Supreme Court ने कांवड़ यात्रा में दुकानों पर QR कोड लगाने के आदेश को ठहराया सही, योगी सरकार को मिली राहत!

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों और ढाबों पर QR कोड और वैध लाइसेंस प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया था। यह फैसला 22 जुलाई 2025 को जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ द्वारा सुनाया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस आदेश में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है और यह पारदर्शिता और नियामक आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने के लिए उचित है।

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इस निर्णय ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ी राहत दी है, जिसके खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और अन्य सामाजिक संगठनों ने याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है।

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QR कोड का विवाद और कोर्ट का रुख

उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 जून 2025 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों और दुकानों पर QR कोड प्रदर्शित करना अनिवार्य किया था। इन QR कोड को स्कैन करने पर दुकान मालिकों का नाम और अन्य विवरण उपलब्ध होते हैं। सरकार का तर्क था कि यह कदम यात्रा के दौरान पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, खासकर क्योंकि कई कांवड़ यात्री मांसाहार, प्याज और लहसुन से परहेज करते हैं। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के आदेश का उल्लंघन बताया, जिसमें दुकानदारों को अपनी या अपने कर्मचारियों की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं करने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि सभी दुकानदारों को वैधानिक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करना होगा, जैसा कि खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों में उल्लेखित है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस स्तर पर QR कोड से संबंधित अन्य विवादित मुद्दों पर विचार नहीं कर रहा है, क्योंकि कांवड़ यात्रा अपने अंतिम चरण में है। कोर्ट ने याचिका को समाप्त करते हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को मुख्य याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसकी सुनवाई बाद में होगी।

Supreme Court on Kanwar Yatra

पिछले साल का आदेश

पिछले साल, 26 जुलाई 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को अपने और अपने कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने तब कहा था कि दुकानदारों को केवल यह बताना होगा कि वे क्या भोजन बेच रहे हैं, न कि उनकी पहचान उजागर करनी होगी।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि ऐसे आदेश धार्मिक आधार पर भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार को बढ़ावा दे सकते हैं। इस साल QR कोड के आदेश को भी इसी तरह की आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन कोर्ट ने इसे वैधानिक आवश्यकताओं के अनुरूप माना। यह फैसला भविष्य की कांवड़ यात्राओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल (legal precedent) स्थापित करता है, जो प्रशासनिक नीतियों और नियमों को प्रभावित करेगा।

Uttar Pradesh Yogi

श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए है यह व्यवस्था

हालांकि, यह फैसला मौजूदा कांवड़ यात्रा पर ज्यादा प्रभाव नहीं डालेगा, क्योंकि यह महाशिवरात्रि के साथ 23-24 को समाप्त हो रही है। फिर भी, यह निर्णय भविष्य की नीतियों के लिए एक दिशानिर्देश के रूप में काम करेगा। सामाजिक कार्यकर्ताओं और याचिकाकर्ताओं ने चिंता जताई है कि QR कोड जैसे उपाय अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ा सकते हैं।

दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि यह व्यवस्था श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कुछ लोग इसे पारदर्शिता की दिशा में एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे निजता के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कांवड़ यात्रा के संदर्भ में, बल्कि व्यापक स्तर पर प्रशासनिक पारदर्शिता और निजता के अधिकारों के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा का आधार बनेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस तरह के आदेशों को लागू करने में सरकारें और प्रशासन कितनी सावधानी बरतते हैं।

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