प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली, 07 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश के झाँसी रेलवे स्टेशन 5 जुलाई 2025 को एक ऐसी घटना घटी, जिसने भारतीय सेना (Indian Army) के मेजर रोहित बच्चवाला (Major Rohit Bachwala) को न केवल एक सैनिक, बल्कि एक सच्चे नायक के रूप में स्थापित किया। छुट्टी पर अपने गृहनगर हैदराबाद जाते समय मेजर रोहित ने एक गर्भवती महिला की आपातकालीन स्थिति में मदद की, जिसने स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर एक बच्ची को जन्म दिया। उनकी त्वरित सोच, चिकित्सकीय कौशल और मानवता ने न केवल माँ और नवजात की जान बचाई, बल्कि पूरे देश का दिल भी जीत लिया। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने उनकी इस असाधारण सेवा के लिए उनकी प्रशंसा की।
फुटओवर ब्रिज बना डिलीवरी रूम
झाँसी के वीरांगना लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन पर उस दिन मेजर रोहित अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे, जब उनकी नज़र लिफ्ट के पास एक महिला पर पड़ी, जो व्हीलचेयर से गिर गई थी और प्रसव पीड़ा से जूझ रही थी। यह महिला, अश्वरफलक कुरैशी, अपने पति और बच्चे के साथ पनवेल-गोरखपुर एक्सप्रेस से बाराबंकी की यात्रा कर रही थी। अचानक प्रसव पीड़ा शुरू होने के कारण उनके पति ने रेल मदद ऐप के ज़रिए आपातकालीन सहायता माँगी, जिसके बाद परिवार को झाँसी स्टेशन पर उतारा गया।

मेजर रोहित ने तुरंत स्थिति की गंभीरता को समझा और बिना देर किए कार्रवाई शुरू की। रेलवे स्टाफ की चार कर्मचारि लिली कुशवाहा, राखी कुशवाहा, ज्योतिका साहू और कविता अग्रवाल ने उनका साथ दिया। उन्होंने एक धोती का उपयोग कर अस्थायी पर्दा बनाया ताकि महिला को निजता मिल सके। रेलवे कर्मचारियों ने दस्ताने उपलब्ध कराए ताकि स्वच्छता बनी रहे। मेजर रोहित के पास केवल एक पॉकेट नाइफ, कुछ हेयर क्लिप्स और एक तौलिया था। इन सीमित संसाधनों के साथ, उन्होंने फुटओवर ब्रिज पर ही डिलीवरी शुरू की।

स्थिति आसान नहीं थी। नवजात बच्ची जन्म के समय साँस नहीं ले रही थी, लेकिन मेजर रोहित ने अपने प्रशिक्षण और शांतचित्तता से उसे पुनर्जनन (रेसुसिटेशन) किया। इसके बाद, माँ को प्लेसेंटा डिलीवरी से संबंधित जटिलताएँ हुईं, जिन्हें उन्होंने सीमित संसाधनों के साथ प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया। इस दौरान स्टेशन का शोर, भीड़ और गहमागहमी भी उनके संकल्प को डिगा नहीं सकी।
माँ और बच्ची दोनों सुरक्षित
मेजर रोहित की त्वरित कार्रवाई के कारण माँ और नवजात बच्ची दोनों को स्थिर किया गया। इसके बाद उन्हें सरकारी चिकित्सा सुविधा में स्थानांतरित किया गया, जहाँ उनकी स्थिति स्थिर बताई गई। रेलवे की मुख्य टिकट परीक्षक लिली कुशवाहा ने बाद में परिवार से मुलाकात की और नवजात के लिए भोजन व कपड़े उपलब्ध कराए, जो इस मानवीय प्रयास का एक दिल छू लेने वाला पहलू था। माँ और बच्चे के परिवार ने मेजर रोहित और रेलवे कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त की।

सेना और समाज का गौरव
7 जुलाई 2025 को भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने मेजर रोहित बच्चवाला की असाधारण पेशेवर कुशलता और निस्वार्थ समर्पण की सराहना की। सेना ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “मेजर रोहित की त्वरित और निर्णायक कार्रवाई, गैर-चिकित्सकीय और संसाधन-सीमित परिस्थितियों में, उनकी चिकित्सकीय दक्षता और सेना के मूल्यों के प्रति समर्पण का प्रमाण है।”
सर्ज वाइस एडमिरल आरती सरीन, डीजीएएफएमएस, ने भी मेजर रोहित के कार्य की प्रशंसा की और इसे सैन्य चिकित्सा सेवा की भावना का प्रतीक बताया। सोशल मीडिया पर लोगों ने मेजर रोहित को “ज़रूरत की घड़ी में फरिश्ता” और “असली हीरो” कहकर उनकी तारीफ की। एक यूज़र ने लिखा, “सैनिक हमेशा ड्यूटी पर होता है। जय हिंद!”
31 वर्षीय मेजर रोहित, जो झाँसी मिलिट्री अस्पताल में तैनात हैं, एक पूर्व वायुसेना अधिकारी के पुत्र हैं। उनकी यह कार्रवाई न केवल उनकी चिकित्सकीय विशेषज्ञता, बल्कि मानवता और सेवा की भावना को दर्शाती है। यह घटना भारतीय सेना के मूल्यों और समाज के प्रति उनके योगदान का एक शानदार उदाहरण है।

झांसी रेलवे स्टेशन का फुटओवर ब्रिज अब केवल यात्रियों के आने-जाने का रास्ता नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह बन गया है, जहां एक नन्हा जीवन दुनिया में आया। मेजर रोहित ने न केवल एक मां और बच्चे की जान बचाई, बल्कि लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा भी स्थापित की। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि असली हीरो वही हैं, जो बिना किसी अपेक्षा के, दूसरों की मदद के लिए आगे आते हैं। यह घटना हमें याद दिलाती है कि भारतीय सैनिक कभी भी छुट्टी पर नहीं होते, वो हर परिस्थिति में दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।