प्रमुख बिंदु-
Supreme Court: 4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को उनके उस बयान के लिए कड़ी फटकार लगाई, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। यह बयान राहुल गांधी ने 2022 में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिया था, जिसमें उन्होंने यह भी कहा था कि चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सैनिकों को “पीट रहे हैं”। इस बयान के खिलाफ लखनऊ में एक मानहानि का मामला दर्ज किया गया था, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह शामिल थे, ने राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल किया, “आपको कैसे पता कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सबूत है? अगर आप सच्चे भारतीय हैं, तो आप ऐसा नहीं कहेंगे।” कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान संसद में देने चाहिए, न कि सोशल मीडिया पर।
राहुल गांधी का बयान और विवाद
राहुल गांधी ने 16 दिसंबर 2022 को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “लोग भारत जोड़ो यात्रा, अशोक गहलोत, सचिन पायलट वगैरह के बारे में सवाल पूछेंगे, लेकिन कोई भी यह सवाल नहीं पूछेगा कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया, 20 भारतीय सैनिकों को शहीद कर दिया और अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को पीट रहा है।” उन्होंने यह भी दावा किया था कि पूर्व सैन्य अधिकारियों और लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें बताया कि कई गश्ती बिंदु, जो पहले भारतीय क्षेत्र में थे, अब चीनी नियंत्रण में हैं।
इस बयान के बाद, पूर्व बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने लखनऊ की एक अदालत में राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज किया। शिकायत में कहा गया कि राहुल के बयान ने भारतीय सेना का अपमान किया और राष्ट्रीय मनोबल को ठेस पहुंचाई। शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया कि 9 दिसंबर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के यांग्सी क्षेत्र में हुई भारत-चीन झड़प में भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया था, न कि चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को पीटा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और राहुल का बचाव
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के बयान को “गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया और कहा कि एक विपक्षी नेता को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देने से पहले ठोस सबूत जुटाने चाहिए। जस्टिस दत्ता ने कहा, “जब सीमा पर संघर्ष होता है, तो क्या दोनों पक्षों को नुकसान होना असामान्य है? आप संसद में अपनी बात क्यों नहीं रखते?” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि स्वतंत्रता का अधिकार असीमित नहीं है और यह सेना जैसे संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने की अनुमति नहीं देता।
राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि एक विपक्षी नेता का काम सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना है। उन्होंने कहा, “अगर राहुल गांधी प्रेस में छपी खबरों के आधार पर मुद्दे नहीं उठा सकते, तो वे विपक्ष के नेता कैसे हो सकते हैं?” सिंघवी ने यह भी स्वीकार किया कि राहुल के बयान को बेहतर ढंग से शब्दों में पेश किया जा सकता था, लेकिन यह शिकायत केवल उन्हें परेशान करने का प्रयास है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 223 के तहत, शिकायत पर संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनना अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं हुआ।
हालांकि, जस्टिस दत्ता ने कहा कि यह मुद्दा हाई कोर्ट में नहीं उठाया गया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
इससे पहले, मई 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने लखनऊ की एक विशेष अदालत के फरवरी 2025 के समन आदेश और मानहानि मामले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सेना जैसे संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने की अनुमति नहीं देता। कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायतकर्ता, भले ही वह सीधे तौर पर प्रभावित न हो, एक “पीड़ित व्यक्ति” हो सकता है, क्योंकि राहुल के बयान ने राष्ट्रीय मनोबल को ठेस पहुंचाई।
लखनऊ की विशेष अदालत ने राहुल गांधी को 20,000 रुपये के निजी मुचलके और दो जमानतदारों के साथ जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में तीन सप्ताह के लिए अंतरिम रोक लगा दी है और उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, जो अरुणाचल प्रदेश से हैं, ने राहुल गांधी के बयान को “झूठा नैरेटिव” करार दिया और कहा कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश की एक इंच जमीन भी नहीं ली। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने भी राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके बयान राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ हैं।
दूसरी ओर, राहुल गांधी के समर्थकों का कहना है कि उनके बयान सरकार की नीतियों की आलोचना करने और जनता के बीच पारदर्शिता लाने के लिए थे। उन्होंने तर्क दिया कि 2020 के गलवान घाटी संघर्ष और उसके बाद की घटनाओं के बारे में कई स्वतंत्र रिपोर्टों में सीमा पर तनाव और चीनी अतिक्रमण की बात कही गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी के लिए एक अंतरिम राहत तो है, लेकिन उनकी टिप्पणियों पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने इस मामले को और चर्चा में ला दिया है। यह मामला न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन का सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विपक्षी नेताओं को संवेदनशील मुद्दों पर बोलते समय कितनी सावधानी बरतनी चाहिए। अगले कुछ हफ्तों में इस मामले की सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस विवाद को और स्पष्ट करेगा।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।