Raj Thackeray Uddhav Thackeray Rally: 20 साल बाद एक हुए ठाकरे बंधु, राज ठाकरे बोले- फडणवीस ने वो किया जो बालासाहेब भी नहीं कर पाए

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मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में 5 जुलाई 2025 का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब दो दशकों के बाद उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने मुंबई के वर्ली स्थित एनएससीआई डोम में ‘मराठी विजय रैली’ में एक मंच साझा किया। यह रैली महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों में त्रिभाषा नीति के तहत हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को रद्द करने की जीत के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी। इस आयोजन ने न केवल मराठी अस्मिता की ताकत दिखाई, बल्कि ठाकरे बंधुओं की एकता ने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में नए सियासी समीकरणों की संभावनाओं को भी हवा दी।

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Raj Thackeray Uddhav Thackeray

वर्ली डोम में आयोजित रैली में उद्धव ठाकरे ने कहा, “हमारी एकता ने दिल्ली और मुंबई की सत्ता को दिखा दिया कि मराठी मानुष की ताकत क्या है। हम एक साथ आए हैं और हमेशा साथ रहेंगे।” वहीं, राज ठाकरे ने तंज कसते हुए कहा, “जो काम बालासाहेब ठाकरे नहीं कर पाए, वह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया। उन्होंने हमें एक मंच पर ला दिया।” रैली में 30,000 से अधिक लोग शामिल हुए और मंच पर केवल दो कुर्सियां थीं, जो दोनों भाइयों की एकता का प्रतीक थीं।

कैसे एक हुए ठाकरे बंधू

महाराष्ट्र सरकार ने 17 अप्रैल 2025 को पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने का आदेश जारी किया था। इस फैसले का शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने कड़ा विरोध किया। दोनों दलों ने इसे मराठी अस्मिता पर हमला करार दिया। उद्धव और राज ठाकरे के नेतृत्व में हुए राज्यव्यापी प्रदर्शनों और जनता के दबाव के बाद, 29 जून को सरकार ने यह आदेश वापस ले लिया, जिसे शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) द्वारा मराठी मानुष की जीत के रूप में देखा गया।

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सियासी रणनीति या सामाजिक आंदोलन?

रैली को शिवसेना (यूबीटी) और मनसे ने गैर-राजनीतिक बताया, जिसमें किसी भी पार्टी के झंडे या बैनर नहीं थे। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह एकता आगामी मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और अन्य स्थानीय निकाय चुनावों की रणनीति हो सकती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) को 20 सीटें मिलीं, जबकि मनसे खाली हाथ रही। ऐसे में यह एकता दोनों दलों के लिए राजनीतिक पुनर्जनन का मौका हो सकती है।

हालांकि, एनसीपी (एसपी) के शरद पवार और कांग्रेस ने इस रैली से दूरी बनाई। पवार ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों का हवाला दिया, जबकि कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सपकाल की अनुपस्थिति ने गठबंधन की संभावनाओं पर सवाल उठाए। बीजेपी नेताओं, जैसे नारायण राणे और रामदास कदम, ने इसे बीएमसी चुनावों के लिए प्रासंगिकता बनाए रखने की चाल बताया।

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ठाकरे बंधुओं के टकराव की कहानी

उद्धव और राज ठाकरे का रिश्ता कभी बेहद करीबी था, लेकिन 2005 में वैचारिक मतभेदों के कारण रास्ते अलग हो गए। 1989 में राज ठाकरे ने शिवसेना की युवा शाखा को मजबूत किया और पूरे महाराष्ट्र में जमीनी नेटवर्क बनाया। लेकिन 2003 में बालासाहेब ठाकरे द्वारा उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद राज की भूमिका सीमित होने लगी। 2005 में राज ने शिवसेना छोड़ दी और 2006 में मनसे की स्थापना की, जिसे उन्होंने ‘मराठी मानुस’ की पार्टी बताया।

दोनों भाइयों के बीच यह पहली बार नहीं था जब वे एक मंच पर आए। 2005 में मालवण उपचुनाव में दोनों ने साथ प्रचार किया था, लेकिन इसके बाद रिश्तों में कड़वाहट बढ़ गई। अब 20 साल बाद, मराठी अस्मिता के मुद्दे ने उन्हें फिर से एकजुट किया। रैली में उद्धव ने कहा, “हमारा एक साथ मंच साझा करना हमारे भाषणों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह मराठी एकता की ताकत है।”

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क्या राजनितिक तौर पर भी जुड़ेंगे ठाकरे बंधू

रैली में दोनों नेताओं ने स्पष्ट किया कि उनकी एकता मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए है। राज ठाकरे ने कहा, “मराठा साम्राज्य ने कभी किसी पर मराठी थोपी नहीं, फिर हम पर हिंदी क्यों थोपी जाए?” उद्धव ने जोर देकर कहा कि यह एकता स्थायी होगी और कोई भी महाराष्ट्र को तोड़ने की कोशिश नहीं कर सकेगा।

हालांकि, दोनों दलों के बीच वैचारिक मतभेद और गठबंधन की संभावनाएं चुनौतियां पेश कर सकती हैं। मनसे की आक्रामक हिंदुत्व और मराठी मानुस की राजनीति और शिवसेना (यूबीटी) की महाविकास अघाड़ी के साथ गठबंधन की नीति में सामंजस्य बिठाना आसान नहीं होगा। फिर भी, यह रैली महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जो मराठी अस्मिता को केंद्र में रखकर सियासी समीकरण बदल सकती है।

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