प्रमुख बिंदु-
Sawan 2025: काशी, जिसे वाराणसी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल और भगवान शिव की प्रिय नगरी है। यह शहर न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों के स्वरूप भी विराजमान हैं। मान्यता है कि काशी में इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से भक्तों को देश के अन्य स्थानों पर स्थित ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। खासकर सावन मास में, जब भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व होता है, काशी में लाखों भक्त इन मंदिरों में दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
भगवान शिव की प्रिय ‘काशी’
काशी को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। स्कंद पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर इस नगरी को बसाया और इसे मोक्षदायिनी नगरी का दर्जा दिया। काशी को सप्तपुरियों में शामिल किया गया है और यहाँ गंगा स्नान के साथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा नदी के पश्चिमी तट पर बसे काशी विश्वनाथ मंदिर को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में पूजा जाता है, जो इस आध्यात्मिक नगरी का ह्रदय है।

काशी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ ही अन्य 11 ज्योतिर्लिंगों के स्वरूपों की उपस्थिति इसे नगरी को अद्वितीय बनाती है। ऐसा माना जाता है कि स्कन्द पुराण के काशी खंड में उल्लेखित और काशी में स्तिथ इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से भक्त एक ही स्थान पर देश के सभी ज्योतिर्लिंगों का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। काशी की यह विशेषता इसे विश्वभर के शिव भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है, विशेष रूप से सावन मास में, जब यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग
ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के प्रकाशमय स्वरूप हैं, जो सृष्टि के आदि-अनादि प्रतीक माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक विशाल, अंतहीन प्रकाश स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट किया और दोनों से इसके आदि और अंत की खोज करने को कहा। न तो ब्रह्मा और न ही विष्णु इस प्रकाश का अंत खोज पाए, जिससे शिव की सर्वोच्चता सिद्ध हुई। ये बारह ज्योतिर्लिंग (द्वादश ज्योतिर्लिंग) भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थापित हैं, लेकिन काशी में इन सभी के स्वरूप मौजूद हैं।
काशी में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग
1. श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर
श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर, जो मानमंदिर घाट के निकट गंगा के किनारे बसा है, काशी में गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। काशी खंड में इसका उल्लेख मिलता है और यह मंदिर प्राचीन काल से शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। मान्यता है कि इस मंदिर भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्रतीक है। यहाँ स्थापित शिवलिंग को जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि भक्तों को सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में स्थिरता का आशीर्वाद भी देता है।
स्थान: मानमंदिर घाट, वाराणसी

2. श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर
श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर, सिगरा क्षेत्र के एक टीले पर स्थित, आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थापित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। काशी खंड में इस मंदिर का उल्लेख है और इसे प्राचीन काल से पूजा जाता रहा है। यह मंदिर विशेष रूप से दक्षिण भारतीय भक्तों के बीच लोकप्रिय है, जो यहाँ शिव और पार्वती की संयुक्त शक्ति की आराधना करते हैं। मान्यता है कि यहाँ जलाभिषेक और दर्शन से भक्तों को सुख-समृद्धि, पारिवारिक सौहार्द और मानसिक शांति प्राप्त होती है। मंदिर का शांत वातावरण और इसकी प्राचीन वास्तुकला इसे आध्यात्मिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
स्थान: शिवपुरा, सिगरा क्षेत्र, वाराणसी


3. श्री महाकालेश्वर महादेव मंदिर
श्री महाकालेश्वर महादेव मंदिर, दारानगर के मध्येश्वर मोहल्ले में स्थित, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। धार्मिक ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख है, और यह काशी के आध्यात्मिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है, और जीवन में शांति, स्थिरता, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस मंदिर का विशेष महत्व उन भक्तों के लिए है जो जीवन में नकारात्मक शक्तियों और भय से मुक्ति चाहते हैं।
स्थान: मृत्युंजय महादेव मंदिर, मध्येश्वर मोहल्ला, दारानगर, वाराणसी

4. श्री केदारेश्वर महादेव / श्री गौरी केदारेश्वर मंदिर
श्री गौरी केदारेश्वर मंदिर, गंगा तट पर केदार घाट पर स्थित, उत्तराखंड के केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना की कथा मकर संक्रांति से जुड़ी है, जब यह खिचड़ी के साथ प्रकट हुआ था। यह मंदिर दक्षिण भारतीय भक्तों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है, जो यहाँ मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति की कामना के साथ आते हैं। मान्यता है कि यहाँ दर्शन और गंगा स्नान से भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर का गंगा से सान्निध्य इसे और भी पवित्र बनाता है, और यहाँ का शांत वातावरण भक्तों को ध्यान और भक्ति में लीन होने का अवसर प्रदान करता है।
स्थान: केदार घाट, वाराणसी


5. श्री भीमशंकर महादेव मंदिर / काशी करवट मंदिर
श्री भीमशंकर महादेव मंदिर, जिसे काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है, मणिकर्णिका घाट के निकट पाताललोक में लगभग 60 फीट नीचे स्थित है। यह मंदिर महाराष्ट्र के भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ भक्त अपने प्राणों का दान मोक्ष प्राप्ति के लिए करते थे। मान्यता है कि यहाँ जलाभिषेक करने से भक्तों को मनचाहा फल मिलता है, और उनकी आत्मा को शुद्धि प्राप्त होती है। यह मंदिर उन भक्तों के लिए विशेष है जो गहन आध्यात्मिक अनुभव और मोक्ष की खोज में हैं। सावन मास में यहाँ विशेष पूजा का आयोजन होता है, जो भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने का अवसर देता है।
स्थान: मणिकर्णिका घाट के पास, चौक, वाराणसी


6. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख, काशी का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। इसका वर्तमान स्वरूप 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था, हालांकि मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसे कई बार तोड़ा गया, विशेष रूप से 1194 में मुहम्मद गौरी और 1669 में औरंगजेब द्वारा, लेकिन इसकी पवित्रता कभी कम नहीं हुई। मान्यता है कि यहाँ दर्शन और गंगा स्नान से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और यह मंदिर शिव और पार्वती का आदि स्थान माना जाता है। मंदिर के दो स्वर्ण गुंबद, जो सिख महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाए, इसकी भव्यता को और बढ़ाते हैं।
स्थान: श्री काशी विश्वनाथ धाम, वाराणसी


7. श्री त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर
श्री त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर, हौज कटोरा में स्थित, महाराष्ट्र के त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, और यह प्राचीन काल से शिव भक्तों के लिए पूजनीय रहा है। मान्यता है कि यहाँ जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं, और उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह त्रयम्बक (तीन नेत्रों वाले शिव) के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों को ज्ञान, शक्ति, और समृद्धि प्रदान करता है। मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को ध्यान और भक्ति में लीन होने का अवसर देता है।
स्थान: हौज कटोरा, बांस फाटक, वाराणसी


8. श्री बैजनाथ महादेव मंदिर
श्री बैजनाथ महादेव मंदिर, कमच्छा भेलूपुर क्षेत्र में स्थित, झारखंड के बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। काशी खंड में इस मंदिर का उल्लेख है, और यह प्राचीन काल से पूजित है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को सभी रोगों से मुक्ति मिलती है, और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह मंदिर विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है जो स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं। मंदिर का वातावरण शांत और आध्यात्मिक है, जो भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायता करता है।
स्थान: कमच्छा भेलूपुर, वाराणसी


9. श्री नागेश्वर महादेव मंदिर
श्री नागेश्वर महादेव मंदिर, महामृत्युंजय मन्दिर परिसर मे (वृद्ध काल के घेरे में) स्थित, गुजरात के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था, और यह शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और उन्हें सकारात्मक ऊर्जा व शांति की प्राप्ति होती है। मंदिर में भगवान शिव को नागों के स्वामी के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाता है। मंदिर का गंगा से निकटता और शांत वातावरण इसे आध्यात्मिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
स्थान: महामृत्युंजय मन्दिर परिसर, मध्येश्वर मोहल्ला, दारानगर, वाराणसी

10. श्री रामेश्वर महादेव मंदिर
श्री रामेश्वर महादेव मंदिर, रामकुंड के निकट मानमंदिर घाट पर स्थित, तमिलनाडु के रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर का संबंध भगवान राम से है, जिन्होंने लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। मान्यता है कि यहाँ जलाभिषेक करने से भक्तों के सभी पापों और दोषों से मुक्ति मिलती है, और उनकी आत्मा शुद्ध होती है। मंदिर का गंगा तट से सान्निध्य इसे और भी पवित्र बनाता है, और यहाँ गंगा स्नान के बाद दर्शन का विशेष महत्व है।
स्थान: रामकुंड, मानमंदिर घाट, वाराणसी

11. श्री घृष्णेश्वर महादेव मंदिर
श्री घृष्णेश्वर महादेव मंदिर, कामच्छा में कामाख्या देवी मंदिर परिसर में स्थित, महाराष्ट्र के घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, और यह प्राचीन काल से पूजित है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को सभी तीर्थों का पुण्य प्राप्त होता है, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण होती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को ध्यान और भक्ति में लीन होने का अवसर देता है।
स्थान: कामाख्या देवी मंदिर परिसर, कामच्छा, वाराणसी


12. श्री ओमकारेश्वर महादेव मंदिर
श्री ओमकारेश्वर महादेव मंदिर, छित्तनपुर में ऊॅचे टीले पर स्थित, मध्य प्रदेश के ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था, और यह काशी के आध्यात्मिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को सभी तीर्थों का फल प्राप्त होता है, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण होती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को ओमकार के रूप में पूजा जाता है, जो सृष्टि के प्रारंभ और अंत का प्रतीक है।
स्थान: छित्तनपुर, वाराणसी


सावन मास में काशी का महत्व
सावन मास भगवान शिव की आराधना का सबसे पवित्र और शुभ समय माना जाता है, और काशी में इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह शहर शिव की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में भगवान शिव पृथ्वी पर निवास करते हैं और अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं। इस दौरान काशी के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में लाखों भक्त दर्शन और जलाभिषेक के लिए उमड़ते हैं, विशेष रूप से काशी विश्वनाथ धाम में, जहाँ शिव भक्ति का अनुपम दृश्य देखने को मिलता है।
सावन में काशी विश्वनाथ धाम में भक्त बेलपत्र, दूध, और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, और कांवड़ यात्रा के माध्यम से गंगाजल लाकर शिव को अर्पित करते हैं, जो उनकी भक्ति को और गहरा करता है। काशी में सावन के दौरान मंदिरों का वातावरण शिव मंत्रों, घंटियों की ध्वनि, और भक्ति भजनों से गुंजायमान रहता है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और शिव की कृपा का अनुभव कराता है। यह समय न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी काशी को जीवंत बनाता है।

काशी का यह श्लोक
गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रियमनङ्गमदापहारं वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥१॥
यह श्लोक श्री विश्वनाथ अष्टक का पहला श्लोक है, जो भगवान काशी विश्वनाथ की महिमा का वर्णन करता है। श्लोक का अर्थ है: “गंगा की लहरों से सुशोभित जटाओं वाले, जिनका बायां भाग माता गौरी (पार्वती) से निरंतर अलंकृत है, जो भगवान नारायण (विष्णु) के प्रिय मित्र हैं, जिन्होंने कामदेव के अभिमान का नाश किया, और जो वाराणसी (काशी) के स्वामी हैं, उन विश्वनाथ को भजें (उनकी भक्ति करें)।”
इस श्लोक में भगवान शिव की दिव्य छवि का चित्रण किया गया है, जिसमें उनकी गंगा-जटाओं, माता पार्वती के साथ उनकी अर्धनारीश्वर रूप, भगवान विष्णु के साथ उनकी मित्रता, और कामदेव के अभिमान को नष्ट करने की शक्ति का वर्णन है। यह श्लोक काशी विश्वनाथ को काशी का स्वामी बताते हुए भक्तों को उनकी भक्ति में लीन होने का आह्वान करता है। इसका आध्यात्मिक महत्व यह है कि यह भक्तों को शिव की सर्वोच्चता और काशी के साथ उनके अटूट संबंध को समझने में मदद करता है, साथ ही यह भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

श्री काशी विश्वनाथ धाम और इसके साथ मौजूद बारह ज्योतिर्लिंगों के स्वरूप काशी को सनातन धर्म का एक अनमोल रत्न बनाते हैं। इन मंदिरों का इतिहास, मान्यताएं और आध्यात्मिक महत्व भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। काशी न केवल भगवान शिव की प्रिय नगरी है, बल्कि यह विश्व भर के शिव भक्तों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है। इस सावन मास में इन मंदिरों के दर्शन अवश्य करें।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।