किया कि क्या उन्होंने गुजरात में गृह मंत्री रहते नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था, जिस पर शाह ने जवाब दिया कि उन्होंने इस्तीफा दिया था और बरी होने तक कोई पद नहीं लिया। विपक्षी सांसदों ने “संविधान को मत तोड़ो” के नारे लगाए, बिल की प्रतियां फाड़ीं और कुछ ने कागज के गोले अमित शाह की ओर उछाले।

Lok Sabha Amit Shah

लोकसभा में हंगामा और सांसदों की प्रतिक्रियाएं

लोकसभा में विधेयक पेश होने के दौरान विपक्षी सांसदों ने जोरदार हंगामा किया। असदुद्दीन ओवैसी, मनीष तिवारी, एनके प्रेमचंद्रन, धर्मेंद्र यादव और केसी वेणुगोपाल ने इसका सबसे ज्यादा विरोध किया। ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक गैर-निर्वाचित एजेंसियों को “न्यायाधीश और जल्लाद” की भूमिका देता है, जिससे सरकारों को अस्थिर किया जा सकता है।

मनीष तिवारी ने इसे संविधान विरोधी बताया, जबकि एनके प्रेमचंद्रन ने इसे गैर-भाजपा सरकारों को कमजोर करने की साजिश करार दिया। हंगामे के बीच कुछ सांसदों ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को धक्का देने का भी आरोप लगाया। भारी विरोध के कारण लोकसभा की कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित कर दी गई। विपक्ष ने बिहार में मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) के विरोध से ध्यान भटकाने की कोशिश का भी आरोप लगाया।

Lok Sabha

संयुक्त संसदीय समिति और भविष्य

अमित शाह ने विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा सदस्य शामिल होंगे। जेपीसी को अगले सत्र तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश है। शाह ने लोकसभा नियम 19(A) और 19(B) में छूट की मांग की, क्योंकि समय की कमी के कारण विधेयकों को पहले सर्कुलेट नहीं किया गया।

विपक्ष ने इसे नियमों का उल्लंघन बताया। शाह ने विपक्ष के जल्दबाजी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि जेपीसी में सभी पक्षों की राय ली जाएगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विधेयक भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और राजनीति में नैतिकता बढ़ाने के लिए है। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि यह केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा।

अमित शाह का करारा जवाब

शाह ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए अपने अनुभव का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 2010 में जब वे गुजरात के गृह मंत्री थे, उन पर झूठे आरोप लगे थे। उन्होंने गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफा दे दिया और अदालत से बरी होने तक कोई संवैधानिक पद नहीं लिया। शाह ने कहा, “हम निर्लज्ज नहीं हो सकते कि आरोप लगने पर भी संवैधानिक पद पर बने रहें।” उन्होंने विपक्ष से पूछा कि क्या वे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना चाहते हैं। शाह ने जोर देकर कहा कि यह विधेयक नेताओं के चरित्र को संदेह से परे रखने और जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए है।

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