प्रमुख बिंदु-
14वें दलाई लामा (Dalai Lama), तेनजिन ग्यात्सो, 6 जुलाई 2025 को अपनी 90वीं जयंती मना रहे हैं। यह अवसर न केवल उनके दीर्घायु जीवन का उत्सव है, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य और उनके उत्तराधिकारी के चयन को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ भी है। 2011 में, दलाई लामा ने कहा था कि जब वह 90 वर्ष के होंगे, तब वह यह मूल्यांकन करेंगे कि क्या दलाई लामा की संस्था को जारी रखना चाहिए या नहीं।
उनके इस बयान ने उनकी उत्तराधिकारी प्रक्रिया को लेकर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है, खासकर इसलिए क्योंकि चीन तिब्बती बौद्ध धर्म के इस महत्वपूर्ण संस्थान पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हाल ही में, 5 जुलाई 2025 को, दलाई लामा ने अपनी उत्तराधिकारी की घोषणा को लेकर अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि वह अभी 30-40 वर्ष और जीवित रहकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं। इस लेख में, हम दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे, उनकी हाल की घोषणा, चीन और भारत की भूमिका और तिब्बती परंपराओं के संदर्भ में नवीनतम घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

कौन होते हैं दलाई लामा
दलाई लामा (Dalai Lama), जिसका अर्थ है “ज्ञान का सागर”, तिब्बती बौद्ध धर्म में करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है। यह परंपरा 1391 में पहले दलाई लामा, गेदुन द्रुपा के जन्म के साथ शुरू हुई थी। पांचवें दलाई लामा, लोबसांग ग्यात्सो (1617-1682) से, दलाई लामा न केवल तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता बने, बल्कि उनके राजनीतिक नेता भी बन गए।


वर्तमान 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र ताक्त्सेर (अब चीन के किंघाई प्रांत) में हुआ था। दो वर्ष की आयु में उन्हें 13वें दलाई लामा, थुब्तेन ग्यात्सो के पुनर्जनन के रूप में मान्यता दी गई थी। 1940 में, उन्हें ल्हासा के पोताला पैलेस में औपचारिक रूप से दलाई लामा के रूप में स्थापित किया गया।
1950 में, जब कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और 1951 में इसे औपचारिक रूप से अपने नियंत्रण में ले लिया, तब तिब्बती स्वायत्तता को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1959 में, ल्हासा में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद, दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ भारत आगए।

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के मक्लोडगंज में बसने की अनुमति दी, जहां तिब्बती सरकार-निर्वासित (सेंट्रल तिब्बती एडमिनिस्ट्रेशन, CTA) की स्थापना हुई। 2011 में, दलाई लामा ने अपनी राजनीतिक शक्तियों को निर्वाचित तिब्बती नेता को हस्तांतरित कर दिया, जिससे 368 वर्ष पुरानी परंपरा समाप्त हो गई, जिसमें दलाई लामा आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों नेतृत्व करते थे।

कैसे चुना जाता है दलाई लामा का उत्तराधिकारी
तिब्बती बौद्ध धर्म में, दलाई लामा (Dalai Lama) की संस्था “तुल्कु” अवधारणा पर आधारित है, जिसमें आध्यात्मिक गुरु अपने निधन के बाद पुनर्जनन लेते हैं ताकि उनकी शिक्षाएं संरक्षित और आगे बढ़ाई जा सकें। परंपरागत रूप से, दलाई लामा का पुनर्जनन वरिष्ठ भिक्षुओं द्वारा आध्यात्मिक संकेतों और दृश्यों के आधार पर खोजा जाता है। इस प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं, क्योंकि नया दलाई लामा आमतौर पर एक बच्चे के रूप में पहचाना जाता है, जिसे बाद में प्रशिक्षित किया जाता है।

दलाई लामा (Dalai Lama) ने 1969 से ही यह संकेत देना शुरू कर दिया था कि उनकी पुनर्जनन प्रक्रिया को लेकर निर्णय तिब्बती लोगों, मंगोलियाई लोगों और हिमालयी क्षेत्र के लोगों को करना चाहिए। 24 सितंबर 2011 के अपने बयान में, उन्होंने स्पष्ट किया कि जब वह 90 वर्ष के होंगे, तब वह तिब्बती बौद्ध परंपराओं के उच्च लामाओं, तिब्बती जनता और अन्य संबंधित लोगों के साथ परामर्श करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि दलाई लामा (Dalai Lama) की संस्था को जारी रखने का निर्णय लिया जाता है, तो उनके गादेन फोदरांग ट्रस्ट को उनके उत्तराधिकारी की खोज और मान्यता की प्रक्रिया की जिम्मेदारी दी जाएगी। इस ट्रस्ट की स्थापना दलाई लामा ने 2015 में की थी और यह धर्मशाला में पंजीकृत एक गैर-लाभकारी संगठन है।

30-40 वर्ष और जीवित रहने की उम्मीद… – दलाई लामा
5 जुलाई 2025 को, अपनी 90वीं जयंती से एक दिन पहले, दलाई लामा (Dalai Lama) ने धर्मशाला के त्सुगलाखांग मंदिर में आयोजित दीर्घायु प्रार्थना समारोह में अपने उत्तराधिकारी को लेकर चल रही अफवाहों को खारिज कर दिया। पारंपरिक लाल भिक्षु वस्त्र और पीले रंग के शॉल में सजे, स्वस्थ दिख रहे दलाई लामा ने कहा कि उनके पास अवलोकितेश्वर के आशीर्वाद के “स्पष्ट संकेत और संदेश” हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों को आश्वासन दिया कि वह अभी 30-40 वर्ष और जीवित रहकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, “कई भविष्यवाणियों को देखते हुए, मुझे लगता है कि मेरे पास अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद है। मैंने अब तक अपना सर्वश्रेष्ठ किया है। मैं अभी भी 30-40 वर्ष और जीवित रहने की उम्मीद करता हूं। आपकी प्रार्थनाओं का अब तक फल मिला है।”
दलाई लामा (Dalai Lama) ने यह भी कहा कि भले ही तिब्बत को खो दिया गया हो और वह भारत में निर्वासन में रह रहे हों, फिर भी उन्होंने धर्मशाला में रहने वाले लोगों सहित कई प्राणियों को लाभ पहुंचाया है। उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि वह जितना संभव हो सके प्राणियों की सेवा और लाभ करना जारी रखेंगे। इस बयान ने तिब्बती समुदाय में नई आशा जगाई है, क्योंकि यह संकेत देता है कि दलाई लामा अभी लंबे समय तक उनके मार्गदर्शन में रहेंगे।

इससे पहले, दलाई लामा (Dalai Lama) ने 2 जुलाई 2025 को एक वीडियो संदेश में कहा था कि दलाई लामा की 600 वर्ष पुरानी संस्था उनके निधन के बाद भी जारी रहेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान का एकमात्र अधिकार गादेन फोदरांग ट्रस्ट के पास होगा और किसी अन्य, विशेष रूप से चीन, को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
5 मिनट 57 सेकंड के अपने तिब्बती भाषा के संदेश में, उन्होंने कहा, “मैं पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी और मैं दोहराता हूं कि गादेन फोदरांग ट्रस्ट के पास भविष्य के पुनर्जनन को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार है। इस मामले में किसी और को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।” यह बयान चीन के लिए एक सीधी चुनौती था, जो लंबे समय से दावा करता रहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन उसकी मंजूरी के बिना नहीं हो सकता।
चयन प्रक्रिया में चीन का हस्तछेप
चीन ने दलाई लामा (Dalai Lama) के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन “गोल्डन अर्न” प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना चाहिए, जिसे 18वीं सदी के किंग राजवंश ने शुरू किया था। इस प्रक्रिया में, उम्मीदवारों के नाम एक सुनहरे कलश से निकाले जाते हैं और अंतिम मंजूरी चीनी केंद्रीय सरकार द्वारा दी जाती है। चीन का दावा है कि यह परंपरा 700 वर्षों से चली आ रही है और 14वें दलाई लामा को भी इसी प्रक्रिया के तहत मान्यता दी गई थी, हालांकि तब किंग सरकार ने लॉटरी से छूट दी थी।

चीन दलाई लामा (Dalai Lama) को “अलगाववादी” और “देशद्रोही” मानता है और उसे तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं मानता। 2007 में, चीन ने एक विवादास्पद कानून लागू किया, जिसमें कहा गया कि तिब्बती लामाओं के पुनर्जनन को सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी। 2015 में, तिब्बत की पीपुल्स कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पद्मा चोलिंग ने दलाई लामा के इस दावे का विरोध किया कि कोई भी सरकार उनके उत्तराधिकारी का चयन नहीं कर सकती।
चीन की रणनीति का एक उदाहरण 1995 में देखा गया, जब दलाई लामा (Dalai Lama) ने छह वर्षीय गेदुन चोएकी न्यिमा को पंचेन लामा (तिब्बती बौद्ध धर्म में दूसरा सबसे बड़ा आध्यात्मिक पद) के रूप में मान्यता दी। इसके बाद, चीन ने इस बच्चे को हिरासत में ले लिया और वह तब से लापता है। चीन ने अपने स्वयं के उम्मीदवार, ग्यांसैन नोर्बु को पंचेन लामा के रूप में नियुक्त किया, जो अब चीन के भीतर तिब्बती बौद्ध धर्म के एक वरिष्ठ नेता के रूप में कार्य करता है। तिब्बती समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में देखा।

दलाई लामा के समर्थन में दृण खड़ा भारत
भारत ने दलाई लामा (Dalai Lama) के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर उनका समर्थन किया है। 3 जुलाई 2025 को, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी केवल स्थापित परंपराओं और उनकी इच्छा के अनुसार चुना जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में किसी और को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। रिजिजू, जो स्वयं बौद्ध हैं, ने कहा कि दलाई लामा की जयंती समारोह एक धार्मिक आयोजन है, न कि राजनीतिक। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने भी कहा कि दलाई लामा का उत्तराधिकार तिब्बती बौद्ध समुदाय का आंतरिक मामला है और इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।

भारत का यह रुख न केवल तिब्बती समुदाय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि भारत-चीन संबंधों में एक संवेदनशील मुद्दे को भी उजागर करता है। 1959 से, जब दलाई लामा भारत में निर्वासित हुए, उनकी उपस्थिति भारत और चीन के बीच तनाव का एक कारण रही है। 2017 में, दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा के बाद भारत और चीन के बीच डोकलाम में 73 दिनों तक सैन्य गतिरोध रहा था। दलाई लामा (Dalai Lama) के उत्तराधिकारी का मुद्दा भविष्य में भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बन सकता है।
तिब्बती लोग चीन द्वारा नियुक्त उत्तराधिकारी को स्वीकार नहीं करेंगे
तिब्बती समुदाय, विशेष रूप से निर्वासित समुदाय, दलाई लामा (Dalai Lama) के उत्तराधिकारी के चयन में चीन के हस्तक्षेप को लेकर चिंतित है। कई लोगों को डर है कि चीन एक समानांतर दलाई लामा की नियुक्ति कर सकता है, जिससे तिब्बती बौद्ध धर्म में विभाजन हो सकता है। सेंट्रल तिब्बती एडमिनिस्ट्रेशन के अध्यक्ष पेनपा त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बती लोग चीन द्वारा नियुक्त किसी भी उत्तराधिकारी को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने दलाई लामा की “मध्यम मार्ग नीति” का समर्थन किया, जो तिब्बत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय वास्तविक स्वायत्तता की मांग करती है।
#WATCH | Dharamshala, Himachal Pradesh: Penpa Tsering Sikyong, President of the Central Tibetan Administration, says "…During the 15th Tibetan religious conference held in Dharamsala… a consensus was reached on the following important points- The core process of recognizing… pic.twitter.com/Ch6eFRscAb
— ANI (@ANI) July 2, 2025
दलाई लामा (Dalai Lama) के उत्तराधिकारी का मुद्दा केवल तिब्बती बौद्ध धर्म तक सीमित नहीं है, यह धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और वैश्विक भू-राजनीति से भी जुड़ा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी दलाई लामा का समर्थन किया है। अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि वे चीन से तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वतंत्रता का सम्मान करने और उत्तराधिकारी प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करने का आह्वान करते हैं। 2020 का अमेरिकी तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम भी दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उत्तरधिकारी तय करेगा तिब्बती बौद्ध धर्म का भविष्य
दलाई लामा (Dalai Lama) की 90वीं जयंती और उनके उत्तराधिकारी की घोषणा तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती लोगों की सांस्कृतिक पहचान के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। उनकी हालिया घोषणा कि वह 30-40 वर्ष और जीवित रहकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं, ने तिब्बती समुदाय में नई आशा जगाई है। साथ ही, यह पुष्टि कि गादेन फोदरांग ट्रस्ट ही उनके उत्तराधिकारी का चयन करेगा, चीन के नियंत्रण के प्रयासों को एक स्पष्ट चुनौती है। यह कदम तिब्बती समुदाय को एकजुट करने और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
हालांकि, इस मुद्दे से भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ सकता है और वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर चर्चा तेज हो सकती है। तिब्बती समुदाय के लिए, यह समय अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार होने का है। दलाई लामा का यह बयान न केवल उनकी विरासत को आगे बढ़ाता है, बल्कि तिब्बती लोगों के लिए आशा और एकता का प्रतीक भी बनता है।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।