Swachh Survekshan: इंदौर ने फिर रचा इतिहास! लगातार आठवीं बार बना भारत का सबसे स्वच्छ शहर

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर (Indore) ने स्वच्छता सर्वेक्षण (Swachh Survekshan) 2025 में लगातार आठवीं बार देश के सबसे स्वच्छ शहर का खिताब अपने नाम किया है। यह उपलब्धि न केवल इंदौर की जनता और नगर निगम की मेहनत का नतीजा है, बल्कि एक मजबूत और सुनियोजित सफाई व्यवस्था का भी प्रतीक है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत आयोजित इस सर्वेक्षण में इंदौर ने ‘सुपर स्वच्छ लीग सिटीज़’ श्रेणी में शीर्ष स्थान हासिल किया, जहां इसे सूरत जैसे अन्य शहरों से कड़ी टक्कर मिली।

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इंदौर की सफाई व्यवस्था की सबसे बड़ी ताकत है इसका डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण सिस्टम। शहर में प्रतिदिन 1200 टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें 700 टन गीला और 500 टन सूखा कचरा शामिल है। इसे 757 वाहनों के माध्यम से घर-घर से एकत्र किया जाता है और सीधे ट्रेंचिंग ग्राउंड पहुंचाया जाता है। इस व्यवस्था को और प्रभावी बनाने के लिए इंदौर नगर निगम ने 2016 में निजी कंपनी एटूजेड को हटाकर सफाई की कमान पूरी तरह अपने हाथों में ले ली थी। तत्कालीन निगमायुक्त मनीष सिंह के नेतृत्व में शुरू हुआ यह बदलाव आज भी शहर की स्वच्छता का आधार बना हुआ है।

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जनता और सफाईकर्मियों की जुगलबंदी

इंदौर की स्वच्छता में 5,000 से अधिक सफाईकर्मियों और 1,500 अतिरिक्त कर्मचारियों का योगदान अहम है। ये कर्मचारी तीन शिफ्टों में दिन-रात काम करते हैं, जिससे शहर 24 घंटे साफ-सुथरा रहता है। इसके अलावा, 23 स्वीपिंग मशीनें सड़कों की धूल हटाने और धुलाई का काम करती हैं। शहर को 22 जोनों में बांटा गया है, जहां 22 जोनल अधिकारी, 22 चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर (सीएसआई) और 44 असिस्टेंट चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर (एसीएसआई) सफाई व्यवस्था पर कड़ी निगरानी रखते हैं।

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इंदौर की जनता भी स्वच्छता के प्रति जागरूक है। लोग सड़कों पर कचरा नहीं फेंकते, जिससे सफाईकर्मियों का काम आसान हो जाता है। त्योहारों जैसे दीपावली और रंग पंचमी के बाद, जब सड़कों पर कचरा बिखर जाता है, नगर निगम का अमला तुरंत सक्रिय हो जाता है। दीपावली के बाद तड़के 3 बजे से सफाई शुरू हो जाती है और रंग पंचमी की गेर के बाद मात्र एक घंटे में सड़कें चमकने लगती हैं। गोगादेव नवमी पर सफाईकर्मियों को अवकाश दिया जाता है और उस दिन शहरवासी खुद सफाई की जिम्मेदारी उठाते हैं, जो सामुदायिक सहभागिता का शानदार उदाहरण है।

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तकनीक और नवाचार का सहारा

इंदौर की सफाई व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए तकनीक का भी भरपूर उपयोग किया जा रहा है। नगर निगम ने वाहन ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया है, जो देश में अपनी तरह का अनूठा है। सभी कचरा संग्रहण वाहनों को इस सिस्टम से जोड़ा गया है, जिससे उनकी लोकेशन और कार्यक्षमता पर नजर रखी जाती है। इसके अलावा, एक विशेष क्लीनिंग ऐप भी विकसित किया गया है, जिसके जरिए नागरिक ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से कचरा संग्रहण की सुविधा ले सकते हैं।

शहर में कचरे को छह श्रेणियों में बांटा जाता है, जिसमें गीला, सूखा, प्लास्टिक और सेनेटरी कचरा शामिल है। इसे अलग-अलग डिब्बों में एकत्र करने के लिए वाहनों में विशेष कंपार्टमेंट बनाए गए हैं। इंदौर ने हरित कचरा प्रबंधन के लिए भी कदम उठाए हैं। भारत का पहला पीपीपी मॉडल आधारित हरित कचरा प्रसंस्करण संयंत्र इंदौर में स्थापित किया गया है, जो प्रतिदिन 30-70 टन हरित कचरे को लकड़ी के छर्रों में बदलता है। इससे न केवल कचरे का पुनर्चक्रण होता है, बल्कि नगर निगम को प्रति टन 3,000 रुपये की रॉयल्टी भी मिलती है।

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वाराणसी जैसे शहरों में इंदौर मॉडल लागू करने की योजना

इंदौर की स्वच्छता व्यवस्था अब देश के अन्य शहरों के लिए मॉडल बन चुकी है। वाराणसी जैसे शहरों में इंदौर मॉडल को लागू करने की योजना बन रही है। हालांकि, सूरत जैसे शहरों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण इंदौर को अपनी व्यवस्था को और बेहतर करना होगा। सूरत ने कचरे से कमाई के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि इंदौर का सीएनजी प्लांट अभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है।

स्वच्छता सर्वेक्षण 2025 में इंदौर ने 12,500 अंकों में से उच्चतम स्कोर प्राप्त किया, जिसमें कचरा प्रबंधन, नदी-नालों की सफाई और नागरिक फीडबैक जैसे 28 बिंदुओं पर मूल्यांकन किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 17 जुलाई 2025 को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में इंदौर को सम्मानित किया। इस उपलब्धि के लिए मध्य प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने पुरस्कार ग्रहण किया।

अहमदाबाद, भोपाल और लखनऊ का शानदार प्रदर्शन

10 लाख से अधिक जनसंख्या वाली श्रेणी में अहमदाबाद ने 12,079 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया, जबकि भोपाल (12,067 अंक) और लखनऊ (12,001 अंक) क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। यह पहली बार है जब अहमदाबाद ने इस श्रेणी में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, जो गुजरात की स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भोपाल ने पिछले साल की 5वीं रैंक से उछाल भरी, जबकि लखनऊ 44वें स्थान से तीसरे स्थान पर पहुंचा, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

रायपुर और जबलपुर ने भी इस श्रेणी में शीर्ष पांच में जगह बनाई। हालांकि, दिल्ली नगर निगम (7,920 अंक, 31वां स्थान) और मुंबई (7,419 अंक, 33वां स्थान) जैसे बड़े शहरों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। बेंगलुरु (6,842 अंक, 36वां स्थान) और चेन्नई (6,822 अंक, 38वां स्थान) भी शीर्ष 35 में जगह नहीं बना सके।

स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में 4,500 से अधिक शहरों को शामिल किया गया, जो 2016 के 73 शहरों की तुलना में एक बड़ा कदम है। इस बार 14 करोड़ लोगों ने स्वच्छता ऐप, मायगव और सोशल मीडिया के जरिए भाग लिया। सर्वेक्षण में 10 मापदंडों और 54 संकेतकों के आधार पर मूल्यांकन किया गया, जिसमें कचरा प्रबंधन, नदी-नालों की सफाई और नागरिक फीडबैक शामिल थे।

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केंद्र सरकार ने ‘स्वच्छ सिटी पार्टनरशिप’ पहल शुरू की है, जिसमें 78 शीर्ष प्रदर्शन करने वाले शहर प्रत्येक एक कम प्रदर्शन वाले शहर को मेंटर करेंगे। इसके अलावा, 15 अगस्त 2025 से ‘त्वरित डंपसाइट रीमेडिएशन प्रोग्राम’ शुरू होगा, जो पुराने कचरे को हटाने और वैज्ञानिक कचरा प्रसंस्करण को बढ़ावा देगा।

इंदौर का मॉडल अब वैश्विक स्तर पर चर्चा में है और कुवैत जैसे देश इसे अपनाने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, सूरत जैसे शहरों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण इंदौर को अपनी व्यवस्था को और मजबूत करना होगा। सूरत ने कचरे से कमाई में बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि इंदौर का सीएनजी प्लांट अभी पूरी तरह सफल नहीं हुआ है।

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