Tejashwi Yadav: क्या तेजस्वी छोड़ देंगे चुनावी मैदान? बिहार चुनाव बहिष्कार की धमकी क्यों है इतनी गंभीर?

Tejashwi Yadav

पटना, 24 जुलाई 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) में कथित अनियमितताओं का हवाला देते हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की संभावना जताई है। यह बयान कितना गंभीर है और इसके पीछे तेजस्वी की रणनीति क्या हो सकती है? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।

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तेजस्वी का बयान

तेजस्वी यादव ने 24 जुलाई 2025 को पटना में कहा, “जब सब कुछ तय हो गया है कि खुलेआम बेईमानी करनी है, वोटर लिस्ट से लाखों लोगों का नाम काटना है, तो फिर चुनाव क्यों कराना? हम महागठबंधन के सभी दलों से बात करेंगे और चुनाव बहिष्कार पर गंभीरता से विचार कर सकते हैं।” यह बयान विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को लेकर आया, जो 28 जून 2025 से शुरू हुई और 30 सितंबर 2025 तक अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करेगी। तेजस्वी का आरोप है कि इस प्रक्रिया में गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं, जिससे सत्ताधारी एनडीए को फायदा हो।

तेजस्वी ने यह भी कहा, “पहले वोटर सरकार चुनते थे, अब सरकार वोटर चुन रही है।” उनका यह बयान न केवल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि जनता के बीच लोकतंत्र में पारदर्शिता के मुद्दे को भी उभारता है। हालांकि, उनके बयान में गंभीरता की कमी नजर आती है, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से बहिष्कार की घोषणा नहीं की, बल्कि इसे एक विकल्प के रूप में पेश किया। यह सुझाव देता है कि उनका मकसद शायद सियासी दबाव बनाना और अपने समर्थकों को एकजुट करना हो।

असली मुद्दा क्या है?

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्ष का गुस्सा चरम पर है। तेजस्वी का दावा है कि इस प्रक्रिया में 53 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, जिनमें से 90% उनके कोर वोट बैंक, यादव, मुस्लिम और ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उनका कहना है कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में दस्तावेजों के नुकसान के कारण कई लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो रहे हैं और यह एक सुनियोजित साजिश है।

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग और बीजेपी के बीच साठगांठ है, जिसके तहत मतदाता सूची को इस तरह बदला जा रहा है कि एनडीए को फायदा हो। इस मुद्दे ने बिहार विधानसभा से लेकर संसद तक हंगामा मचाया है। 9 जुलाई 2025 को महागठबंधन ने बिहार बंद का आह्वान किया, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हुए। हालांकि, एनडीए नेताओं, जैसे जेडीयू के केसी त्यागी, ने इसे विपक्ष की हार की हताशा बताया और कहा कि तेजस्वी सुप्रीम कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां इस मुद्दे पर 28 जुलाई 2025 को सुनवाई होनी है।

जनता को एकजुट करने की कोशिश

तेजस्वी का यह बयान एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। इसका पहला लक्ष्य है अपने कोर वोट बैंक को एकजुट करना। बिहार में यादव, मुस्लिम और ओबीसी समुदाय RJD का मजबूत आधार हैं और मतदाता सूची में कथित हेरफेर का मुद्दा इन समुदायों में असंतोष पैदा कर सकता है। तेजस्वी ने 35 विपक्षी नेताओं को पत्र लिखकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश की है, जिससे इंडिया गठबंधन के अन्य दलों का समर्थन मिल सके।

दूसरा, यह बयान एनडीए और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने का प्रयास है। तेजस्वी ने कहा, “अगर सब कुछ तय है, तो बीजेपी को एक्सटेंशन दे दो, चुनाव की क्या जरूरत?” यह कटाक्ष सरकार और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने के साथ-साथ जनता में असंतोष जगाने की कोशिश है। हालांकि, बीजेपी और जेडीयू ने इसे तेजस्वी की हार की स्वीकारोक्ति बताया है। बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा ने कहा, “तेजस्वी को जमीनी हकीकत पता चल गई है, इसलिए वे मैदान छोड़ने की बात कर रहे हैं।”

महागठबंधन की एकजुटता सबसे बड़ी चुनौती

तेजस्वी के बयान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि महागठबंधन कितना एकजुट हो पाता है। अभी तक कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने इस बयान पर स्पष्ट समर्थन नहीं दिखाया है। कांग्रेस ने संसद में SIR के खिलाफ प्रदर्शन किया, लेकिन बहिष्कार जैसे कठोर कदम पर कोई बयान नहीं दिया। अगर विपक्ष एकजुट नहीं होता, तो तेजस्वी का यह बयान केवल प्रतीकात्मक रह सकता है।

2024 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन को केवल 9 सीटें मिलीं, जबकि एनडीए ने 31 सीटें जीतीं। सी-वोटर सर्वे के मुताबिक, तेजस्वी की लोकप्रियता 41% से घटकर 35% हो गई है, जबकि नीतीश कुमार की लोकप्रियता 58% है। नीतीश की विकास-केंद्रित छवि और 35% महिला आरक्षण जैसे कदमों ने उनकी स्थिति को मजबूत किया है। ऐसे में तेजस्वी के लिए अपने गठबंधन को एकजुट करना और जनता का भरोसा जीतना बड़ी चुनौती है।

क्या होगा बहिष्कार का असर?

अगर तेजस्वी और महागठबंधन वाकई चुनाव बहिष्कार करते हैं, तो इसका सियासी असर गहरा हो सकता है। बिहार में ग्रामीण और गरीब वर्ग मतदान को अपने अधिकार के रूप में देखता है और बहिष्कार का फैसला इनमें असंतोष पैदा कर सकता है। इतिहास में जम्मू-कश्मीर (1989-90) और मिजोरम (1989) जैसे राज्यों में चुनाव बहिष्कार के उदाहरण हैं, लेकिन पूरे राज्य के स्तर पर ऐसा कदम दुर्लभ है। अगर महागठबंधन बहिष्कार करता है, तो यह एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि विपक्ष की अनुपस्थिति में उनकी जीत आसान हो सकती है। हालांकि, यह लोकतंत्र की निष्पक्षता पर सवाल भी उठाएगा।

दूसरी ओर, तेजस्वी का यह बयान जनता में असंतोष जगाने में सफल हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मतदाता सूची से नाम हटने की शिकायतें हैं। अगर विपक्ष इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाता है, तो एनडीए को बैकफुट पर आना पड़ सकता है। लेकिन इसके लिए तेजस्वी को अपने सहयोगियों का पूरा समर्थन और एक ठोस रणनीति चाहिए।

तेजस्वी यादव का चुनाव बहिष्कार का बयान मुख्य रूप से एक रणनीतिक कदम लगता है, जिसका मकसद जनता को एकजुट करना, एनडीए पर दबाव बनाना और लोकतंत्र में निष्पक्षता का मुद्दा उठाना है। हालांकि, उनके बयान में गंभीरता की कमी और महागठबंधन में एकजुटता का अभाव इसे कमजोर कर सकता है। बिहार की सियासत में तेजस्वी का कद बड़ा है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन और नीतीश कुमार की मजबूत स्थिति उनके लिए चुनौती है। अगर तेजस्वी इस बयान को प्रभावी रणनीति में बदल पाते हैं, तो यह बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर कर सकता है। लेकिन अगर यह केवल शिगूफा साबित हुआ, तो यह उनकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।

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